रांची में आयोजित 53वीं नेशनल ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप के समापन पर सरकारी इंतजामात की पोल खुल गयी. समापन समारोह में जिस तरीके से अंधेरे का साया रहा, वह बदइंतजामी को बयान करने के लिए काफी है. यह एक शर्मनाक घड़ी थी. जिस आयोजन को देशभर के खेल प्रेमी देख रहे हों, उसका समापन अंधेरे में हो, यह हास्यास्पद है.
यही नहीं 4 गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में एक खिलाड़ी के बेहोश हो जाने पर उसके प्राथमिक इलाज तक की सुविधा आयोजन स्थल पर नहीं थी. कोई मेडिकल टीम स्टेडियम में मौजूद नहीं थी. अंतत: दूसरे खिलाड़ियों ने अपनी व्यवस्था के दम पर बीमार खिलाड़ी को अस्पताल पहुंचाया. यह सब तब हुआ, जब आयोजन में देश भर के कई बड़े एथलीट आये थे. झारखंड की खेल मंत्री गीताश्री उरांव अपने विभागीय दल-बल के साथ मौजूद थीं. अचानक बिजली गुल हो गयी और टॉर्च और मोबाइल की रोशनी में समापन समारोह संपन्न हुआ.
यह विडंबना नहीं तो क्या है कि इतने बड़े राष्ट्रीय स्तर के आयोजन को लेकर इतनी कमजोर तैयारी थी. कहने को तो रांची के इस बिरसा मुंडा मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में 50 जेनरेटर हैं, पर एक भी चालू हालत में नहीं है. इस शर्मनाक घटना के बाद निश्चित ही राज्य की छवि धूमिल हुई है. इस वाकये से झारखंड के न सिर्फ खेल प्रेमी, बल्कि आम लोग भी अपने को शर्मसार महसूस कर रहे हैं. सवाल यह उठता है कि क्या राज्य सरकार और नौकरशाह जिन पर ऐसे आयोजनों की बड़ी जिम्मेवारी हुआ करती है, इस घटना से कोई सबक ले पा रहे हैं?
क्या इसके लिए जवाबदेह अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई होगी, ताकि भविष्य में इस तरह की लापरवाही की पुनरावृत्ति नहीं हो. कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि झारखंड एक तरह से अभिशापित राज्य बनता जा रहा है, हर बार कोई न कोई कलंक राज्य के माथे पर लगता रहता है. कभी कोई घोटाला, कभी कोई विवाद, तो कभी किसी नाकामी का कलंक. शर्मसार झारखंड और इसकी जनता अपने हुक्मरानों से इस बात का हिसाब चाहती है कि यह राज्य कब अपने कलंकों से उबरेगा? कब दोषियों पर कार्रवाई होगी? कब यहां विकास का चिराग जलेगा, ताकि पिछड़ेपन का अंधेरा खत्म हो?