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सरदार पटेल पर न हो राजनीति

31 अक्तूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती मनायी गयी. पिछले कुछ दिनों से वे लगातार याद किये जा रहे हैं. वजह है गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान, जिस पर भाजपा और कांग्रेस में जुबानी जंग जारी है.दरअसल, सरदार पटेल की यह खासियत थी कि वह कल्पनावादी नहीं थे. वह हर वक्त व […]

31 अक्तूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती मनायी गयी. पिछले कुछ दिनों से वे लगातार याद किये जा रहे हैं. वजह है गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान, जिस पर भाजपा और कांग्रेस में जुबानी जंग जारी है.दरअसल, सरदार पटेल की यह खासियत थी कि वह कल्पनावादी नहीं थे.

वह हर वक्त व परिस्थिति को उसके व्यावहारिक रूप में देखते थे. हमारे देशी-विदेशी हुक्मरान जाते-जाते 562 देशी रियासतों को स्वतंत्र कर गये थे, लेकिन सरदार पटेल की सूझ-बूझ और कार्य-कौशल था कि सभी रियासतें भारत में जुड़ गयीं. यहां तक कि हैदराबाद(दक्षिण)और जूनागढ़ जैसी पाकिस्तान परस्त रियासतों को भी भारतीय संघ में रहने को मजबूर किया. कश्मीर के प्रश्न पर एक बार राजेंद्र बाबू से उन्होंने कहा था कि नेहरू के ससुराल पर उनका जोर नहीं चलता. स्पष्ट है कि वे नेहरू के अनावश्यक हस्तक्षेप के प्रति अपना असंतोष वयक्त कर रहे थे. यदि नेहरू ने तिब्बत के संदर्भ में सरदार की सलाह ठुकरायी न होती तो चीन और भारत के बीच तिब्बत आज भी बफर स्टेट के रूप में होता.

अपनी विलक्षण दूरदृष्टि से सरदार ने सन 1950 में ही चीन के इरादे को भांप लिया था और 7 नवंबर 1950 को नेहरू के नाम एक ऐतिहासिक पत्र लिखा था कि चीन के रंग-ढंग को देखते हुए कहा था कि यह भावी शत्रु के लक्षण हैं. उसके बाद क्या हुआ हम सब जानते हैं.

देश के एकीकरण में सरदार पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. इस बात को भाजपा और कांग्रेस, दोनों दलों के नेताओं सहित हर भारतीय को समझना होगा. इस बात पर राजनीति नहीं होनी चाहिए कि सरदार पटेल किसके हैं.
राकेश कुमार सिंह, ई-मेल से

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