28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

काम के बिना वेतन!

संसद हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत है. जनता के कल्याण और देश के विकास के लिए नीति-निर्धारण से लेकर सरकार के कामकाज पर निगरानी की जिम्मेवारी उसके ऊपर है. सांसदों को इसी उत्तरदायित्व के समुचित निर्वाह के लिए वेतन, भत्ते एवं अन्य सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं. लेकिन, संसद के मौजूदा सत्र में लगातार […]

संसद हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत है. जनता के कल्याण और देश के विकास के लिए नीति-निर्धारण से लेकर सरकार के कामकाज पर निगरानी की जिम्मेवारी उसके ऊपर है. सांसदों को इसी उत्तरदायित्व के समुचित निर्वाह के लिए वेतन, भत्ते एवं अन्य सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं.
लेकिन, संसद के मौजूदा सत्र में लगातार हंगामे के कारण कामकाज नहीं हो पा रहा है. सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों पर बहस की इच्छा जाहिर की है, पर कांग्रेस विवादों में घिरे तीन भाजपा नेताओं- विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान- के इस्तीफे की मांग पर अड़ी है.
बीते एक पखवाड़े से जारी गतिरोध के कारण संसद के दोनों सदनों में पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के तहत न तो लंबित विधेयकों पर चर्चा हो पा रही है, न ही नये विधेयक सदन पटल पर रखे जा रहे हैं. ऐसे में जनभावनाओं के अनुरूप ही केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने मांग रखी है कि सांसदों के लिए भी ‘काम नहीं, तो वेतन नहीं’ का नियम लागू हो. सांसदों को वेतन के अलावा सत्र की अवधि में और समितियों की बैठक के दौरान दैनिक भत्ता भी मिलता है.
संसद के संचालन पर कई अन्य तरह के खर्च भी होते हैं. ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि कामकाज न हो पाने की स्थिति में सांसदों के वेतन और दैनिक भत्तों में कटौती क्यों नहीं होनी चाहिए. एक साधारण कर्मचारी से लेकर शीर्ष अधिकारियों के लिए देशभर में ऐसे नियम हैं कि ठीक से काम नहीं करने या लापरवाह रवैया रखने पर उनका वेतन काट लिया जाता है. दूसरी ओर, संसद में गतिरोध हमारी संसदीय प्रणाली की परंपरा बनती जा रही है और ऐसी स्थितियां संसद ही नहीं, विधानसभाओं एवं विधान परिषदों में भी पैदा होती रही हैं.
संसदीय प्रणाली में दलों को विरोध करने और अपनी बात जोर-शोर से रखने की पूरी आजादी है, लेकिन सदन की कार्यवाही को लंबे समय तक बाधित करने को किसी लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता, परंतु यह देश का दुर्भाग्य यह है कि लगभग सभी राजनीतिक दल ऐसा ही आचरण दिखाते रहे हैं.
विपक्ष की मांग और सरकार के रवैये की वैधता पर अलग-अलग तर्क दिये जा सकते हैं, पर संसद को निरंतर बाधित करने या कामकाज को प्रभावित करने का समर्थन नहीं किया जा सकता. सवाल सिर्फ सांसदों के वेतन का नहीं, हमारी संसदीय प्रणाली की जवाबदेही एवं गतिशीलता का भी है. ऐसे में वेतन में कटौती सांसदों को अनुशासित करने की दिशा में एक पहल हो सकती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें