।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
अर्थशास्त्री
खोब्रागड़े के विरुद्घ अमेरिका ने जो कदम उठाये हैं, उसकी जड़ में वहां की फिसलती अर्थव्यवस्था है. अत: इस मुद्दे पर अमेरिका संभवत: झुकेगा नहीं. अत: विवाद को निपटाने के बाद अमेरिकी डिप्लोमेटों को दी जा रही सुविधाओं को बहाल नहीं करना चाहिए.
भारतीय डिप्लोमेट देवयानी खोब्रागड़े एक घरेलू नौकरानी को लेकर अमेरिका गयी थीं. वे नौकरानी को भारतीय परिस्थितियों के अनुसार वेतन दे रही थीं, जो अमेरिका में लागू न्यूनतम वेतन से कम था. नौकरानी ने उनसे कहा कि साप्ताहिक अवकाश के दिन वह दूसरे घर में काम करके पैसा कमाना चाहती है. खोब्रागड़े ने इनकार कर दिया. इस पर वह नौकरी छोड़ कर गायब हो गयी.
उसका उद्देश्य अमेरिका में गैर कानूनी ढंग से बसने का लगता है. खोब्रागड़े ने उसके गायब होने की रपट लिखायी, परंतु अमेरिकी पुलिस द्वारा कार्यवाही नहीं की गयी. नौकरानी ने खोब्रागड़े पर आरोप लगाया कि अमेरिका में लागू न्यूनतम से कम वेतन दिया जा रहा था. इसी आरोप के चलते खोब्रागड़े को हिरासत में लिया गया. लेकिन जरा ठहर कर सोचें तो उन्हें हिरासत में लेने के पीछे मूल कारण अमेरिका में भारतीयों के बढ़ते वर्चस्व को लेकर खौफ है.
उनके विरुद्घ कदम उठानेवाले अधिकारी भारतीय मूल के हैं. इन्होंने पूर्व में भारतीय मूल के रजत गुप्ता के विरुद्घ भी कदम उठाये थे. शायद वे अमेरिका के प्रति अपने समर्पण को दर्शाने के लिए भारतीय मूल के लोगों को टारगेट कर रहे हों.
वर्तमान में अमेरिका दबाव में है. 80-90 के दशक में मैन्यूफैरिंग चीन को पलायन कर गयी थी. अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन में कारखाने लगाये. वहां श्रमिक के वेतन कम थे. अमेरिका में कपड़ा मिलें पूर्णतया बंद हो चूकी हैं. इससे वहां लोग बेरोजगार हुए, परंतु आक्रोश पैदा नहीं हुआ. इसके तीन कारण थे.
पहला, चीन में बना सस्ता माल अमेरिकी ग्राहकों को उपलब्ध हो गया था. इससे रोजगार हनन का दर्द कुछ कम हो गया. दूसरा, उस समय सेवा क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न हो रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था ने मैन्यूफैक्चरिंग के पलायन का स्वागत यह कह कर किया था कि ब्लू कॉलर रोजगार हम दूसरे देशों को भेज रहे हैं और ह्वाइट कालर रोजगार का अमेरिका में विस्तार हो रहा है. तीसरा, मैन्यूफैक्चरिंग कार्यरत चीन के श्रमिकों से सीधे संपर्क नहीं था. अमेरिकी नागरिकों को वे दिखते नहीं थे कि उन पर गुस्सा प्रकट किया जा सके.
पिछले दशक में सेवा क्षेत्र का भारत को पलायन हुआ. इसका अमेरिकी नागरिकों पर सीधा प्रभाव पड़ा. सेवा क्षेत्र के पलायन के बाद अमेरिका के पास दूसरा सूर्योदय क्षेत्र नहीं बचता है. अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं. कृषि, मैन्यूफैक्चरिंग और सेवा. कृषि क्षेत्र पहले ही सिकुड़ चुका है.
अमेरिका के एक प्रतिशत से कम लोग इस क्षेत्र में कार्यरत हैं. मैन्यूफैक्चरिंग के पलायन के बाद सेवा क्षेत्र पर अमेरिकी नागरिक आश्रित हो गये थे. अब सेवा क्षेत्र के पलायन के बाद वे पूर्णतया बेरोजगार हो रहे हैं. भारतीयों की प्रतिस्पर्धा व्यक्तिगत स्तर पर अमेरिकी नागरिक महसूस करता है.
सस्ते भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियर को रोजगार देकर महंगे अमेरिकी इंजीनियर को निकाला जाता है, तो वह प्रत्यक्ष रूप से भारतीय से द्वेष करता है. तुलना में चीन के श्रमिक हजारों किमी दूर बसते हैं इसलिए उनके विरुद्घ आक्रोश नहीं बना.
अमेरिकियों के इस क्रोध के कई उदाहरण मौजूद हैं. तीन माह पहले भारतीय मूल की नीना दवुलरी को मिस अमेरिका का ताज पहनाया गया. इस पर अमेरिकियों की प्रतिक्रिया थी: ‘मिस अमेरिका है या मिस अलकायदा?’ ‘आज हमारा राष्ट्रपति और मिस अमेरिका दोनों ही अमेरिकी नहीं हैं.’
ये उद्गार दर्शाते हैं कि अमेरिकियों के मन में भारत का भय बैठ गया है. राष्ट्रपति ओबामा ने इस मुद्दे को स्वीकार किया और कहा, ‘भारत-चीन जैसे देशों के अरबों लोग गणित और तकनीक में हमसे ज्यादा शिक्षा हासिल करने में प्रयासरत हैं. पहले हम इतना आगे थे कि प्रतिस्पर्धा का भय नहीं था.
पर अब बेंगलुरु से मास्को तक अरबों लोग आपसे सीधी प्रतिस्पर्धा करने को खड़े हैं. हर वर्ष नये अध्ययनों से पता चल रहा है कि वे आगे निकल रहे हैं. हम 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था में रह रहे हैं. आज रोजगार कहीं भी जा सकता है.’
खोब्रागड़े के विरुद्घ अमेरिका ने जो कदम उठाये हैं, उसकी जड़ में वहां की फिसलती अर्थव्यवस्था है. अत: इस मुद्दे पर अमेरिका संभवत: झुकेगा नहीं. हमें दो परस्पर विरोधी दृष्टिकोण के बीच रास्ता निकालना है.
भारतीय डिप्लोमेटों के व्यक्तिगत स्वार्थो को प्राप्त करने के लिए हम देश को दांव पर लगा रहे हैं. हमारे डिप्लोमेट ने गलती की है. इसलिए क्षमा-याचना या हरजाना देकर मामले को निपटा देना चाहिए. या फिर अमेरिकी दादागिरी को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए. भारतीय डिप्लोमेट का सम्मान पूरे देश का सम्मान है.
अत: सख्त रुख अपनाना चाहिए. इन दोनों कदमों को एक साथ लागू करना चाहिए. वर्तमान विवाद को निपटाने के बाद अमेरिकी डिप्लोमेटों को दी जा रही सुविधाओं को बहाल नहीं करना चाहिए. तब अपनी कमजोरी को बचाते हुए हम सभी विकासशील देशों की तरफ से अमेरिका को कटघरे में खड़ा कर सकेंगे.