।। खगेंद्र ठाकुर।।
(वरिष्ठ साहित्यकार)
सवाल सचिन को ‘‘भारत रत्न ‘‘ देने का नहीं है, बल्कि भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा में और उसके भावी विकास की योजना में क्रिकेट के स्थान का है. सवाल मनुष्य में मनुष्यता के विकास का है. सवाल मनुष्य की पहचान की कसौटी का भी है. हमारी संस्कृति को समझने के लिए यह समझना जरूरी है कि हमारे समाज में मनुष्य को कैसे देखा जा रहा है?
जिस देश के सांस्कृतिक इतिहास में चार्वाक, आजीवक, महात्मा बुद्ध मौजूद हैं, जिस देश की महत्ता दुनिया इसलिए कबूल करती है कि दुनिया की सबसे पुरानी भाषा और ग्रंथ यहीं उपलब्ध हैं. इसलिए भी कि इस देश में वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, अश्वघोष, भवभूति जैसे महान कवि और भरतमुनि, भट्ट नायक और अभिनव गुप्त जैसे काव्य के आचार्य हुए. जिस देश में अमीर खुसरो, विद्यापति, कबीर, नानकदेव, नामदेव, जायसी, मीराबाई, सूरदास, तुलसीदास जैसे संत और कवि हुए हैं, जिस देश में भारतेंदु, स्वामी विवेकानंद, राजाराममोहन राय, विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर, सुब्रह्मण्यम भारती, बल्लतोतव, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि सामाजिक जागरण के अग्रदूत रचनाकार हुए हैं, उस देश की पहचान के लिए क्रिकेट और सचिन तेंडुलकर की जरूरत है क्या? आधुनिक भारत होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई, शक्ति स्वरूप धवन, एपीजे अब्दुल कलाम आदि की खोज से बना या क्रिकेट के शतक से. नयी पीढ़ी इस पर सोचे.
माफ करेंगे, क्रिकेट उन्हीं देशों में खेला जा रहा है, जो अंगरेजों के गुलाम रह चुके हैं. इससे भी ज्यादा ध्यान देने की बात यह है कि क्रिकेट अब खेल नहीं, व्यापार हो चुका है. ऐसा व्यापार, जिससे देश का उत्पादन नहीं बढ़ता, जिससे दुनिया में देश का मान नहीं बढ़ता. ऐसा व्यापार, जिसमें दाऊद इब्राहिम का हस्तक्षेप चलता है. ऐसा व्यापार, जिसमें पूंजी लगाये बिना क्रिकेटर अरबपति बन चुके हैं, इन व्यापारियों का व्यक्तित्व और चरित्र ऐसा कि वे हमारे और बड़े व्यापारियों के ब्रांड और विज्ञापनकर्ता बन गये हैं. उनका इस्तेमाल व्यापार और पूंजी में विस्तार के लिए किया जा रहा है.
क्रिकेट के नायक और फिल्म के नायक को पूंजीवादी मीडिया के लोग सदी का महानायक कह रहे हैं. यह ऐसा व्यापार है, जो हमारी नयी पीढ़ी को निठल्ला बना रही है. मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह सजर्क है, उत्पादक है और समाज की भौतिक संपदा में वृद्धि करके अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. अब इस सजर्क मनुष्य को खेलौड़िया बनाया जा रहा है. खेलौड़िया भी ऐसा, जो स्वयं खेल में भाग लेने का मौका नहीं पाकर उसका केवल दर्शक बना रहता है. पढ़ने-लिखने से उसे अलग किया जा रहा है. यह पीढ़ी स्वाधीनता संग्राम के बारे में, महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सहजानंद जैसे नेताओं के बारे में, डॉ राधाकृष्ण, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, सुनीति कुमार चटर्जी, ज्योति बा फूले, पेरियार, डॉ आंबेडकर आदि के बारे में बहुत कम जानती है. इस पीढ़ी की चिंता में यह नहीं शामिल है कि हमारे देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता खतरे में है. हमारा जनतंत्र खतरे में है. सत्तर प्रतिशत से अधिक लोग इस देश में प्रतिदिन बीस रुपये से अधिक नहीं खर्च कर पाते. दोनों शाम भोजन नहीं कर सकते.
