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अपनों के विघ्नों से घिरी पार्टी

।। अनंत विजय ।।(वरिष्ठ पत्रकार)– नेताओं की महत्वाकांक्षाओं की टकराहट के बीच गोवा में हो रही भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के संबंध में कोई साफ संदेश निकलना चाहिए. – अटल बिहारी वाजपेयी की एक प्रसिद्ध कविता है ‘आओ फिर से दिया जलायें’. कविता की अंतिम पंक्तियां हैं- ‘आहुति […]

।। अनंत विजय ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
– नेताओं की महत्वाकांक्षाओं की टकराहट के बीच गोवा में हो रही भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के संबंध में कोई साफ संदेश निकलना चाहिए. –

अटल बिहारी वाजपेयी की एक प्रसिद्ध कविता है ‘आओ फिर से दिया जलायें’. कविता की अंतिम पंक्तियां हैं- ‘आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा, अंतिम जय का वज्र बनाने, नव दधीचि हड्डियां गलायें, आओ फिर से दीया जलायें.’ अगर हम अटल जी की इन पंक्तियों को भाजपा के अंदर सियासी घमासान के बरक्स देखें तो पहली पंक्ति को आम चुनाव से जोड़ सकते हैं.

2014 के आम चुनाव रूपी यज्ञ की आहुति बाकी है, लेकिन पार्टी को अपनों के विघ्नों ने घेरा हुआ है. भाजपा के लिए अगला आम चुनाव अबतक का सबसे आसान चुनाव साबित हो सकता है. कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए-2 की साख सबसे निचले स्तर पर है. घपलों-घोटालों से मनमोहन सरकार बुरी तरह लड़खड़ाई हुई है. महंगाई से जनता त्रस्त है. देश की विकास दर दशक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है.

राजनीतिक विश्‍लेषक व चुनाव पूर्व सर्वे लगातार इशारा कर रहे हैं कि अगले आम चुनाव में कांग्रेस की जीत लगभग नामुमकिन है. ऐसे में भाजपा प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते स्वाभाविक तौर पर सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार होकर उभर रही है, पर इस राह में सबसे बड़ी बाधा पार्टी नेताओं की महत्वाकांक्षाओं की टकराहट है. पार्टी में नेतृत्व को लेकर जबरदस्त खींचतान है.

इस बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में सबसे मजबूत व निर्णायक नेता की छवि बनाने में कामयाब हुए हैं. हालिया उपचुनावों में गुजरात की दो लोकसभा और चार विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर मोदी के हौसले बुलंद हैं. उनके समर्थक अति उत्साह में इस नतीजे को 2014 के आम चुनाव का क्वार्टर फाइनल मान रहे हैं.

अगर अखबारों और टीवी चैनल के चुनाव पूर्व सर्वे के नतीजों पर गौर करें तो कमोबेश बहुमत की राय भी नरेंद्र मोदी को देश का कमान सौंपने के पक्ष में बनती नजर आ रही है. अंतिम जय का वज्र बनाने के लिए मोदी रूपी नव दधीचि हड्डियां गलाने के लिए तैयार है, लेकिन पार्टी के कई अन्य नेता एक बार फिर से दीया जलाने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. पार्टी के कई आला नेता मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर सहमत नहीं दिख रहे हैं.

मोदी को लेकर उनके मन में एक जिच नजर आती है. खास कर लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज के मन में. सुषमा को जब भी मौका मिलता है, वे यह कहने से नहीं चूकती हैं कि प्रधानमंत्री पद का फैसला बीजेपी की सर्वोच्च नीति निर्धारक समिति संसदीय बोर्ड करेगा. उन्हें लगता है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होने की वजह से पीएम पद की स्वभाविक दावेदारी उनकी है.

उधर, लालकृष्ण आडवाणी के मन से प्रधानमंत्री बनने की हसरत खत्म नहीं हुई है. तकरीबन एक दशक पहले नरेंद्र मोदी को आडवाणी का जोरदार समर्थन हासिल था. गुजरात दंगों के बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी खफा हुए, तब भी आडवाणी का प्रत्यक्ष और परोक्ष आशीर्वाद मोदी को प्राप्त था. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनावों में जीत का हैट्रिक लगाने के बाद मोदी के मन में प्रधानमंत्री पद की ख्वाहिश हिलोरें लेने लगीं. उनके इस ख्वाब को सोशल मीडिया ने खूब हवा दी.

