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गरीबी की दलदल में फंसता बचपन

न किसी बात की चिंता और न ही कंधों पर कोई खास जिम्मेदारी. हर समय बस अपनी ही धुन, मस्ती और पढ़ाई में रमे रहना. यही तो है बचपन, लेकिन यह कोई जरूरी नहीं कि देश के हर बच्चे का जीवन ऐसा ही हो. छोटू-लंबू, चवन्नी-अठन्नी, ओए-अबे जैसी आवाज जब आपके कानों से टकराए, तो […]

न किसी बात की चिंता और न ही कंधों पर कोई खास जिम्मेदारी. हर समय बस अपनी ही धुन, मस्ती और पढ़ाई में रमे रहना. यही तो है बचपन, लेकिन यह कोई जरूरी नहीं कि देश के हर बच्चे का जीवन ऐसा ही हो. छोटू-लंबू, चवन्नी-अठन्नी, ओए-अबे जैसी आवाज जब आपके कानों से टकराए, तो समझ जाइये कि आपके आस-पास बाल मजदूरी करायी जा रही है. अक्सर ऐसे संबोधन ही इसकी पहचान है.

बिखरे बाल, मलिन चेहरा, सूजी आंखें, मैले-कुचैले कपड़े और सहमा-सहमा सा दिखनेवाला लड़का ही तो बाल मजदूर है. यदि ऐसे बाल मजदूरों को देख कर आप नजरअंदाज करते हैं, तो न जाने देश में ऐसे कितने बाल मजदूर अपना बचपन गरीबी की दलदल में खोते जा रहे हैं. अक्सर वे गरीबी अथवा अभिभावकों की प्रताड़ना के कारण मजदूरी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं.

– मनीष सिंह, जमशेदपुर

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