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कुएं-खाई के बीच फंसे रुसवा साहब

।। सत्य प्रकाश चौधरी ।। प्रभात खबर, रांची रुसवा साहब आज कई दिनों बाद पप्पू पनवाड़ी की दुकान पर नजर आ ही गये. ईद के चांद की तरह. यह अलग बात है कि अभी महीना मुहर्रम का चल रहा है. बड़े तपाक से मैं उनकी ओर बढ़ा और खैरियत पूछी, ‘‘कैसे मिजाज हैं, साहब?’’ उन्होंने […]

।। सत्य प्रकाश चौधरी ।।

प्रभात खबर, रांची

रुसवा साहब आज कई दिनों बाद पप्पू पनवाड़ी की दुकान पर नजर ही गये. ईद के चांद की तरह. यह अलग बात है कि अभी महीना मुहर्रम का चल रहा है. बड़े तपाक से मैं उनकी ओर बढ़ा और खैरियत पूछी, ‘‘कैसे मिजाज हैं, साहब?’’ उन्होंने राहुल गांधी की तरह कुरते की बांह चढ़ायी और गांधी मैदानवाले बम की तरह फूटे, ‘‘ मैं साहब हूं, साहबजादा.

साहबवाहब उसी को कहो जो लड़कियों की जासूसी करवाता है. मैं ठहरा शरीफ आदमी, बिलावजह कीचड़ क्यों उछाल रहे हो? अरे भाई, चुपचाप अखबारनवीसी करो, मनीष तिवारी बनने पर क्यों उतारू हो?’’ रुसवा साहब अजीब आदमी होते जा रहे हैं, छोटी सी बात का फसाना बना डालते हैं. पिछली बार नाम के बाद भाई लगाया था, तो भी टोक दिया‘‘यार, यह वल्लभभाई का जमाना नहीं है. वक्त बदल गया है.

अब तो मुकेशभाई, अनिलभाई (अंबानी), गौतमभाई (अडानी).. का जमाना है (पता नहीं वह नरेंद्रभाई का नाम भूल गये या जानबूझ कर नहीं लिया). और, मैं इस जमात में शामिल दिखना नहीं चाहता. सो, मेरे नाम में भाई जोड़ कर मुझे रुसवा करो तो बेहतर होगा.’’ इस वाक्ये से कुछ और साल पहले की बात है.

मैं उन्हें रुसवा जी कह कर बुलाया करता था. एक दिन उन्होंने संकोच करते हुए मुझे टोका‘‘घड़ीघड़ी जी, जी कह कर बुलाया करो. मोहल्लेवाले मुझे शाहनवाज जी और नकवी जी मार्का मुसलमान समझने लगे हैं.’’ उनकी इन नसीहतों के बाद मैंने उन्हें उनके नाम के आगे साहब लगा कर बुलाना शुरू किया था, पर अब रुसवा साहब को इस पर भी ऐतराज है.

खैर, जिस तरह भारत में अनेक पतिपत्नी, बापबेटे बिना संबोधन के एकदूसरे से सहजता से संवाद कायम कर लेते हैं, उसी तर्ज पर मैंने भी बात आगे बढ़ायी. मैंने पूछा, ‘‘इतने दिन कहां गायब रहे?’’ उन्होंने सवाल सुन कर यूं मुंह बनाया जैसे भिखारी आजकल एक रुपये का सिक्का देख कर बनाते हैं. फिर बोले, ‘‘छोड़ो यार यह सब! मोदीभक्तों की नजरें पहले ही तंज कसती हुई लगती थीं.

और, जब से रांची में गोलाबारूद बरामद हुआ है, तब से उनकी नजरें बिलकुल छेदती लगती हैं. ऐसे में कुछ दिन पान की दुकान की बतकही से दूर रहना ही बेहतर था.’’ यह कहतेकहते रुसवा साहब भावुक हो उठे और एक शेर चिपका दियाइस चमन को जब भी खूं की जरूरत पड़ी, सबसे पहले ये गर्दन हमारी कटी/फिर भी कहते हैं हमसे ये अहले चमन, ये चमन है हमारा, तुम्हारा नहीं. मैंने कहा, ‘‘जरा धीरे बोलिए, कहीं राहुल बाबा ने सुन लिया तो मान लेंगे कि आप आइएसआइ के संपर्क में हैं. इसके बाद अगले भाषण में आपका ही जिक्र होगा.

समझ लीजिए!’’ रुसवा साहब बोले, ‘‘ठीक कह रहे हो. एक तरफ मोदी, तो दूसरी तरफ राहुल. याखुदा, एक तरफ कुआं, दूसरी तरफ खाई..’’

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