पेरिस में पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर आतंकी हमला दुखद है, लेकिन गौर से सोचें तो यह पश्चिमी और इस्लामी मूल्यों के बीच का संघर्ष है. पश्चिम में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का चरम है.
इससे नये-नये विचारों का आगमन हुआ. वैज्ञानिक-तकनीकी प्रगति हुई, लेकिन समाज बाजार बन गया और परिवार टूट गये. इस सभ्यता में धर्म एक औपचारिकता मात्र है, जबकि इस्लाम तुलनात्मक रूप से एक नया धर्म है. दुनिया में रहने के लिए धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता जरूरी है.
पैगंबर मोहम्मद को मजाक या कार्टून का विषय बनाना शर्मनाक है. यह उन करोड़ों लोगों को आहत करता है जो इस्लाम को माननेवाले हैं, लेकिन इसकी वजह से किसी आतंकी घटना को अंजाम देना तो और भी बुरा है. यदि कोई सूरज की ओर थूकता है, तो खुद उसका चेहरा ही गंदा होता है. इसे याद रखने की जरूरत है.
विनय भट्ट, हजारीबाग