लोकप्रिय दैनिक प्रभात खबर में लालू यादव को चारा घोटाला में पांच वर्ष के जेल की सजा होने का समाचार पढ़ा. यह सजा वास्तव में भ्रष्टाचार के सिरमौर के लिए छोटी-सी सजा है. यह सीबीआइ के संयुक्त निदेशक उपेन बिश्वास एवं निदेशक जोगिंदर सिंह की ईमानदारी को पुरस्कार है. यह सजा तत्कालीन बिहार के आठ करोड़ लोगों को जाति-पांति में बांटने तथा उन्हें नरसंहारों में झोक देने के पाप की सजा है.
यह सजा वास्तव में बिहारवासियों के सुनहरे स्वप्न को ध्वस्त कर देनेवाले उस शख्स को मिली है, जिसके लिए न तो राज्य की जनता की कोई कीमत थी, न ही विरोधी दल के नेताओं की, न ही ईमानदार प्रशासकों की. यदि इज्जत थी तो लठैतों की, बाहुबलियों की, भ्रष्टाचारियों की, जी हुजूरी करनेवालों की. आशा है ‘लालू’ जी की लाइन पर चलनेवाले कुछ सबक सीखेंगे!
विपिन कुमार, बेहला, कोलकाता