रेल आयी खुशियां लायी. विकास के खुलेंगे द्वार. अब गंतव्य तक पहुंचना होगा आसान. ये जुमले हर किसी को अच्छे लगते हैं, लेकिन रेल परियोजनाओं के पूरा होने में देरी की जिम्मेवारी कोई लेना नहीं चाहता. हां, जब काम पूरा हो गया, तो श्रेय लेने की होड़ जरूर शुरू हो जाती है.
खैर, अब कोडरमा से हजारीबाग तक रेल लाइन पर ट्रेनों का परिचालन शुरू होगा. जब ट्रायल इंजन कोडरमा से चल कर हजारीबाग पहुंचा, तो स्टेशन पर हजारों की संख्या में लोग स्वागत के लिए खड़े थे. यह तसवीर यह बताने के लिए काफी है कि हजारीबाग का रेल लाइन से जुड़ना कितना महत्वपूर्ण था.
लोगों को इस पल का काफी लंबे समय से इंतजार था. जनभावनाओं को देखते हुए केंद्र व राज्य सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि रेलवे आदि की महत्वपूर्ण परियोजनाओं में किसी तरह की देरी नहीं करनी चाहिए. अभी कोडरमा-हजारीबाग-रांची रेल लाइन प्रोजेक्ट में काम बाकी है.
इसे 2007 में पूरा होना था, लेकिन 2013 बीत जाने को है और योजना अभी अधूरी है. लोगों को भी जमीन अधिग्रहण में बेवजह अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए. झारखंड में अभी कई ऐसी रेल परियोजनाएं लंबित हैं, जिनके पूरे हो जाने के बाद राज्य की तसवीर बदल जायेगी.
मसलन देवघर-सुल्तानगंज, गिरिडीह-कोडरमा, दुमका-रामपुरहाट रेल लाइन परियोजनाएं इतने समय से लंबित-विलंबित हैं कि किसी को यह अंदाजा नहीं है कि ये कब तक पूरी हो पायेंगी? कभी राजनीति के पचड़े में फंस कर, कभी भूमि अधिग्रहण में देरी की वजह से, तो कभी केंद्र या राज्य सरकारों की अनदेखी के कारण ऐसी परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पाती हैं.
परियोजनाओं के लंबित होने से उनपर लागत भी बढ़ जाती है. फिर यहीं से शुरू होता है, योजनाओं का शिथिल होना. खैर, हजारीबाग-कोडरमा रेल लाइन प्रोजेक्ट पूरा होने पर सभी राजनीतिक दलों ने एक स्वर से केंद्र के प्रयास को सराहा. यानी राजनीति तो हुई, लेकिन सकारात्मक.
झारखंड में ऐसे ही सकारात्मक राजनीति की जरूरत है. जनभागीदारी और राजनीतिक दलों में समन्वय एक शुभ संकेत है. राज्य सरकार की विकास योजनाओं की मंथर गति तेज करने के लिए भी ऐसी ही राजनीतिक एकजुटता की दरकार है.