इन योजनाओं में साधारण और निम्न आय वर्ग के लोग बचत करते हैं ताकि उसका इस्तेमाल वे जरूरत के वक्त कर सकें. शादी-विवाह, बच्चों की पढ़ाई आदि के खर्च के लिए इस तरह की बचत राशि आम नागरिकों के लिए बड़ा सहारा होती है. महंगाई, आय में कमी, आय के अवसरों का अभाव जैसे विभिन्न आर्थिक कारणों से लोग परेशान हैं.
ऐसे में ब्याज दरों में कमी उनकी मुसीबत को बढ़ा सकता है. कर्मचारी भविष्य निधि के ब्याज पर कर लगाने का प्रस्ताव तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वापस ले लिया है, किंतु राशि के 50 फीसदी हिस्से की निकासी पर बचतकर्ता के 58 वर्ष की आयु-सीमा की शर्त भी लगा दी है. ऐसी स्थिति में छोटी बचत योजनाएं उम्मीद बनती हैं. यही कारण है कि इस फैसले का व्यापक विरोध हो रहा है. अगर सरकार ने इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया, तो लोग इन योजनाओं में निवेश करने से परहेज करेंगे.
इससे सरकार की आर्थिक स्थिति पर भी नकारात्मक असर होगा क्योंकि बचत राशि को वह विभिन्न योजनाओं में निवेश करती है. इसका एक और असर यह भी संभावित है कि फर्जी वित्तीय कारोबारी अधिक ब्याज का लालच देकर लोगों की गाढ़ी कमाई को लूटने की जुगत लगा सकते हैं.
सरकार ने छोटी बचत योजनाओं के ब्याज दरों के निर्धारण की नयी व्यवस्था भी की है, जिसके अंतर्गत हर तीन महीने में दरों की समीक्षा होगी ताकि उन्हें सरकारी सिक्यूरिटीज के बाजार दर के अनुरूप रखा जा सके. सरकार कर्ज की दरें कम होने की उम्मीद का तर्क भी दे रही है. ये दोनों बातें कुछ समय के लिए बचतकर्ताओं को हौसला तो दे सकती हैं, पर असली सवाल समुचित भरोसे का है. आशा की जा सकती है कि सरकार लोगों की चिंताओं का शीघ्र निवारण करेगी और जरूरी होने पर अपने फैसले को संशोधित करेगी.