दूसरी ओर, 2009 में मुंह की खाने के बावजूद यूपीए की खस्ता हालत देख आडवाणी के मन के कोने में भी पीएम पद की लालसा फिर जगी, लेकिन पीएम की कुर्सी और अपने बीच उन्हें मोदी सबसे बड़ी बाधा नजर आने लगे. जब भी उन्हें मौका मिलता है, मोदी को किनारा लगाने की कोशिश में जुट जाते हैं. अभी हाल में उन्होंने मोदी के विकास पुरुष की छवि को पंचर करने की भी कोशिश की.

आडवाणी ने कहा कि गुजरात तो पहले से ही स्वस्थ था जिसे मोदी ने उत्कृष्ट कर दिया, जबकि शिवराज सिंह चौहान ने बीमारू राज्य को स्वस्थ किया है. आडवाणी ने ऐसा कह कर मोदी की सबसे बड़ी ताकत पर प्रहार किया.

यही बात कांग्रेसी भी कहते रहे हैं. मोदी की सबसे बड़ी ताकत उनकी विकास पुरुष की छवि ही है. इसके अलावा आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान की तुलना अटल जी से करके एनडीए के सबसे बड़े घटक दल के नेता नीतीश कुमार को भी एक संदेश दे दिया है. गौरतलब है कि दिल्ली की अधिकार रैली में नीतीश कुमार ने पीएम पद के लिए अटल जी जैसे व्यक्तित्व की वकालत की थी.

भाजपा के बारे में माना जाता है कि जब तक किसी नेता को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन हासिल नहीं होगा तब तक उसे पार्टी में सर्वोच्च पद हासिल नहीं हो सकता है. संघ प्रमुख मोहन भागवत की पसंद नितिन गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोल कर आडवाणी ने संघ की नाराजगी मोल ली हुई है. संघ एक बार पहले भी जिन्ना प्रकरण में आडवाणी को आईना दिखा चुका है.

इस बीच मोदी में आरएसएस को एक ऐसा नेता दिखा, जिसके बूते वह हिंदुत्व की अपनी राजनीति को परवान चढ़ा सकता है. योगगुरु बाबा रामदेव के हरिद्वार के आश्रम के उद्घाटन के मौके पर बीते 26 अप्रैल को कर्नाटक के उडुपी मठ के श्री श्री विश्वेश्वर तीर्थ स्वामी ने मोदी को आशीर्वाद दिया.

स्वामी ने मोदी को राम और कृष्ण, दोनों करार दिया और कहा कि यूपीए के भ्रष्टाचार रूपी रावण का वही नाश कर सकते हैं. स्वामी ने जिस तरह से मोदी की तारीफ की, उससे यह तो साफ हो गया कि संघ में मोदी का सितारा चमक रहा है. उनके बयान से आडवाणी खेमे को तगड़ा झटका लगा. गौरतलब है कि उडुपी मठ के स्वामी जिन्ना प्रकरण के दौरान आडवाणी के समर्थन में थे.

दरअसल भाजपा में इस वक्त सियासत का ऐसा खेल चल रहा है जिसमें किसी की जीत होती नहीं दिख रही है. एक तरफ मोदी हैं, तो दूसरी तरफ आडवाणी और सुषमा स्वराज. दोनों गुटों के झगड़े के बीच अध्यक्ष राजनाथ सिंह अपनी गोटी फिट करने में लगे हैं. उनको लगता है कि मोदी और आडवाणी खेमे में ठनने के बाद वे दोनों गुटों को स्वीकार्य हो सकते हैं.

जिस तरह से गडकरी को अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद तमाम नाम चले, लेकिन फायदा राजनाथ सिंह को ही हुआ. राजनाथ सिंह को संघ का भी आशीर्वाद प्राप्त है, एनडीए घटक दलों को भी उनके नाम पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

उधर, कुछ नेता मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी चढ़ाने में लगे हैं. लेकिन जिस तरह से पार्टी में नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है, उसे देखते हुए आडवाणी की राह आसान नहीं लगती. गोवा में हो रही पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के संबंध में कोई साफ संदेश निकलना चाहिए.

फिलहाल पार्टी के आला नेताओं के बीच मचे घमासान पर अटल जी की ही एक और कविता याद आ रही है- ‘अपनी ही छाया से बैर, गले लगने लगे हैं गैर, खुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता, बात बनाएं, बिगड़ गयी, दूध में दरार पड़ गयी है.’ साफ है कि अगर समय रहते दूध में दरार पड़ने से नहीं रोका गया, तो यूपीए -3 की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.

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