वह भी एक दौर था, जब जेब में सौ के कुछ नोट होते थे और कई दिनों तक का गुजारा चल जाता था. यूं कहें तो जिंदगी शान से कटती थी. अभी कल की ही बात लगती है, जब सब्जियां, पेट्रोल व अन्य रोजमर्रे की जिंदगी से जुड़ी चीजों के दाम आम आदमी की पहुंच के अंदर थे, लेकिन विगत कुछ सालों में स्थिति एकदम उलट गयी है.
छोटी-सी चीज के लिए भी लंबी-चौड़ी प्लानिंग करनी पड़ती है. डर लगा रहता है कि व्यर्थ का खर्च पूरे महीने का बजट न बिगाड़ दे. आखिर ऐसी स्थिति अयी कैसे? बेलगाम होती महंगाई ने लोगों का जीना दुश्वार कर रही है.
पहले लोग मुट्ठीभर पैसे से झोले भर कर सामान घर लाते थे, लेकिन अब स्थिति बिल्कुल विपरीत है. आलम यह है कि झोले भर कर पैसे हों, तब जाकर कहीं मुट्ठी भर सामान आ पाता है. इस बढ़ती महंगाई ने आम आदमी को उसके सोच में बदलाव लाने पर मजबूर कर दिया है.
अनूप, रांची