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सद्भाव बहाल करना पहली जरूरत

* जम्मू संभाग में हिंसा पिछले दिनों किश्तवाड़ में जिस तरह से हिंसा भड़की, कई बार भड़की, और जिस तरह से बेकाबू होकर इसने लगभग पूरे जम्मू संभाग को अपनी चपेट में ले लिया, वह पूरा घटनाक्रम एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहा है. केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने संसद में दिये बयान […]

* जम्मू संभाग में हिंसा

पिछले दिनों किश्तवाड़ में जिस तरह से हिंसा भड़की, कई बार भड़की, और जिस तरह से बेकाबू होकर इसने लगभग पूरे जम्मू संभाग को अपनी चपेट में ले लिया, वह पूरा घटनाक्रम एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहा है. केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने संसद में दिये बयान में कहा भी है कि हिंसा की शुरुआत भारत विरोधी नारों और बयानों के कारण हुई है. और फिर यह हिंसा ऐसे समय में भड़की है, जब नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान पिछले कुछ दिनों से संघर्ष विराम का बारबार उल्लंघन करते हुए आतंकवादियों की घुसपैठ की कोशिशों में जुटा है.

नियंत्रण रेखा किश्तवाड़ जिले की सीमा को भले छूती हो, लेकिन जिस तरह से दोनों अप्रिय घटनाएं एक साथ आगे बढ़ रही हैं, उससे इस आशंका को बल मिलता है कि सीमा पार से कोई बड़ी साजिश रची जा रही है.

जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला चाहे जो भी दावे करें, और दंगे भड़काने के आरोपी उनके गृह राज्य मंत्री सज्जाद किचलू ने भले ही इस्तीफा दे दिया हो, इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि उनकी सरकार हालात को संभालने में नाकाम रही है. लेकिन इस वक्त फौरी जरूरत मिलजुल कर सांप्रदायिक सद्भाव को फिर से बहाल करने की है. इसलिए उमर अब्दुल्ला को उनकी नाकामी के लिए घेर रहे राजनीतिक दलों को इस मामले में अति उत्साह दिखाने से बचना चाहिए.

दलों को आरोपप्रत्यारोप की राजनीति में उलझने के बजाय, संजीदा सांसदों का एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल किश्तवाड़ भेज कर सद्भाव का माहौल बनाना चाहिए. राज्य सरकार ने बिगड़े हालात में कानूनव्यवस्था के मद्देनजर यदि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली और जम्मूकश्मीर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष महबूबा मुफ्ती को वहां जाने से रोका था, तो इसे तूल देने से कोई लाभ नहीं होनेवाला.

जम्मूकश्मीर की भौगोलिक एवं सामाजिक संरचना को देखते हुए यह बहुत ही नाजुक मसला है और थोड़ीसी भी चूक हालात को 1990 के उस भयावह दौर में ले जा सकती है, जब धरती के इस स्वर्ग में आतंकवाद और अलगाववाद की आंधी बह रही थी और कश्मीरी पंडितों को सबकुछ छोड़ कर यहां से भागना पड़ा था. इतना ही नहीं, अगले कुछ महीनों के दरम्यान जम्मूकश्मीर समेत कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव भी होनेवाले हैं.

ऐसे समय में देश में अपनेअपने वोट बैंक के मद्देनजर सद्भाव बिगाड़ने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की राजनीतिक कोशिशों के प्रति भी जनता को सावधान रहने की जरूरत है.

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