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तो लड़कियां मौत नहीं चुनतीं

निवेदिता स्वतंत्र टिप्पणीकार एक 18 साल की लड़की ने दुनिया को अभी जानना शुरू किया होगा. उसने अपनी हमउम्र लड़कियों की तरह ख्वाब बुने होंगे. वह तारों से बातें करती होगी और उसके पहलू में चांद रहा होगा. लेकिन, उसने बिजली का नंगा तार पकड़ कर अपनी जान दे दी. उसने यह भयानक कदम इसलिए […]

निवेदिता

स्वतंत्र टिप्पणीकार

एक 18 साल की लड़की ने दुनिया को अभी जानना शुरू किया होगा. उसने अपनी हमउम्र लड़कियों की तरह ख्वाब बुने होंगे. वह तारों से बातें करती होगी और उसके पहलू में चांद रहा होगा. लेकिन, उसने बिजली का नंगा तार पकड़ कर अपनी जान दे दी. उसने यह भयानक कदम इसलिए उठाया, क्योंकि उस पर दो साल पहले तेजाब से हमला हुआ था, जिसमें उसका चेहरा झुलस गया था. वह लड़की वैशाली जिले के अनवरपुर गांव की थी. गहरे दुख और पीड़ा को दो वर्षों तक झेलने के बाद उसने मौत का रास्ता चुना. अफसोस है कि भारत सहित दुनिया के कई देशों में तेजाबी हमलों की शिकार लड़कियों की बड़ी तादाद है.

कुछ साल पहले मैं बांग्लादेश गयी थी. वहां की सड़कों पर मैंने अधजली लड़कियों की बड़ी तादाद देखी. उस खौफनाक मंजर को देख कर मैं हैरान थी. उन्होंने बताया कि ये हमले वहां के कट्टर धार्मिक लोगों द्वारा किये गये हैं. बांग्लादेश जैसे एक उदार और विविधता वाले देश पर उस समय ही कट्टरपंथ हावी हो रहा था. जो महिलाएं बुर्का नहीं पहनतीं, जो उर्दू नहीं बोलतीं, उन पर तेजाब से हमले हो रहे थे. ये औरतें कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ रही थीं. ये अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के लिए लड़ रही थीं. अगर उस समय के समाज ने उनका साथ दिया होता, तो शायद आज बांग्लादेश पर आतंकी हमले नहीं होते.

हम कैसी दुनिया बनाना चाहते हैं, जहां हमारी बच्चियां मरती रहें, उन पर तेजाब के हमले होते रहें, वे जला दी जायें, उनकी देह लहूलुहान कर दी जाये? अपनी आंखों की बुझी राेशनी के साथ, हाथों में अपने अधमरे बच्चे लिये ये औरतें देश के किस सुखमय भविष्य का हिस्सा हैं? ये सवाल हुक्मरानों से पूछा ही जाना चाहिए. यह भी पूछा जाना चाहिए कि हर साल महिलाओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा के आंकड़ों में इजाफा क्यों हो रहा है.

नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के 2014 के आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है. पिछले एक साल में 3,37,922 मामले दर्ज हुए. जिसमें बिहार में महिला अपराध के 15,383 मामले दर्ज हैं. 2014 का सबसे भयावह आंकड़ा बलात्कार का है. देश में 36,735 मामले बलात्कार के हैं. बिहार में 1,169 बलात्कार के मामले हैं.

इनमें तेजाब से हुए हमले का अलग से जिक्र नहीं है, पर ये आंकड़े बताते हैं कि यह समाज महिलाओं और बच्चियों के प्रति कितना असंवेदशील हैं. पिछले दो माह में बिहार में बच्चियों और महिलाओं पर हुए अपराध के कई जघन्य मामले सामने आये हैं, जिसमें 10 साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद हत्या समेत कई मामले हैं.

आखिर इस असंवेदनशील समय में महिलाएं क्या करें? दरअसल, ऐसी किसी भी हिंसा के पीछे औरत को वस्तु की तरह देखना है. औरतों पर होनेवाली हर हिंसा के पीछे अपनी सत्ता स्थापित करना है. अगर किसी लड़की ने किसी लड़के के प्रेम निवेदन को अस्वीकार कर दिया, तो वह लड़का इस बात के लिए लड़की को हिंसात्मक सजा देने से भी नहीं हिचकेगा.

जाहिर है, पुरुषों ने स्त्रियों को सिर्फ भौतिक रूप से पराधीन नहीं बनाया, बल्कि मानसिक रूप से भी पराधीन बनाया. नारीवादी चिंतक जाॅन स्टुअर्ट मील कहते हैं कि अगर स्त्री-पुरुष का संबंध समानता पर आधारित हो, तो इससे सभी मानवीय संबंधों के न्याय पर आधारित होने का सूत्रपात होगा.

काश कि यह दुनिया वैसी होती, तो शायद हमारी लड़कियां मौत का रास्ता नहीं चुनतीं. उम्मीद है कि शायद कभी वह दिन भी आये, जब जमीन का एक बड़ा हिस्सा फूलों से पट जाये. गुल अब्बास, गेंदा, सूरजमुखी के फूल लहलहा उठें और हमारी बच्चियां पृथ्वी से गले लिपट कर हंसती रहें…

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