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समोसा बनाम जलेबी

वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार उस दिन अलसुबह समोसा बाबू अचानक मेरे घर आ धमके. सदैव की तरह उखड़े हुए और गुस्से में एकदम सुर्ख दिख रहे थे. अखबार पटक दिया- मैंने पहले ही कहा था. लोकतंत्र में कद्र लियाकत और इल्म की नहीं है, तिकड़म और बाजीगरी की है. सिर्फ कुतर्क बिकता है. देख लीजिए, […]

वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
उस दिन अलसुबह समोसा बाबू अचानक मेरे घर आ धमके. सदैव की तरह उखड़े हुए और गुस्से में एकदम सुर्ख दिख रहे थे. अखबार पटक दिया- मैंने पहले ही कहा था. लोकतंत्र में कद्र लियाकत और इल्म की नहीं है, तिकड़म और बाजीगरी की है. सिर्फ कुतर्क बिकता है.
देख लीजिए, जलेबी बेचनेवाला मोहल्ला सुधार समिति का इलेक्शन लड़ रहा है. कहता है, हड़प्पा काल से उसके पुरखे जलेबी बेचते आये हैं. मां-बाप तबेले में रहे. एक टाइम भूखा सोया. चुनाव न हुआ भीख मांगना हो गया. एक नंबर का झूठा. अरे, बचपन से उसे जानता हूं. बाप मिठाई वाला था. कई बार छापा पड़ा. मिलावट मिली. पुलिस ने अंदर किया. घूस देकर छूटा. इलजाम कारीगरों पर धर दिया. मिलावटी मिठाई बेच-बेच कर महल खड़ा किया. हाहाकारी होटल बनवाया.
समोसा बाबू बोलते रहे- उस अमरीकी कंपनी का पता हम भी जानते हैं, जो मदारी को हीरो, पत्थर को पारस और रजनीकांत को सुपरस्टार बनाती है. अब वही कंपनी इस जलेबी को मुखिया का इलेक्शन लड़वा रही है.
हमें याद है कि चालीस साल पहले इस जलेबी के बगल में समोसे की दुकान थी हमारी. समोसे में आलू कैसे घुसा? दर्जन भर अमरीकी शेफ आये थे हमसे जानने के लिए. पांच लाख समोसा एक्सपोर्ट किया था हमने. तब इस जलेबी ने चिरौरी की. तरस खाकर हमने समोसे के साथ जलेबी भी चलवा दी. समोसे के साथ जलेबी पहली बार जापान गयी.
समोसा बाबू थोड़े और ऊंचे हुए- तुम्हारी रगों में खून है तो यहां भी पानी नहीं है. हमारा अतीत खंगालो तो कई उपन्यास, कहानियां, ट्रेजेडियां, नौटंकिया, काव्य झरझरा कर गिरें. लिखूं तो कालजयी बन जायें. नोबल प्राइज वाले हमंंे ढूंढ़ते फिरें. किवदंती बन जायेंगे हम. ईमानदारी किसी काम की नहीं, अगर कायदे-कानून का तोड़ नहीं मालूम. हम यहीं मात खा गये, और जलेबी आगे निकल गया.
समोसा बाबू हांकते ही जा रहे थे और बंदा समोसे और जलेबी का अतीत याद कर रहा था. समोसा और जलेबी दोनों पक्के दोस्त थे. एक बार समोसा व जलेबी सिनेमा के टिकट ब्लैक करते हुए दबोचे गये थे. बंदे के पिताजी ने जमानत दी थी. समोसे को थोड़ी सद्बुद्धि आयी. वह बीए कर गया. उसे ऊंची सरकारी नौकरी मिली. क्लास वन पोस्ट से रिटायर हुआ. बड़ा-सा निजी मकान है उसका. मोटी पेंशन है और भारी बैंक बैलेंस भी है. लेकिन, जलेबी का ढाबे से होटल तक का सफर इन्हें फूटी आंख नहीं सुहाता. समोसा बाबू को अब कुछ-कुछ होता है.
तभी समोसा ‘एक्ट पार्ट-टू’ शुरू हो गया. फाइनल कर लिये हैं, हम भी इलेक्शन लड़ूंगा. समोसा सस्ता होकर घर-घर से होता हुआ दुनियाभर में पॉपुलर होगा. बेरोजगारी तो खत्म समझो. दुश्मन ललकारे, तो समोसे में बारूद भर कर उस पर फेंको. दुनिया हमारे समोसे से थरथरायेगी. जो रजनीकांत ने नहीं किया, समोसा कर दिखायेगा.
तभी समोसाजी को बंदे का सफेद पैमेरीयन कुत्ता डिक्की दिखा. उन्हें किसी भी ब्रांड के कुत्ते से सख्त एलर्जी है. वे कुत्ते को हट-हट कहते हुए बंदे से लिपट कर थर-थर कांपने लगे.
बंदे को खूब मालूम है कि जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं. समोसा और जलेबी दोनों इसी का नमूना हैं. खरीद कर न ये जलेबी खाते हैं और न वह समोसा. फ्री का मिले, तो इतना डकारें कि तीन दिन जुगाली करते घूमें. नजर बचा कर जेब में भरने से भी न चूकें. जबकि दोनों की सालाना आमदनी लाखों में है. दिल खुला और मजबूत होना चाहिए, जो इनके पास है नहीं.

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