भारत-पाक संबंधों की अशांत दास्तान में एक नये अध्याय का आगाज एक अकेले लेखक के वश की बात न थी, मगर इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए भी इन दोनों लेखकों को साथ आना होगा.
इतिहास भी कभी चंद पलों की इबारत का गुलाम बन जाता है. ऐसे शानदार पल भी नायाब ही होते हैं, जैसे काबुल से दिल्ली के सफर के दौरान नरेंद्र मोदी द्वारा नवाज शरीफ के खुशगवार निजी मौके पर लाहौर में ‘उतर लेने’ के फैसले ने पैदा कर दिखाये. यह फैसला एकदम अचानक था, यह कहना तो शायद सही नहीं होगा, मगर उसके राजनीतिक निहितार्थ तो निश्चित रूप से वैसे ही थे. यही वजह रही कि उसके असाधारण असर को इस उपमहाद्वीप के साथ पूरी दुनिया में महसूस किया गया. यह एक राजनयिक तख्तापलट जैसी घटना थी, जिसके लिए साहस, कल्पनाशक्ति तथा कौशल की जरूरत थी. एक अनिश्चित पाक प्रधानमंत्री ने महज फोन पर हुई एक बातचीत में गलती से भी यह न्योता न दिया होता और एक बुजदिल भारतीय प्रधानमंत्री ने कभी उसे स्वीकार करने की हिम्मत न दिखायी होती. भारत-पाक संबंधों की अशांत दास्तान में एक नये अध्याय का आगाज एक अकेले लेखक के वश की बात न थी, मगर इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए भी इन दोनों लेखकों को साथ आना होगा.
इस मुलाकात का नतीजा तो तत्काल सामने आया. दोनों नेताओं को पक्का यकीन था कि जनमत साथ होगा, मगर उसकी सकारात्मकता का पैमाना तो निहायत जबरदस्त रहा. यह दोनों देश के अवाम की उस दिली तमन्ना का इजहार था कि वे साथ मिल कर तहजीब व भाईचारे के उस संबंध का पुन: अन्वेषण करना चाहते हैं, जिसे गुजरी सदी की लड़ाइयों ने उनकी नियति से छीन लिया. युद्ध को शायद ही कभी विवेक के साये की तलाश होती है, पर इस उपमहाद्वीप के अवाम को अमन के फायदों की नेताओं से बेहतर समझ है.
यह उतनी ही तल्ख हकीकत है कि अमन की इच्छा हमेशा उसे हासिल नहीं करा देती. सच तो यह है कि अमन लाने की प्रक्रिया युद्ध संचालित करने से भी ज्यादा नाजुक होती है. मोदी ने अपने कार्यकाल की शुरुआत बदलाव के कुछ ऐसे ही पलों से की थी, जब उन्होंने दक्षेस (सार्क) नेताओं को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुला लिया था, पर वह पल निहित स्वार्थों की भेंट चढ़ गया. हैरत यह है कि एक अगली शुरुआत इतनी जल्द नजर आ गयी, वरना भारत-पाक संबंध तो तरक्की के बजाय जड़ता व पिछड़ने के लिए ज्यादा मशहूर रहा है. अब आगे विध्वंसक तत्वों से निबटने हेतु समय, धैर्य व इच्छाशक्ति की दरकार होगी, ताकि इस संबंध को तबाह कर देनेवाली जटिल समस्याओं पर अंतरिम समझ तक पहुंचा जा सके.
संकेत हैं कि चरमपंथियों का एक गंठजोड़ शरीफ को बेपटरी करने की मुहिम पर है. शरीफ को जोखिम की जानकारी है, क्योंकि वे पहले भी इस नाजुक मोड़ से गुजर चुके हैं. हम यह मान सकते हैं कि इस बार की प्रक्रिया को पाक सेना की हिमायत हासिल है. यह भी उतने ही संतोष की बात है कि वहां के प्रमुख राजनीतिक दल भी इसे समर्थन दे रहे है. अपने देश में जनता मोदी के साथ है. दुर्भाग्यवश, कांग्रेस जैसी पार्टियां राष्ट्रीय व दलीय हितों में फर्क कर पाने में नाकाम रहते हुए बगैर सोची-समझी प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं.
उसके कुछ नेताओं के बयान तो निपट बचकाने रहे हैं. हालांकि, दोनों कम्यूनिस्ट पार्टियों को मोदी से रत्तीभर प्रेम नहीं है, मगर परिपक्वता का परिचय देते हुए उन्होंने इस पहलकदमी व इसके द्वारा इस महाद्वीप को नाभिकीय खतरे सहित संघर्ष के दलदल से बाहर लाने की पेशकश का स्वागत किया है. ऐसे पल किसी ज्योतिषी की गणनाओं अथवा जादूगर की टोपी से नहीं निकला करते. ये तो किसी खास पल की प्रेरणा से पैदा होते हैं.
उनके बीज चुपचाप बोये और राजनयिक तदवीर द्वारा सींचे जाते हैं. इनकी पृष्ठभूमि तब तैयार हुई, जब जुलाई में दोनों प्रधानमंत्रियों की उफा में मुलाकात हुई, जो पुनः पेरिस में परवान चढ़ी. अचानक इसका अंकुर तब नजर आया, जब दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बैंकॉक में बैठे. 8-9 दिसंबर को सुषमा स्वराज अफगानिस्तान पर ‘हार्ट ऑफ एशिया’ के मंत्रीस्तरीय शिखर सम्मेलन में भाग लेने इस्लामाबाद पहुंच कर शरीफ से मिलीं, तो यह एक पौधे में बदल गया. जो राजनेता लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मार्फत सत्ता हासिल करते हैं, उन्हें जनता के नब्ज की पहचान होती है. यही चीज उन्हें तानाशाह तरीके से सत्ता पर थोपे गये नेताओं से कहीं बेहतर बनाती है. वे माहौल को संवारने की कीमत भी समझते हैं. भारत–पाक वार्ता की राह का एक प्रमुख रोड़ा यह रहा है कि कट्टरपंथी तत्व भय की आग को हवा देते हुए उसे नफरत की ज्वाला में तब्दील कर सार्वजनिक विमर्श पर हावी हो जाते हैं. लाहौर में दिखाये गये दोस्ताने ने इस माहौल को कारगर ढंग से बदल दिया है. इसकी अहमियत है कि उसके बिगड़ने से पहले ही इसने ऐसा कर दिया. हम उम्मीद पाल सकते हैं कि यह प्रक्रिया पाकिस्तान में अगले साल होनेवाले दक्षेस सम्मेलन में मोदी द्वारा भाग लेने में फलीभूत होगी. (अनुवाद: विजय नंदन)
एमजे अकबर
राज्यसभा सांसद, भाजपा
delhi@prabhatkhabar.in