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रुपये में चिंताजनक गिरावट
बीते कुछ दिनों से डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत लगातार घटती जा रही है. आशंका है कि यह जल्दी ही 2013 के सबसे निचले स्तर तक पहुंच सकती है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत और नोटबंदी के बाद से अब तक रुपये में तीन फीसदी के करीब गिरावट हो चुकी है. पर्यवेक्षकों का मानना है […]
बीते कुछ दिनों से डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत लगातार घटती जा रही है. आशंका है कि यह जल्दी ही 2013 के सबसे निचले स्तर तक पहुंच सकती है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत और नोटबंदी के बाद से अब तक रुपये में तीन फीसदी के करीब गिरावट हो चुकी है.
पर्यवेक्षकों का मानना है कि अगले महीने अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की उम्मीद में विदेशी निवेशक अपना पैसा तेजी से निकाल रहे हैं. नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर प्रभावित होने की आशंका भी इस निकासी का एक कारण है. आयातकों द्वारा डॉलर में भुगतान की मांग तेजी से बढ़ी है. शेयर बाजार का रुख भी निराशाजनक है. वैश्विक बाजार के उतार-चढ़ाव तथा जोखिम से निवेशकों के परहेज को देखते हुए इस बात की उम्मीद भी कम ही है कि रिजर्व बैंक रुपये की घटती कीमत को रोकने के लिए एक सीमा से अधिक हस्तक्षेप करेगा. अधिकतर एशियाई मुद्राओं में भी कमी के रुझान हैं.
ऐसे में आगामी दिनों में भारतीय मुद्रा और भी कमजोर हो सकती है. रिपोर्टों के मुताबिक, रिजर्व बैंक द्वारा कई करोड़ डॉलर बेच कर बाजार को नियंत्रित करने की कोशिश की गयी है. हालांकि, 2013 की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर है. तेज वृद्धि, नियंत्रित चालू खाता घाटा, रिजर्व बैंक के पास बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार आदि कारक कुछ हफ्तों के बाद स्थिरता ला सकते हैं. मुद्रास्फीति की दर भी कम है. लेकिन, बहुत कुछ नोटबंदी के संभावित असर और घरेलू बाजार में सुधार पर निर्भर करता है.
वैश्विक बाजार की अनिश्चितता पर तो सरकार और रिजर्व बैंक का बस नहीं है, पर अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकनेवाले स्थानीय कारकों पर मुस्तैदी जरूरी है. निर्यात और निवेश में कमी की समस्या को देखते हुए अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी काफी हद तक घरेलू बाजार की मांग पर निर्भर है. मांग में उछाल के लिए मौजूदा मंदी पर काबू पाना बड़ी चुनौती है. अगर नकदी की कमी से खाद्य और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो मुद्रास्फीति में भी वृद्धि हो सकती है.
नोटबंदी के बाद बैंकों के पास आये बड़ी मात्रा में धन से ब्याज दरों में कटौती की संभावना जतायी जा रही है. इससे निश्चित रूप से घरेलू बाजार में मांग में उछाल आयेगा. तब रुपये में गिरावट पर काबू कर पाना आसान होगा. बाजार में उथल-पुथल, रुपये के मूल्य में कमी और नोटबंदी से पैदा हुई समस्याओं का असर आगामी बजट पर भी पड़ेगा. उम्मीद है कि सरकार और रिजर्व बैंक मौजूदा चुनौतियों का सामना करते हुए इनके नुकसान को सीमित करने का प्रयास करेंगे.
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