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भारतीय क्रिकेट प्रबंधन में आमूल-चूल सुधार के लिए लोढ़ा कमेटी द्वारा सुझायी गयीं तदबीरों ने बोर्ड और देश भर के क्रिकेट एसोसिएशनों में जमे मठाधीशों की नींद उड़ा दी है. दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट प्रबंधन संस्था की बेहतरी की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. पिछले कुछ वर्षों में बोर्ड की […]

भारतीय क्रिकेट प्रबंधन में आमूल-चूल सुधार के लिए लोढ़ा कमेटी द्वारा सुझायी गयीं तदबीरों ने बोर्ड और देश भर के क्रिकेट एसोसिएशनों में जमे मठाधीशों की नींद उड़ा दी है.

दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट प्रबंधन संस्था की बेहतरी की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. पिछले कुछ वर्षों में बोर्ड की अंदरुनी खींचतान और भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए सर्वोच्च न्यायालय को दखल देने की जरूरत पड़ गयी थी. इसी के नतीजे में अदालत ने इस कमेटी का गठन किया था. कमेटी ने साफ कहा है कि संस्था के बचाव के लिए निजी हितों को कुर्बान करना होगा और बोर्ड में फेरबदल के लिए मौजूदा रवायतों और इंतजामों को बाधा नहीं बनने दिया जाना चाहिए. रिपोर्ट में उम्र और कार्यकाल निर्धारित करने के साथ-साथ बोर्ड और एसोसिएशनों में दोहरी सदस्यता को हटाने की बात कही गयी है. चयन समिति में अनुभवी खिलाड़ियों को रखने की सिफारिश के साथ सट्टेबाजी को वैध करने की सलाह भी है, जिससे खिलाड़ियों और अधिकारियों को दूर रहना होगा.

निर्वाचन अधिकारी और खिलाड़ियों का संघ बनाने के सुझाव भी महत्वपूर्ण हैं. ये उपाय बरसों से क्रिकेट तंत्र में जमे लोगों को दरकिनार करने के लिए जरूरी हैं, ताकि इसे एक पारदर्शी और पेशेवर संस्था के रूप में स्थापित किया जा सके. लेकिन, सबसे प्रभावी सुझाव क्रिकेट से नेताओं के वर्चस्व को नियंत्रित करने से संबंधित है. लोढ़ा कमेटी ने सरकारी पदधारी या मंत्रियों को भी प्रबंधन से बाहर रखने की सिफारिश की है. बोर्ड और क्षेत्रीय संगठनों पर काबिज दिग्गजों में दर्जनों नेता हैं. प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के मुखिया थे और उनके बाद भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह ने कार्यभार संभाला. वरिष्ठ नेता शरद पवार मुंबई एसोसिएशन के प्रमुख हैं, तो कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला उत्तर प्रदेश इकाई के सचिव हैं और आइपीएल के कर्ताधर्ता हैं.

इसमें अरुण जेटली, फारूक अब्दुल्ला, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अनुराग ठाकुर सहित अन्य अनेक नेता और राजनीतिक परिवारों के लोग हैं. इतने नेताओं की उपस्थिति के बावजूद अगर क्रिकेट में मनमानी, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन है, तो फिर यह सार्वजनिक जीवन की शुचिता से भी जुड़ा मसला है. इस संदर्भ में बोर्ड को आरटीआइ के तहत लाये जाने का सुझाव भी सराहनीय है.

क्रिकेट बोर्ड इन सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय से इस बाबत निर्देशों की उम्मीद है. क्रिकेट ही नहीं, अन्य खेलों के प्रबंधन को दुरुस्त करने के लिए भी इन सुझावों से मार्गदर्शन लिया जा सकता है.

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