34.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

चीन की विस्तारवादी योजना

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan @rediffmail.com श्रीलंका के ‘हंबनटोटा’ बंदरगाह पर कब्जे को पुनः याद करवाते हुए, चीन अब केन्या के अत्यंत लाभकारी ‘मुंबासा’ बंदरगाह पर भी काबिज होने जा रहा है. गौरतलब है कि केन्या के रेलवे के विकास के लिए चीन ने उसको भारी मात्रा में उधार दिया हुआ है. चीन […]

डॉ अश्वनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan

@rediffmail.com

श्रीलंका के ‘हंबनटोटा’ बंदरगाह पर कब्जे को पुनः याद करवाते हुए, चीन अब केन्या के अत्यंत लाभकारी ‘मुंबासा’ बंदरगाह पर भी काबिज होने जा रहा है. गौरतलब है कि केन्या के रेलवे के विकास के लिए चीन ने उसको भारी मात्रा में उधार दिया हुआ है. चीन जल्द ही अपने ऋण की अदायगी न होने के कारण ऐसा करने जा रहा है. यही नहीं, नैरोबी स्थित अंतर्देशीय कंटेनर डिपो भी अब चीन द्वारा अधिग्रहण के खतरे में है.

याद रखना होगा कि लगभग इसी प्रकार की कार्रवाई श्रीलंका के साथ भी की गयी थी, जब श्रीलंका को चीन का उधार न चुका पाने के कारण ‘हंबनटोटा’ बंदरगाह को 99 वर्ष की लीज पर चीन को सौंपना पड़ा था. लगभग हंबनटोटा की तर्ज पर ही केन्या का मुंबासा बंदरगाह भी चीन के कब्जे में जानेवाला है. गौरतलब है कि चीन ने केन्या की रेलवे परियोजना एसजीआर के निर्माण के लिए 550 अरब केन्याई शिलिंग उधार दी हुई है.

चूंकि इस परियोजना से पर्याप्त प्राप्ति नहीं हो पा रही और पहले ही साल उसमें 10 अरब केन्याई शिलिंग का नुकसान हुआ है, ऐसे में चीन उस परियोजना को ही नहीं, बल्कि उस परियोजना के घाटे की भरपाई के लिए उसके मुुंबासा बंदरगाह को भी अधिग्रहित करने जा रहा है. केन्या के आॅडिटर जनरल का कहना है कि चीन के एक्जिम बैंक के साथ एकतरफा समझौता हुआ, और यहां तक कि इस समझौते की मध्यस्थता भी चीन में ही हो सकती है.गौरतलब है कि अब भी एसजीआर की सभी प्राप्तियां चीन के कब्जे वाले समझौते के अनुसार एसक्रो खाते में ही जाती हैं.

इस समझौते की सबसे खतरनाक धारा यह है कि केन्या सरकार ने चीन को न्यूनतम व्यवसाय की गारंटी दी हुई है. इस प्रकार चीन के साथ हुए इस खतरनाक समझौते के कारण अब केन्या की महत्वपूर्ण सार्वजनिक परिसंपत्तियां चीन के कब्जे में जाने को तैयार हैं.

गौरतलब है कि बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव) को एक बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर पहल कहा जा रहा है, जिसके अनुसार सड़क, रेल और समुद्री मार्गों को विकसित करते हुए दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आवाजाही में सुधार किया जायेगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिल सकेगा.

इस प्रस्ताव को ‘ऐतिहासिक सिल्क रोड’ की अवधारणा से जोड़ा जा रहा है. बताया जा रहा है कि इस योजना के पूरे होने से कई देशों के बीच सड़क, रेल और जल मार्ग की कनेक्टिविटी तो सुधरेगी, जिससे सामानों की आवाजाही आसान और सस्ती होगी, साथ ही साथ इससे समय की भी बचत होगी.

चीन यह तर्क दुनिया के गले उतारने की कोशिश कर रहा है कि बीआरआई पहल विकासशील देशों को आपसी व्यापार, आर्थिक लेनदेन और संपर्क बढ़ाने में उपयोगी होगी. बीआरआई के फायदे बताते हुए सार्वजनिक चर्चाओं में कोशिश यह हो रही है कि इसके राजनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक खतरों को छुपाया जाए.

