विद्यालयों में मध्याह्न् भोजन एक राष्ट्रीय योजना है. सरकार द्वारा लागू की गयी योजनाएं देश और समाज की भलाई के लिए होती हैं, पर इनका क्रियान्वयन इतना घटिया होता है कि सारी योजनाएं फेल हो जाती हैं. विद्यालयों में मध्याह्न् भोजन की योजना जब से लागू हुई है, शिकायतों का पुलिंदा आये दिन अखबारों में दिखता रहता है. कभी खाने में छिपकली व कीड़े-मकोड़े गिरना, तो कभी सड़े-गले अनाजों का भोजन में इस्तेमाल किया जाना. ऊपर से शिक्षकों का तनाव अलग से.
भोजन से संबंधित कार्यो का निष्पादन करना भी उनकी जिम्मेवारी है. वे पढ़ायेंगे क्या खाक! गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने की उनसे आशा करना ही बेकार है. लोगों की प्रवृत्ति कैसी कुत्सित हो रही है! सारण जिले के प्राथमिक विद्यालय के 23 हंसते-खेलते मासूम बच्चे विषाक्त भोजन खाकर जान से हाथ धो बैठे. यह तो लापरवाही की हद है. अब तो विद्यालयों के चापानलों का पानी पीकर भी कई बच्चों और शिक्षकों की तबीयत बिगड़ रही है. पटना के पालीगंज, सारण, औरंगाबाद और शेखपुरा में चापानल का पानी पीकर बीसियों लोग बीमार हो गये. पैसे के लोभ के कारण, अपना हित साधने के कारण हर योजना का रूप ही बिगड़ जाता है. निर्दोषों की बलि चढ़ाने पर भी इनका हृदय नहीं कांपता.
सरकारी कर्मचारी, नेतागण सब के सब भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे हुए हैं. खबर आयी है कि अब एमबीए के छात्रों को मिड-डे मील की निगरानी, प्रशिक्षण आदि में लगाया जायेगा. पता नहीं, इसका क्या असर होगा! शहरों की तुलना में गांवों में इस योजना की स्थिति ज्यादा खराब है. जब इतनी कु व्यवस्था है तो इस योजना को बंद ही कर दिया जाना चाहिए. कम से कम इससे बच्चों की जानें तो नहीं जायेंगी!