अपने राज्य झारखंड की मौजूदा स्थिति देख कर कभी-कभी मन यह सोचने को बाध्य हो जाता है कि काश! झारखंड में वर्षो तक राष्ट्रपति शासन होता. हालांकि यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है, लेकिन जब लोकतंत्र में ‘लोक’ ही गौण हो जाये तो और कोई उपाय भी नहीं है.
प्राय: सभी विभागों में झारखंड में योग्य व्यक्तियों की कमी है. बिहार से अलग होकर झारखंड निर्माण हुए 13 वर्ष गुजरने को हैं, लेकिन एक भी ऐसा मंत्री पैदा नहीं हुवा, जो किसी भी विभाग पर योग्य कर्मियों कि नियुक्ति कर पाया हो.
हाय रे मेरा झारखंड, इससे अच्छा तो राष्ट्रपति शासन में था, जिससे सभी विभागों की नियुक्तियां पटरी पर आ रही थी. टीइटी परीक्षा पास शिक्षकों में भी अपनी नियुक्ति को लेकर आस जगने लगी थी, लेकिन अभी शिक्षकों की नियुक्ति तो दूर, विभाग की मंत्री अपने बयानों से अभ्यर्थियों को झटके दे रही हैं.
संजय महतो, ई-मेल से