क्रिकेट का व्यापार और उसके महानायक उन चिंताओं से वाकिफ हैं क्या? चिंता से वाकिफ हों, तो वे उनको हल कर सकते हैं क्या? कतई नहीं. इस स्थिति में क्रिकेट के महानायक का स्थान भारतीय इतिहास में क्या है? कैसा है? वे कैसे भारत रत्न हैं? सोचिए और बोलिए, हैं क्या? उपाधि चाहे जो दे दीजिए, लेकिन वे भारत रत्न नहीं हैं, न हो सकते हैं. भारतीय जनता ने तिलक को लोकमान्य, चित्तरंजन दास को देशबंधु, गांधीजी को महात्मा, सुभाषचंद्र बोस को नेताजी, डॉ राजेंद्र प्रसाद को देशरत्न कहा. आज भी उनको इन विशेषणों के साथ याद किया जाता है. डॉ आंबेडकर को जनता ने बाबा साहब कहा और अब भी ये सभी महापुरुष इसी तरह याद किये जाते हैं. देश की सीमा पर देश की रक्षा के लिए शहीद हो जानेवाले सैनिक देशभक्त हैं या क्रिकेट का व्यापार खेलनेवाले नागरिक?
मैं यह नहीं मान सकता कि क्रिकेट खेलनेवाले देश के लिए खेलते हैं. भारत रत्न का अधिकार शहीद अब्दुल हमीद और शहीद अलबर्ट एक्का को है या मैच फिक्सिंग से कलंकित व्यापारी क्रिकेट का ब्रांड बननेवाले बिकाऊ माल को! आप सोचिए, आपने जीवन के लिए कौन-सा मूल्य अपना रखा है, तब तय कीजिए कि देश के लिए, समाज के लिए किस चीज की जरूरत है? कुछ साल पहले राष्ट्रपति ने क्रिकेट में दो खिलाड़ियों को सम्मान देने का फैसला किया. दोनों सम्मान लेने राष्ट्रपति भवन नहीं गये, क्योंकि उस समय वे किसी कंपनी के माल का विज्ञापन रिकॉर्ड करा रहे थे? उनमें एक तो भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ही थे. क्या यह व्यवहार बताता है कि देश उनके ध्यान में है? क्या यह वाकया नहीं बताता कि उनके लिए धन ही सबसे बड़ा है और उसके सामने राष्ट्रीय सम्मान भी महत्वहीन है?
यह समाचार मुझ जैसे लोगों को सदमा पहुंचानेवाला है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सचिन को बधाई देने के लिए फोन किया और वह फोन सचिन तक नहीं पहुंचा, तो उन्होंने राजीव शुक्ला का सहारा लिया. सचिन से बात करने के लिए यह प्रयत्न भी सफल हुआ या नहीं, समाचार में स्पष्ट नहीं था. प्रधानमंत्री को ऐसा करना पड़े, यह लज्जजनक है. क्या जवाहर लाल नेहरू ऐसा फोन करते! हरगिज नहीं.
मुङो एक बात याद आ रही है. लैटिन अमेरिका में एक छोटा-सा देश है चिली. मिर्च की तरह पतला और लंबा देश. उसके महान कवि हुए पाब्लो नेरूदा. हिंदी के क्रांतिकारी कवि नागाजरुन ने उन्हें भुवन-दीप कहा है. नेरूदा की जन्मशती मनायी जा रही थी. देश के प्रधानमंत्री ने राजधानी सेंटियागो से नेरूदा के गांव तक ट्रेन से यात्रा की. चिली की राजधानी देश के उत्तर में है और नेरूदा का गांव देश के दक्षिण में. इस तरह प्रधानमंत्री ने नेरूदा की जन्मशती मनाने के लिए उत्तर से दक्षिण तक ट्रेन से यात्र करके देश की पूरी जनता को नेरूदा की ओर मुखातिब किया. लाखों लोगों ने उसमें शिरकत की. हमारे देश में ऐसा अब तक नहीं हुआ. नेरूदा जैसे देश के किसी रत्न के लिए ऐसा होगा, आज की तारीख में तो यह सोचना भी मुश्किल है.