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भारत के आइडिया को खत्म करने की वृत्ति!
सोशल मीडिया झूठी बातों, अफवाहों, नकली फोटुओं से भरा पड़ा है और प्रोपेगेंडा के इस कंटेंट को हम-आप आगे बढ़ाते रहते हैं, जिससे इस पर प्रमाणिक होने का ठप्पा लगता रहता है. सोचिए, यह माहौल और देश के आइडिया के बीच कोई सामंजस्य दिखाई देता है क्या? कभी आपने सोचा है कि आज हमारे बच्चों […]
सोशल मीडिया झूठी बातों, अफवाहों, नकली फोटुओं से भरा पड़ा है और प्रोपेगेंडा के इस कंटेंट को हम-आप आगे बढ़ाते रहते हैं, जिससे इस पर प्रमाणिक होने का ठप्पा लगता रहता है. सोचिए, यह माहौल और देश के आइडिया के बीच कोई सामंजस्य दिखाई देता है क्या?
कभी आपने सोचा है कि आज हमारे बच्चों के सपनों में किस तरह के देश की कल्पना है? स्कूलों में बच्चों को किस तरह की कविताएं और गीत सिखाये जाते हैं? हम अपने बच्चों को देश और समाज के बारे में कितना और क्या बताते हैं? ऐसे सवालों के जवाब महत्वपूर्ण हैं यह समझने के लिए कि आज जो माहौल है और माहौल पर विमर्श का स्तर है, उसके लिए जिम्मेवार कौन है? यह माहौल बना कैसे? खुद से पूछिए कि क्या यह माहौल हमारे लिए, हमारे परिवार के लिए, हमारे गांव-कस्बे, हमारे शहर के लिए, हमारे प्रांत और देश के लिए उन्नति की राह प्रशस्त करनेवाला है या इस राह में बाधाएं पैदा करनेवाला? ईमानदारी से सोचिए और सोशल मीडिया पर वायरल बुखार की तरह फैलाये जा रहे प्रोपेगेंडा में बिना फंसे सोचिए कि हम किस तरह का जीवन चाहते हैं और उस तरह के जीवन के लिए जरूरी अवयव क्या हैं? बेहतर जीवन की कल्पना से ही जुड़ा है देश का आइडिया. सोचिए कि कहीं आप अपने लिए जिस तरह का जीवन चाहते हैं, उसमें इस समय पनप रहा माहौल सहायक होगा या नहीं?
मुझे याद है कि अस्सी के दशक में राजस्थान में दिवराला सती कांड हुआ था और हम लोगों ने अमृतलाल नागर के नेतृत्व में लखनऊ में एक बड़ी विरोध रैली निकाली थी. बीजिंग में थियेनआन चौक पर छात्रों पर टैंक चढ़ा दिये जाने की घटना के विरोध में हमने देंग शियाउ पिंग के पुतले को सरेआम फांसी पर लटकाया. हमें याद है कि सलमान रश्दी की किताब पर प्रतिबंध व फतवे के विरोध में हमने पर्चे बांटे थे. शाहबानो मामले को हमने कैंपस में मुद्दा बनाया था. ऐसा नहीं कि तब इन घटनाओं का समर्थन करनेवाले लोग नहीं थे. वे लोग मिलते थे, बात करते थे, अपने तर्क रखते थे कि यह क्यों नहीं करना चाहिए. लेकिन यदि आज कोई संगठन या समूह कलबुर्गी की हत्या के खिलाफ, अखलाक की हत्या के खिलाफ, कालिख पोताई जैसी घटनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करता है, तो कैसी प्रतिक्रिया होती है, हम सब जानते हैं. कभी सोचा है कि यह बदलाव कब और कहां से शुरू हुआ. याद करिये 1990 का आरक्षण विरोधी आंदोलन. जिसने भी इसका विरोध करने की कोशिश की, उसे चुप कराने का हर हथकंडा अपनाने की कोशिश होती थी. उस दौरान हमारी यूनिवर्सिटी के सेंट्रल हाॅल में एक सेमिनार हुआ, जिसमें उस समय के अंगरेजी के एक बड़े संपादक आये, जो आरक्षण विरोधी थे (ये सज्जन बाद में वाजपेयी सरकार में मंत्री भी हुए). इनके भाषण के कुछ बिंदुओं पर समाजशास्त्र के एक प्रोफेसर ने खड़े होकर आपत्ति जतायी, तो उन्हें इतना हूट करने की कोशिश की गयी कि वे खुद चुप हो जाएं. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी बात कही. इस पर संपादक महोदय ने कहा कि कैसे-कैसे लोग विवि में प्रोफेसर हो जाते हैं. यहां मैं यह बताता चलूं कि प्रोफेसर साहब पिछड़े वर्ग से थे और उस समय वैचारिक रूप से कांशीराम से जुड़े थे. वह समय मौजूदा माहौल की शुरुआत का था. उस समय अगर सोशल मीडिया होता, तो सोचिए प्रोफेसर साहब की क्या गत बनी होती.
सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा एक संगठित बिजनेस है. मैं बिहार चुनाव के दौरान ऐसे कई लोगों से मिला, जिनके ट्विटर एकाउंट या फेसबुक पेज के फाॅलोवर हजारों की संख्या में हैं. उनमें से कई ऐसे थे, जो बिहार के नहीं थे और उनका बिहार से कोई लेना-देना नहीं था, सिवाय इसके कि वे अपने ट्विटर एकाउंट या फेसबुक पेज पर प्रोपेगेंडा मटीरियल वायरल करते थे और इसकी एवज में पैसा कमाते थे. उनको इससे कोई लेना-देना नहीं था कि वह क्या पोस्ट कर रहे हैं, वे पैसे के लिए पोस्ट करते थे. यह बिजनेस पूरे देश में चल रहा है और आम आदमी इनके द्वारा वायरल किये जा रहे प्रोपेगेंडा मटीरियल को सही मान कर अपने मित्रों को फाॅरवर्ड कर देता है. ताजा उदाहरण, बिहार में नवगठित मंत्रिमंडल का है. फेसबुक से लेकर व्हाट्सएप्प तक एक सूची वायरल हुई, जिसमें बिहार के मंत्रियों की शैक्षणिक योग्यता बतायी गयी. इसमें तमाम मंत्रियों को 10वीं कक्षा से कम पढ़ा बताया गया. शिवचंद्र राम को निरक्षर और शैलेश कुमार को दूसरी कक्षा तक पढ़ा बताया गया. वास्तविकता यह है कि शिवचंद्र राम ग्रेजुएट हैं और शैलेश कुमार पोस्ट ग्रेजुएट. हो सकता है कि आपकी निगाह से भी यह सूची गुजरी हो और शायद आपने भी सच मान लिया हो. मेरे पास यह सूची दूसरे प्रदेश में पदस्थापित एक वरिष्ठ अधिकारी ने व्हाट्सएप्प पर भेजी. हमारे इन अधिकारी मित्र की चिंता थी कि इस तरह के अनपढ़ सब मंत्री बनेंगे, तो बिहार का भविष्य क्या होगा? मैंने जब कहा कि यह सूची गलत है और उन जैसे वरिष्ठ अफसर को तो जांच-परख कर ही कुछ पोस्ट करना चाहिए. वह चिढ़ गये और बोले सारे लोग इस पोस्ट को शेयर कर रहे हैं, तो यह सही ही होगी. दरअसल, जब इस तरह की प्रोपेगेंडा वाली पोस्ट जिम्मेदार और प्रतिष्ठित माने जानेवाले लोग शेयर करते हैं, तो आम आदमी आंख बंद कर उस पर भरोसा कर लेता है. इस समय यही हो रहा है. पिछले हफ्ते की ही बात है कि हमारे एक सहपाठी ने सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर की फोटुएं पोस्ट कीं, जिनमें ये लोग लड़कियों के साथ डांस करते दिखाये गये. हमारे ये सहपाठी इंजीनियर हैं और एक बड़ी कंपनी में बड़े पद पर हैं. पिछले दिनों दो माह के लिए जापान में थे और वहां से जापान के समाज की प्रशंसा के पोस्ट डालते रहते थे. निश्चित तौर पर इनको यह नहीं पता होगा कि इन फोटो का सोर्स क्या है. यदि कोई इन फोटो को लेकर इंटरनेट पर सर्च करे तो उसे पता चल जायेगा कि ये फोटुएं मार्फ्ड हैं. इसी तरह, गांधीजी का एक फोटो सोशल मीडिया पर आता रहता है, जिसमें उन्हें एक अंगरेज लड़की के साथ बहुत तन्मयता से बात करते दिखाया जाता है. याद करिए, गांधी-नेहरू का वह फोटो, जिसमें दोनों एक-दूसरे की तरफ झुके हुए बड़ी तल्लीनता से बात करते हुए दिखाई देते हैं. इस फोटो में नेहरू की जगह लड़की को फिट कर दिया गया. लेकिन आप यह बात पोस्ट करनेवाले को कह कर तो देखिए, आपको ही झूठा करार दे दिया जायेगा. सोशल मीडिया झूठी बातों, अफवाहों, नकली फोटुओं से भरा पड़ा है और प्रोपेगेंडा के इस कंटेंट को हम-आप आगे बढ़ाते रहते हैं, जिससे इस पर प्रमाणिक होने का ठप्पा लगता रहता है. सोचिए, यह माहौल और देश के आइडिया के बीच कोई सामंजस्य दिखाई देता है क्या? कहीं इस आइडिया को खत्म करने की वृत्ति पनपाने की साजिश तो नहीं चल रही? कहीं अनजाने में हम भी इसी साजिश के टूल तो नहीं बन रहे?
और अंत में…
ये पंक्तियां मैं 26 नवंबर, संविधान दिवस पर लिख रहा हूं. संविधान में जिन शब्दों में सपनों के देश को परिभाषित किया गया है, उन्हें आप भी पढ़ें और आत्मार्पित करें- ‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ईस्वी (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं. ’
राजेंद्र तिवारी
कॉरपोरेट एडिटर
प्रभात खबर
rajendra.tiwari@prabhatkhabar.in
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