28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

देश में अब भी 130 करोड़ ‘निदो’ हैं

।। राहुल सिंह।। (पंचायतनामा, रांची) निदो! अब तुम हमारे बीच नहीं हो. तुम आसमान में एक तारा बन चुके हो, जिससे यह दुनिया रोशन हो रही है. हमारे देश में जब भी नस्लवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद और इसी तरह के तमाम संकुचित विचारों के खिलाफ बहस होगी, तब तुम्हारा उदाहरण दिया जायेगा. पर, तुम अकेले निदो […]

।। राहुल सिंह।।

(पंचायतनामा, रांची)

निदो! अब तुम हमारे बीच नहीं हो. तुम आसमान में एक तारा बन चुके हो, जिससे यह दुनिया रोशन हो रही है. हमारे देश में जब भी नस्लवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद और इसी तरह के तमाम संकुचित विचारों के खिलाफ बहस होगी, तब तुम्हारा उदाहरण दिया जायेगा. पर, तुम अकेले निदो नहीं हो. इस देश में तुम जैसे 130 करोड़ निदो हैं. यह अलग बात है कि अलग-अलग जगह इनका नाम बदल जाता है. कहीं उनका नाम पूर्वोत्तर वाला (जिनके लिए दिल्ली में एक विशेष शब्द का प्रयोग किया जाता है), कहीं परप्रांतीय, कहीं बाहरी, कहीं बिहारी, कहीं मद्रासी तो कहीं कुछ और हो जाता है.

तुम अकेले नहीं हो जिस पर नस्ली टिप्पणी की जाती हो. दिल्ली में आज भी मजदूरी करनेवाला या रिक्शा चलानेवाला कोई व्यक्ति संभ्रांत तबके की नजर में अगर गलती करता है, तो उसे बिहारी बोल कर अपशब्द कहा जाता है. भले ही वह उत्तरप्रदेश या मध्यप्रदेश या किसी दूसरे राज्य का रहनेवाला क्यों न हो. हमारे शहरों में आकर फेरी का व्यवसाय करनेवाले लोगों को आज भी हमारा मानस पहले भारतीय नहीं, कश्मीरी मानता है. महाराष्ट्र में हिंदी पट्टी से पलायन कर बसा एक परिवार परप्रांतीय लोगों और हिंदीवालों का विरोध कर हमेशा से राजनीतिक फसल काटता रहा है. मुंबई में उसी परिवार की विभाजनकारी राजनीति का उग्र विरोध करने के कारण कुछ वर्ष पूर्व बिहार का राहुल राज मारा गया.

हमारे आदिवासी भाई आज भी जब गोरे-चिट्टे लोगों के बीच जाते हैं, तो वे वहां तुम्हारी तरह ही निदो बन जाते हैं. हम जैसे हिंदी बोलने-समझने वाले देश के कई हिस्सों में जब जाते हैं, तो वहां तुम्हारी तरह खुद को निदो महसूस करते हैं. पिछले वर्ष जब कोल्हापुर में एक बच्ची के साथ एक उत्तर भारतीय ने दुष्कर्म किया, तो वहां उत्तर भारतीयों की सुरक्षा के लिए मुहल्लों-चौराहों पुलिस तैनात करनी पड़ी. उस दौरान वहां नौकरी करनेवाले अपने भाई की सुरक्षा को लेकर मैं और मेरा परिवार भी चिंतित था. क्योंकि वह वहां तुम्हारी तरह ही निदो है.

पूर्वोत्तर में जब उग्रवादियों की हिंसा के शिकार हिंदीभाषी होते हैं, तो बिहार से गुजर कर पूर्वोत्तर जाने वाली ट्रेनों में यात्रा कर रहे निर्दोष लोगों को भी सुरक्षा मुहैया करानी पड़ती है. गुजरात दंगों के बाद, अहमदाबाद में हमारे पत्रकारिता कैरियर के शुरुआती दिनों में हमलोगों के साथ एक सज्जन सगीर भाई थे, जो मुहल्ले में अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथियों-पहचानवालों से कहते- मुझे आप लोग सगीर नहीं, समीर पुकारो. आज भी प्रतियोगिता परीक्षा देने के दौरान मार-पिटाई, एडमिट कार्ड फाड़ने की घटना अक्सर सुनने में आती है. निदो! तुम्हारा यह सौभाग्य है कि तुम देश की नाक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ऐसे ही नस्लवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद का प्रतिरोध करते हुए शहीद हो गये. तुम पर हमें गर्व है. तुम्हें मैं हिंदुस्तान के 130 करोड़ निदो की ओर से प्रणाम करता हूं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें