विदेशी बैंकों में काला धन रखनेवाले भारतीयों के नाम बताने से ना-नुकर के बाद सरकार ने तीन नाम सर्वोच्च न्यायालय के सामने जाहिर किये हैं. लेकिन इस खुलासे से न तो जांच की प्रगति का पता चलता है और न ही सरकारी रवैये और मंशा पर उठ रहे सवालों के जवाब मिलते हैं. एक अहम […]
विदेशी बैंकों में काला धन रखनेवाले भारतीयों के नाम बताने से ना-नुकर के बाद सरकार ने तीन नाम सर्वोच्च न्यायालय के सामने जाहिर किये हैं. लेकिन इस खुलासे से न तो जांच की प्रगति का पता चलता है और न ही सरकारी रवैये और मंशा पर उठ रहे सवालों के जवाब मिलते हैं.
एक अहम सवाल तो यही पूछा जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित विशेष जांच दल की बजाय जांच पर नियंत्रण सरकार के हाथ में क्यों रहे? सरकारी नियंत्रण का अर्थ है खाताधारकों और काले धन की अर्थव्यवस्था पर भी उसका नियंत्रण. ऐसे में गोपनीय दस्तावेजों तक पहुंच रखनेवाले राजनेता व नौकरशाहों द्वारा अपनी ताकत के आर्थिक एवं राजनीतिक दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. भाजपा ने 2011 में एक रिपोर्ट में काला धन का आकार 100 लाख करोड़ से अधिक का बताया था.
पार्टी ने इस साल आम चुनाव के दौरान काला धन की जांच करने और उसे देश में वापस लाने का वादा किया था. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार की पिछले पांच महीनों की जांच-पड़ताल सिर्फ तीन नामों तक ही क्यों पहुंची है? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले दिनों बयान दिया था कि काला धन रखनेवालों के नाम बताने से कांग्रेस परेशान हो सकती है. ऐसे बयानों का क्या मतलब निकाला जाये, क्या वित्त मंत्री नामों का खुलासा करने से पहले किसी दल की सुविधा-असुविधा का ख्याल करेंगे! काला धन देश की संपदा की गैरकानूनी तरीके से लूट से उत्पन्न होता है. इस मामले में किसी तरह की अगंभीरता या टाल-मटोल उचित नहीं कही जा सकती.
जिन तीन नामों का खुलासा हुआ है, उनमें कोई बड़ा उद्योगपति या राजनेता नहीं है. तो क्या सूची में बडे़ लोग हैं ही नहीं या सिर्फ कुछ लोगों के नाम बता कर जांच जारी होने का भ्रम फैलाया जा रहा है? हालांकि सरकार ने कहा है कि विदेशों में खाता रखनेवाला हर व्यक्ति अपराधी नहीं है, पर बयानबाजियों से तो ऐसे ही संकेत निकल रहे हैं.
इसलिए जांच में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि नियमों के अनुरूप विदेश में खाता रखनेवाले लोगों को परेशानी न हो. कुल मिला कर जनता को सरकार से ऐसे गंभीर कदमों की अपेक्षा है, जिसमें काले धन की कहानियां सिर्फ फैंटेसी बन कर न रह जाये.