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भरोसे से मिली है यह ताकत

ऑस्ट्रेलिया दौरा में लगातार असफल रहने के बावजूद कप्तान धौनी ने शिखर धवन पर भरोसा किया. एक समय स्थिति ऐसी बन गयी थी कि धवन का वल्र्ड कप टीम में चयन भी मुश्किल में दिखाई दे रहा था, पर कप्तान का भरोसा था. आखिर धवन ने दोनों मैचों में शानदार पारी खेली. वर्ल्ड कप क्रिकेट […]

ऑस्ट्रेलिया दौरा में लगातार असफल रहने के बावजूद कप्तान धौनी ने शिखर धवन पर भरोसा किया. एक समय स्थिति ऐसी बन गयी थी कि धवन का वल्र्ड कप टीम में चयन भी मुश्किल में दिखाई दे रहा था, पर कप्तान का भरोसा था. आखिर धवन ने दोनों मैचों में शानदार पारी खेली.

वर्ल्ड कप क्रिकेट में भारतीय टीम ने अब तक जो प्रदर्शन किया है, उससे उम्मीद बढ़ती जा रही है. यह वह टीम है, जिससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा रही थी. खास तौर पर गेंदबाजों से. लेकिन, अब तक के दोनों मैचों में इन्हीं गेंदबाजों ने कमाल दिखाया है. भारत के जो गेंदबाज वर्ल्ड कप में खेल रहे हैं, उनमें क्रिकेट की दुनिया के कोई बड़े नाम नहीं हैं. ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और वेस्ट इंडीज के तेज गेंदबाजों के आगे यदि इनकी उपलब्धियों पर गौर करें तो ये कहीं नहीं टिकते. लेकिन, भारतीय गेंदबाज शमी, मोहित शर्मा और उमेश यादव ने अब तक यही साबित किया है कि अपनी टीम पर भरोसा करें, खिलाड़ियों पर भरोसा करें, वे रिजल्ट देंगे. सिर्फ नाम बड़ा होने से कुछ नहीं होता. अगर लगन हो, जुनून हो, अनुशासन हो, टीम का सहयोग हो तो सामान्य खिलाड़ी भी बड़ा से बड़ा काम कर देता है. टीम इंडिया ने पहले पाकिस्तान को और फिर दक्षिण अफ्रीका हरा कर यही साबित किया है. भारत के गेंदबाजों ने दोनों मैचों में किसी में भी विपक्षी टीम को सवा दो सौ का आंकड़ा पार करने नहीं दिया.

याद कीजिए जब 1983 में भारतीय टीम वर्ल्ड कप खेलने गयी थी तो उस टीम के बारे में क्या कहा जाता था. कई विशेषज्ञों तक ने टिप्पणी की थी कि टीम एक मैच भी जीत ले तो काफी होगी. ऐसा इसलिए, क्योंकि उन दिनों वर्ल्ड क्रिकेट में वेस्ट इंडीज की तूती बोलती थी. दो-दो बार की वर्ल्ड चैंपियन टीम. टीम में हेंस, ग्रीनिज, विवियन रिचर्डस और क्लाइव लॉयड जैसे धाकड़ बल्लेबाज. भारतीय टीम में गावस्कर और कपिल ही बड़ा नाम. लेकिन उस टीम ने अपने जज्बे से कमाल कर दिखाया. भारत से उम्मीद इसलिए और नहीं थी, क्योंकि उसके पहले के दो वर्ल्ड कप में भारत सिर्फ एक मैच ही जीत पाया था. वह भी पूर्वी अफ्रीका से. ऐसे में टीम से उम्मीद करना बेकार था. लेकिन, जब वल्र्ड कप शुरू हुआ तो यही टीम खतरनाक बनती गयी. दुनिया की सभी मजबूत टीमों को हरा दिया. कपिल देव तो प्रसिद्ध थे, लेकिन मदनलाल और रोजर बिन्नी जैसे गेंदबाज का दुनिया में कोई स्थान नहीं था. इसके बावजूद इन गेंदबाजों ने विपक्षी टीम को परास्त किया.

टीम में बहुत कुछ कप्तान पर निर्भर करता है. चाहे 1983 का वर्ल्ड कप हो या 2011 का, जब भी भारतीय टीम चैंपियन बनी, कप्तान का बड़ा योगदान रहा. जब 1983 के वर्ल्ड कप फाइनल में भारतीय टीम 183 रन पर आउट हो गयी थी तो कौन जानता था कि भारत चैंपियन भी हो सकता है. ऐसा इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि कपिल को अपने नेतृत्व और अपनी टीम पर भरोसा था. कपिल ने हार नहीं मानी और तय कर लिया था कि वेस्ट इंडीज को 183 के भीतर समेटना है. फिर पूरी योजना इसी आधार पर बनायी. मोहिंदर अमरनाथ और कीर्ति आजाद जैसे सामान्य गेंदबाज भी वेस्ट इंडीज पर भारी पड़े. इस बार भी भारतीय गेंदबाजों के अंदर आत्मविश्वास है. धौनी की कप्तानी है. आगे की यात्र बहुत आसान नहीं होगी, लेकिन दो जीत से जो आत्मविश्वास बढ़ा है, वह टीम इंडिया को काफी आगे ले जाने की उम्मीद जगाता है.

अब आवश्यकता है इस भरोसे को बनाये रखने की. इसमें महेंद्र सिंह धौनी का जवाब नहीं है. ऑस्ट्रेलिया दौरा में लगातार असफल रहने के बावजूद कप्तान धौनी ने शिखर धवन पर भरोसा किया. लगातार मौका दिया. एक समय स्थिति ऐसी बन गयी थी कि धवन का वल्र्ड कप टीम में चयन भी मुश्किल में दिखाई दे रहा था, लेकिन कप्तान का भरोसा था. इसी भरोसे के तहत धवन को मौका मिला और उन्होंने दोनों मैचों में शानदार पारी खेली. हालांकि ऐसा सिर्फ भारतीय टीम के साथ ही नहीं है, वेस्ट इंडीज की टीम में भी गेल लगातार असफल हो रहे थे, लेकिन कप्तान ने उन पर भरोसा किया. अपने तीसरे मैच में गेल ने वह कमाल दिखाया, जो आज तक वर्ल्ड कप में कोई भी खिलाड़ी नहीं दिखा सका था. वर्ल्ड कप में पहला दोहरा शतक.

फिलहाल दो मैचों में शानदार जीत से भारतीय खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ा हुआ है, लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि यह विश्वकप है और इसमें कोई भी टीम कमजोर नहीं है. वेस्ट इंडीज को पहले कमजोर माना जा रहा था, लेकिन यह टीम भी लगातार बड़ा स्कोर खड़ा कर रही है. यहां तक कि यूएइ और स्कॉटलैंड जैसी टीम भी अच्छा खेल रही है. इसलिए भारतीय टीम को अपने उत्साह पर नियंत्रण रखते हुए आगे के मैचों में भी सावधान रहना होगा. भारतीय खिलाड़ी निराशा के भंवर से बाहर निकलने के लिए जिस तरह पहले दोनों मैचों मे जी-जान लगा कर खेले, वैसा ही खेल उन्हें कमजोर टीमों के साथ भी खेलना होगा, ताकि कोई उलट-फेर न हो और भारत कप लेकर लौटे. हम उम्मीद करते हैं कि धौनी के नेतृत्व में पूरी भारतीय टीम जीत का जज्बा और जुनून अंत तक बनाये रखेगी.

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक

प्रभात खबर

anuj.sinha@prabhatkhabar.in

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