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क्रोनी कैपिटलिज्म का असली चेहरा

* खेमका की जवाबी चिट्ठी अपने 21 साल के सेवाकाल में 41 से अधिक तबादलों के रिकार्ड के लिए जाने जानेवाले आइएएस अधिकारी अशोक खेमका की सार्वजनिक हुई जवाबी चिट्ठी आंखें खोलनेवाली है. उन्होंने सौ पन्नों की इस चिट्ठी में कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े जमीन सौदे में नियम–कायदों की […]

* खेमका की जवाबी चिट्ठी

अपने 21 साल के सेवाकाल में 41 से अधिक तबादलों के रिकार्ड के लिए जाने जानेवाले आइएएस अधिकारी अशोक खेमका की सार्वजनिक हुई जवाबी चिट्ठी आंखें खोलनेवाली है. उन्होंने सौ पन्नों की इस चिट्ठी में कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े जमीन सौदे में नियमकायदों की अनदेखी का जो ब्योरा राज्य सरकार को सौंपा है, वह क्रोनी कैपिटलिज्म (सांठगांठ का पूंजीवाद) के विद्रूप चेहरे को फिर बेनकाब करता है.

खेमका ने वाड्रा की कंपनी द्वारा करोड़ों का मुनाफा लेकर सितंबर, 2008 में डीएलएफ को बेची गयी जमीन का म्यूटेशन (नामांतरण) बीते साल अक्तूबर में रद्द कर दिया था. इस पर जवाबतलब में खेमका ने जानकारी दी है कि वाड्रा की कंपनी स्काइलाइट हॉस्पिटैलिटी ने फरवरी, 2008 में गुड़गांव के एक गांव में 3.53 एकड़ जमीन का सौदा किया और बैंक बैलेंस नहीं होने के बावजूद 7.5 करोड़ रुपये का चेक जारी किया. तब इस कंपनी की हैसियत कुछ लाख रुपये की ही थी.

पैसों का वास्तविक लेनदेन नहीं होने के कारण खेमका ने सौदे को गैरकानूनी करार दिया. उनका तर्क सही है कि यदि यह फैसला गलत था, तो इसे कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए थी. इतना ही नहीं, सरकारी महकमों में सत्ताधारियों के अपनों का काम कितनी तेजी से होता है, इसकी भी बानगी देखिये.

सौदे के एक माह बाद ही स्काइलाइट को इस जमीन पर कॉमर्शियल कॉलोनी बसाने का लाइसेंस मिल गया. अप्रैल, 2008 में कंपनी ने इसे डीएलएफ को बेचने की अनुमति भी ले ली. अगस्त, 2008 में दोनों कंपनियों के बीच कॉलोनी बसाने का एग्रीमेंट हुआ.

इस प्रक्रिया को रजिस्टर्ड करा कर यानी स्टांप ड्यूटी चुका कर सरकारी खजाने को भी करोड़ों का चूना लगाया गया. लेकिन जिस हुड्डा सरकार ने खेमका के तबादले और मनचाही जांच समिति गठित कर वाड्राडीएलएफ डील को क्लीन चिट दिलवाने में जरा भी देर नहीं लगायी, उसने अब सिर्फ इतना कहा कि मुख्य सचिव मामले को देख रहे हैं. खेमका ने यह भी लिखा है कि इस सौदे में वाड्रा ने प्रति एकड़ 15.78 करोड़ का प्रीमियम कमाया.

हुड्डा सरकार के बीते आठ वर्षो के कार्यकाल में 2,13,666 एकड़ भूमि पर विभिन्न कॉलोनियां बसाने के लाइसेंस जारी हुए हैं. यदि वाड्रा डील को नजीर मानें तो इसमें 3.5 लाख करोड़ रुपये तक का घोटाला सामने सकता है! इस आरोप की गंभीरता मांग करती है कि हुड्डा सरकार सही तथ्यों को जनता के सामने लाये. साथ ही दुर्गाशक्ति मामले में सक्रिय हुईं कांग्रेस सुप्रीमो और केंद्र को भी अपने हिस्से की ईमानदारी दिखानी चाहिए.

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