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क्या स्त्री होना ही गुनाह है?

अब कौन-सा रास्ता बचा है हमारे लिए? क्या स्त्री होना ही गुनाह है? विकास की सीढ़ियां चढ़ते, ज्ञान-विज्ञान की ऊंचाइयों को छूते, इस देश में उसकी आत्मा- मां, जननी, बेटियां ही सुरक्षित नहीं हैं, तो हम किस विकास की बात करते हैं? विकास केवल भौतिकता का या विकास हमारी घृणित-विकृत मानसिकता को नष्ट कर एक […]

अब कौन-सा रास्ता बचा है हमारे लिए? क्या स्त्री होना ही गुनाह है? विकास की सीढ़ियां चढ़ते, ज्ञान-विज्ञान की ऊंचाइयों को छूते, इस देश में उसकी आत्मा- मां, जननी, बेटियां ही सुरक्षित नहीं हैं, तो हम किस विकास की बात करते हैं? विकास केवल भौतिकता का या विकास हमारी घृणित-विकृत मानसिकता को नष्ट कर एक आदर्श, नैतिक चरित्र का भी होना चाहिए- कभी इस पर भी सोचें जरा.

हम संसद के गलियारों में बैठ कर केवल कानून बनाते रहे-बहसें करते रहे, राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए एक-दूसरे को आरोपित करते हुए एक बार भी हमारी आत्मा ने धिक्कारा नहीं हमें? आज पूरे समाज को मिल कर गंभीर चिंतन करना चाहिए, क्योंकि कहीं न कहीं दोषी हम भी हैं. हमने बच्चों को शायद सही संस्कार नहीं दिये. उनके सामने कोई नैतिक आदर्श का उदाहरण नहीं रखा, जो उनकी प्रेरणा बन सके, उन्हें गंदा, घृणित आचरण करने से रोक सके. जिस घर में पिता द्वारा मां को अपमानित, प्रताड़ित किया जाता हो, वहां बच्चा क्या सीखेगा? पहले हम खुद सुधरें, तब हमारे अच्छे संस्कार हमारे बच्चों को भटकने नहीं देंगे.
पद्मा मिश्र

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