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जालसाजी पर लगाम

अर्थव्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों के विस्तार के साथ वित्तीय सेवाओं में कई तरह की समस्याएं भी बढ़ी हैं. एक तरफ बैंकों की पूंजी का बड़ा हिस्सा ऐसे कर्जों में फंसा हुआ है जिनकी वसूली मुश्किल है, दूसरी तरफ बैंक ऐसे कर्जदारों से परेशान हैं जो क्षमता के बावजूद कर्ज नहीं लौटा रहे हैं. तीसरी समस्या […]

अर्थव्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों के विस्तार के साथ वित्तीय सेवाओं में कई तरह की समस्याएं भी बढ़ी हैं. एक तरफ बैंकों की पूंजी का बड़ा हिस्सा ऐसे कर्जों में फंसा हुआ है जिनकी वसूली मुश्किल है, दूसरी तरफ बैंक ऐसे कर्जदारों से परेशान हैं जो क्षमता के बावजूद कर्ज नहीं लौटा रहे हैं.
तीसरी समस्या जालसाजी की है. वर्ष 2011 से 2015 के बीच 26 राष्ट्रीयकृत बैंकों को इससे 30 हजार करोड़ से अधिक का चूना लगा है. यह राशि एक लाख या उससे ज्यादा के रकम के गबन की है. छोटी रकम की हेराफेरी को जोड़ लें, तो यह धन और भी ज्यादा हो जाता है. एक चिंताजनक तथ्य यह भी है कि 2014-15 के वित्त वर्ष में जालसाजी के मामले सबसे कम थे, पर इस साल सबसे अधिक रकम का नुकसान हुआ, जो 11 हजार करोड़ से अधिक था. उल्लेखनीय है कि पिछले बजट में बैंकों को मदद देने के लिए 25 हजार करोड़ की तय राशि से चार सालों का नुकसान कहीं ज्यादा है.
बहरहाल, सरकार ने इस मसले पर कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) को जालसाजी की जांच के लिए नोडल ऑथोरिटी बना दिया है. इस संस्था के संयुक्त निदेशक को 50 करोड़ से अधिक की जालसाजी की शिकायत दर्ज करने का अधिकार होगा. केंद्रीय सतर्कता आयोग ऐसे मामलों को सीबीआइ के संज्ञान में लायेगा. सीबीआइ ने पिछले साल 20 हजार करोड़ के गबन की जांच की थी. पच्चीस करोड़ से पचास करोड़ के बीच की जालसाजी की जांच सीबीआइ के बैंकिंग सिक्योरिटी एंड फ्रॉड सेल के जिम्मे होगी.
अन्य मामले राज्यों की पुलिस के अधीन रखे गये हैं. ऐसे उपाय गबन के मामलों को रोकने में कारगर साबित हो सकते हैं. जानकारों का मानना है कि जालसाजी रोकने में नयी तकनीकों का ज्यादा इस्तेमाल फायदेमंद हो सकता है. गबन और हेराफेरी के मामलों की जांच और दोषियों को सजा देने में देरी भी चिंता का एक कारण है. बैंकों के प्रबंधन और संचालन में गड़बड़ियां भी बहुत हद तक इन अपराधों के लिए मौका पैदा करती हैं. ऐसे में सक्रिय सामंजस्य और सतर्कता से ही जालसाजी पर अंकुश लगाया जा सकता है.

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