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उच्च शिक्षा में सुधार के अच्छे संकेत

हाल के वर्षो में बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति पर भी काफी चर्चा हुई है, बहस हुई है. ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो मानते हैं कि सूबे की उच्च शिक्षा व्यवस्था खस्ताहाल है. विगत वर्षो में सूबे के विश्वविद्यालयों में अकेले वाइस चांसलर के पद को लेकर जिस तरह चर्चा होती रही है, […]

हाल के वर्षो में बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति पर भी काफी चर्चा हुई है, बहस हुई है. ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो मानते हैं कि सूबे की उच्च शिक्षा व्यवस्था खस्ताहाल है.

विगत वर्षो में सूबे के विश्वविद्यालयों में अकेले वाइस चांसलर के पद को लेकर जिस तरह चर्चा होती रही है, विवाद होता रहा है, वह किसी भी संस्थान या समाज के लिए ठीक नहीं है.

इस मसले पर राजभवन सरकार के बीच तनाव की स्थिति बनती ही रही है. वाइस चांसलरों की नियुक्ति पर विवाद के चलते विश्वविद्यालयों को विकास के मामले में काफी नुकसान झेलना पड़ा है. बड़े पैमाने पर काम प्रभावित हुआ है. इससे विश्वविद्यालयों में शिक्षा के परिवेश को भारी क्षति हुई है.

पर, लगता है कि अब शासन तंत्र को इस बात का गहरा अहसास हो गया है कि इस स्थिति को और ज्यादा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अब राज्य सरकार गंभीर है. बदलाव के लिए उसकी पहल स्वागतयोग्य है. दरअसल, उच्च शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग मौजूदा स्थिति से ऊब महसूस कर रहे हैं. वह चाहे शिक्षक हों या सामान्य कर्मचारी, छात्रछात्रा हों या प्रशासनिक अधिकारी.

सरकार की ओर से मिल रहा यह संकेत कि अब आगे चल कर शिक्षाविद ही वाइस चांसलर होंगे, सुखद है. दरअसल, यह पद तो शिक्षाविदों के लिए ही होना भी चाहिए. पढ़तेपढ़ाते इन्हें जो अनुभव हो जाता है, वह वाइस चांसलर के रूप में काम करने में इनके लिए मददगार हो सकता है.

छात्रों शिक्षकों की दिक्कतों और जरूरतों को जितनी संजीदगी से एक शिक्षाविद महसूस कर सकता है, दूसरे लोग नहीं. दूसरे क्षेत्रों से आये लोगों के लिए शिक्षा के क्षेत्र की कमजोरियों को बेहतर ढंग से समझ पाना और उन्हें दूर करने के लिए जरूरी और प्रभावी कदम उठाना उतना आसान नहीं हो सकता, जितना एक शिक्षाविद के लिए. यदि चार दशक पुराने विश्वविद्यालय अधिनियमों में भी सरकार बदलाव चाहती है, तो यह भी स्वागतयोग्य है.

क्योंकि, बीते चार दशकों में गंगा में बहुत पानी बह चुका है. उच्च शिक्षा की दुनिया का भी चेहरा काफी बदल गया है. वैसे, इस मामले में किसी भी नये प्रारूप पर विचार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि बदलाव चाहे जो भी हो, स्तरीय होना चाहिए. भरसक विश्वस्तरीय.

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