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प्याज, सरकार और जनता

।। विजय किशोर मानव ।। कादंबिनी के पूर्व संपादक किसी भी फसल का बड़ा हिस्सा पैदा करनेवाले राज्य में ही अधिकतर उससे ज्यादा मुनाफा कमाने का तंत्र विकसित होता है. प्याज बेचनेवाले प्याज ही बेचते हैं, और उसी से ज्यादा मुनाफा कमाने की चतुराइयां सीख लेते हैं.विशेषज्ञ कहते हैं कि बढ़ती हुई विकास दर के […]

।। विजय किशोर मानव ।।

कादंबिनी के पूर्व संपादक

किसी भी फसल का बड़ा हिस्सा पैदा करनेवाले राज्य में ही अधिकतर उससे ज्यादा मुनाफा कमाने का तंत्र विकसित होता है. प्याज बेचनेवाले प्याज ही बेचते हैं, और उसी से ज्यादा मुनाफा कमाने की चतुराइयां सीख लेते हैं.विशेषज्ञ कहते हैं कि बढ़ती हुई विकास दर के साथ महंगाई चिपकी रहती है, यह हर उभरती अर्थव्यवस्था का सत्य है. लेकिन, यह बात किसी भी देश के उपभोक्ता की समझ में तो आने वाली है और ही आती है. हमारा देश इधर कई वर्षो से बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है.

वित्त मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक कई बार उसे कम करने के वायदे कर चुके हैं, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं है. पिछले कुछ महीनों से तो सब्जियों के दाम आसमान पर हैं, लेकिन प्याज इस बीच में उनका नेता बन कर उभरा है, जिससे सरकारों के माथे पर बल पड़ गये हैं. वहां की सरकारें प्याज के सौ रुपये प्रति किलो पर पहुंचे भाव को आशंका की नजर से देख रही हैं, जहां चुनाव होनेवाले हैं.

दिल्ली में सबसे ज्यादा चिंता होना स्वाभाविक है, क्योंकि प्याज ने ही सुषमा स्वराज से दिल्ली की कुर्सी छीन ली थी. इस बार क्या होगा, इस आशंका से तमाम कारगुजारियां हो रही हैं. तभी तो कृषि मंत्री, खाद्य मंत्री, वाणिज्य मंत्री, दिल्ली और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से लेकर पूरा का पूरा मीडिया और आम आदमी तक सबकी जुबान पर प्याज ही चढ़ा हुआ है.

सरकार मानती है कि इस बार प्याज का उत्पादन उम्मीद से थोड़ा कम हुआ है, लेकिन इतना भी कम नहीं हुआ कि देश में प्याज का अकाल पड़ जाये और प्याज 100 रुपये किलो तक बिके. यह भी माना गया है कि निर्यात कुछ बढ़ा है पर इतना भी नहीं कि हालात काबू से बाहर हो जायें.

केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा का दावा है कि प्याज की कमी नहीं है, जमाखोरों ने उसे रोक कर कमी पैदा कर दी है. वहीं शरद पवार बेमौसम बरसात को इसका कारण बताते हुए 15 दिन का समय और जोड़ रहे हैं.

यहां बताना जरूरी है कि 2012-13 के दौरान देश में प्याज का उत्पादन करीब 170 लाख टन हुआ है. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 28.57 फीसदी और कर्नाटक में 14.69 फीसदी उत्पादन हुआ. मध्य प्रदेश में करीब 13 फीसदी. आंध्र प्रदेश में करीब नौ फीसदी. बिहार में आठ फीसदी. गुजरात और राजस्थान में करीब 4-4 फीसदी प्याज का उत्पादन हुआ है. एक अनुमान के मुताबिक देश में हर महीने प्याज की मांग 9 से 10 लाख टन है.लेकिन इसकी आधी ही आपूर्ति हो रही है.

सबको पता है कि सरकार फल, सब्जियां या प्याज नहीं उगाती, जिसे लेकर उसे कोसा जा रहा है. उसका काम उसे यहां से वहां पहुंचाना भी नहीं है. जमाखोरी रोकने का काम भी राज्य सरकारों का है, जो उन दलों की भी हो सकती हैं, जो केंद्र की सरकार की विरोधी हैं.

सरकार इनकी कीमतें भी नहीं तय करती, वह तो बाजार तय करता है. सरकार निर्यात को बढ़ाघटा कर इन वस्तुओं की देश में उपलब्धता में मामूली सा हस्तक्षेप करती है या नेफेड के जरिये थोड़ी बिक्री कर सकती है. किसी भी फसल का बड़ा हिस्सा पैदा करनेवाले राज्य में ही अधिकतर उससे ज्यादा मुनाफा कमाने का तंत्र विकसित हो जाता है.

मंडियों में वर्षो से कुछ व्यापारियों का एकाधिकार रहता है. प्याज बेचनेवाले प्याज ही बेचते हैं, और उसी से ज्यादा मुनाफा कमाने की चतुराइयां सीख लेते हैं.

विशेषज्ञों की राय में चीजों को रोक कर रखने और बिक्री के तंत्र में प्रभावशाली माफिया का काबिज रहना भावों के इतने ऊंचे तक जाने का कारण है. मंडियों को नियंत्रित करनेवाले संगठनों में एक या दूसरे राजनीतिक दलों के लोग ही काबिज होते हैं. इसलिए वे मनमानी करते हैं और उन पर कोई हाथ नहीं डालता.

सबको पता है कि प्याज की दो फसलें, एक अप्रैल में और दूसरी अक्तूबर में आती है. चूंकि ताजा प्याज कच्चा होता है और बहुत जल्दी खराब होता है, इसलिए किसान उसे तुरंत ही बाजार के हवाले कर देता है.

पके प्याज को कुछ महीने रखा जा सकता है और उसे बड़े आढ़ती संभालते हैं. धीरेधीरे बाजार में लाते हैं और यहीं से मुनाफाखोरी का, उसे जमा रख कर बाजार को नियंत्रित करने का, काम होता है. मंडियों में भी प्याज को कुछ समय रखने और एक ही दाम तय करने का तंत्र काम करता है.

मंडी से बस्तियों तक ले जाने वाले विक्रेता के दाम तय करने का भी कोई आधार नहीं है, वह भी मनमानी करता है. उसके पास भी तर्क है कि उसे पुलिस से लेकर निगम तक के लोगों की पूजा करनी पड़ती है.

सवाल है कि हम क्यों नहीं इस पूरे तंत्र की पड़ताल करके, सर्वदलीय सहमति से सब्जियों और मंडियों की कार्यशैली को बदलने और उस पर काबिज माफियाओं की सफाई का बीड़ा उठाते? राजनीतिक नफानुकसान के चश्मे से भी देखें, तो आरोप लगाने से कोई लाभ नहीं होगा. अगर प्याज के ऊंचे दामों से सरकारें बदलें, तो दिल्ली और राजस्थान में कांग्रेस का नुकसान होगा, वहीं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को. आम जनता को तो खैर कौन पूछता है!

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