किसी भी योजना की सफलता उसके वित्तीयन पर निर्भर करती है. यह बात इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर ज्यादा लागू होती है. जब बेल्ट रोड परियोजना की शुरुआत हुई थी, तब वित्तीयन का सारा दारोमदार चीन की सरकार, चीन के नेतृत्व वाले एशियाई इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश बैंक और चीन की संस्थाओं पर ही रहा.

वास्तव में हुआ यह कि चीन की वित्तीयन व्यवस्था में चीन सरकार द्वारा स्वयं अथवा चीनी सरकार के अंतर्गत वित्तीय संस्थाओं द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के कारण, कई देश कर्ज के जाल में फंस गये. इस बाबत श्रीलंका एक बड़ा उदाहरण बना. श्रीलंका के हाल को देख कई देशों ने चीन के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रस्तावों से किनारा करना शुरू कर दिया.

गौरतलब है कि दो साल पहले एक अरब डाॅलर के कर्ज के असहनीय बोझ के चलते श्रीलंका को अपना एक बंदरगाह खोना पड़ा. इसी प्रकार जिबाऊटी, जो अफ्रीका में अमेरिका का मुख्य सैन्य अड्डा रहा है, में एक और बंदरगाह भारी कर्ज के चलते अब चीन की एक कंपनी के नियंत्रण में जाने की कगार पर है. देशों के बढ़ते कर्जजाल के कारण बीआरआई का विरोध भी बढ़ता जा रहा है. पिछले दो सालों में बीआरआई भागीदार देशों में विपक्षी दल ही नहीं, कुछ सामाजिक संस्थाएं भी बीआरआई का जमकर विरोध कर रही हैं.

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) बीआरआई की पहली परियोजना बतायी जाती है. उसका अनुभव भविष्य के लिए पथ-प्रदर्शक माना जाना चाहिए. चार वर्ष पहले पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा था कि सीपीईसी पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के लिए एक ‘गेम चंेजर’ साबित होगा.

लेकिन चार साल बाद जिस तरह पाकिस्तान कर्ज में डूब गया है, सरकारी राजस्व नहीं बढ़ रहा है और वहां की ग्रोथ 2017-18 में 5.8 प्रतिशत से घटती हुई 2018-19 में 3.4 प्रतिशत पहुंच गयी है, जिसके 2019-20 में 2.7 प्रतिशत हो जाने की आशंका है, पाकिस्तान में कोई भी यह नहीं कह रहा है कि सीपीईसी ‘गेम चंेजर’ है.

पाकिस्तान में चीन द्वारा बनायी जा रही इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की भारी लागत के चलते पाकिस्तान पर ऋण का बोझ तो बढ़ रहा है, साथ ही अदायगी का दबाव भी बढ़ रहा है. वहीं इन इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से लाभ बहुत अनिश्चित हैं. इसलिए पाकिस्तान सीपीईसी परियोजना से बहुत आशान्वित नहीं है.

हमें यह समझना होगा कि विश्व बैंक को भी बीआरआई योजना के संदर्भ में कई आशंकाएं हैं. विश्व बैंक की कई रपटों में इस पर विस्तार से चर्चा की गयी है, लेकिन अभी तक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा बीआरआई परियोजना को अपने हाथ में लेकर बढ़ाने के प्रयासों में कमी दिखती है. चीन के तमाम प्रकार के विरोधाभास और चीन की स्पष्ट विस्तारवादी नीति इस समस्या के समाधान में रोड़ा बन सकते हैं.

आनेवाला समय बातायेगा कि क्या चीन स्वयं की ‘एकला चलो’ नीति से बाहर आकर बीआरआई को वैश्विक मंचों के माध्यम से आगे बढ़ाने के लिए विस्तृत प्रयास करेगा, अथवा उस पर आ रही आशंकाओं को सही सिद्ध करते हुए अपनी उसी संकीर्ण मानसिकता में रहकर स्वयं अपनी ही योजना में बाधाएं खड़ी कर देगा. कुछ भी हो, फिलहाल तो कम-से-कम दस देश चीन की कर्जजाल नीति का शिकार होकर भारी नुकसान में हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें