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बैंकिंग तंत्र पर भरोसे को बचायें

सतीश सिंह आर्थिक विशेषज्ञ si.ghsatish@sbi.co.i. पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी (पीएमसी) बैंक में हुए घोटाले ने देश के सहकारी बैंकों पर सवाल खड़ा कर दिया है. एक अनुमान के मुताबिक यह घोटाला लगभग 7,000 करोड़ रुपये का है. इस बैंक की 137 शाखाएं छह राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में फैली हुई हैं. इसमें ग्राहकों […]

सतीश सिंह
आर्थिक विशेषज्ञ
si.ghsatish@sbi.co.i.
पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी (पीएमसी) बैंक में हुए घोटाले ने देश के सहकारी बैंकों पर सवाल खड़ा कर दिया है. एक अनुमान के मुताबिक यह घोटाला लगभग 7,000 करोड़ रुपये का है. इस बैंक की 137 शाखाएं छह राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में फैली हुई हैं. इसमें ग्राहकों के 11,617 करोड़ रुपये जमा हैं.
यह देश के पांच प्रमुख शहरी सहकारी बैंकों में शामिल है. पीएमसी बैंक के क्रेडिट विभाग की महिला कर्मचारियों के एक समूह ने व्हिसल ब्लोअर बनकर इस घोटाले का पर्दाफाश किया. तदुपरांत, 24 सितंबर को केंद्रीय बैंक ने इसका नियंत्रण छह महीनों के लिए अपने हाथों में लिया और नगद निकासी की सीमा तय की, जिससे खाताधारकों में घबराहट फैल गयी.
पीएमसी में 1814 कर्मचारी काम करते हैं. अपनी स्थापना के समय पीएमसी एक सहकारी बैंक था, लेकिन वर्ष 2000 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसे अनुसूची वाणिज्यिक बैंक का दर्जा दिया गया. पीएमसी अनुसूचित बैंक का दर्जा हासिल करनेवाला सबसे युवा बैंक है.
पीएमसी में बीते चार सालों से प्राथमिकता वाले क्षेत्र को दिये जानेवाले कर्ज का हिस्सा लगातार कम हो रहा था. बैंक ने अपने कुल 8,800 करोड़ रुपये के कर्ज में से 73 प्रतिशत यानी 6,424 करोड़ रुपये का कर्ज केवल एक ही कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) और इसकी सहायक कंपनियों को दे दिया. फिलहाल, बैंकिंग क्षेत्र में गैर निष्पादित आस्ति (एनपीए) आठ लाख करोड़ के करीब है. इस घोटाले से बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए और भी बढ़ेगी.
एचडीआईएल और उसकी सहायक कंपनियों ने कर्ज की राशि छुपाने के लिए 44 कर्ज के खाते खोले, जिनमें यह कर्ज की राशि अंतरित की गयी. इसके अलावा भी पीएमसी बैंक में 21,049 खाते फर्जी खाते खोले गये, जिनमें से अधिकतर या तो मृत थे या फिर इन लोगों ने इस बैंक में अपने खाते बंद कर दिये थे. गौरतलब है कि ये खाते कोर बैंकिंग सिस्टम में नहीं खोले गये थे. इन्हें, एडवांस मास्टर इंटेंड एंट्री के रूप में रिजर्व बैंक में पेश किया गया था.
इस बैंक के खाताधारकों में गरीब भी हैं और अमीर भी. ऐसे सेवानिवृत्त और बुजुर्ग खाताधारक भी हैं, जो जमाराशि पर मिलनेवाले ब्याज से अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
रिजर्व बैंक द्वारा शुरू में नकदी निकासी की सीमा एक हजार रुपये तक सीमित की गयी, जिसे बाद में बढ़ाकर 10,000 रुपये फिर, 25,000 और 15 अक्तूबर को 40,000 रुपये किया गया. रिजर्व बैंक के अनुसार, बैंक के कुल ग्राहकों में 90 प्रतिशत ऐसे हैं, जिनकी जमा राशि ढाई लाख रुपये से कम है और पैसा निकालने की सीमा बढ़ने से करीब 70 प्रतिशत खाताधारक अपना पूरा पैसा बैंक से निकाल पायेंगे. लेकिन, समस्या का समाधान निकलता दिखायी नहीं दे रहा है.
सहकारी बैंकों में घोटाले का एक बड़ा कारण रिजर्व बैंक और रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव की दोहरी नियंत्रण व्यवस्था को माना जा रहा है.देखा जाये, तो दोनों नियंत्रकों से निगरानी में चूक होने से ही पीएमसी बैंक में घोटाला हुआ. पीएमसी बैंक के द्वारा पिछले चार सालों से प्राथमिकता क्षेत्र को दिये जानेवाले कर्ज में कमी आ रही थी. चार साल पहले इस बैंक द्वारा प्राथमिकता क्षेत्र को दिये गये कर्ज का प्रतिशत 40 था, जो मार्च, 2019 में कम होकर 15.6 प्रतिशत हो गया. पीएमसी बैंक का प्राथमिकता क्षेत्र को दिया गया कर्ज वर्ष 2016 में 24.25 प्रतिशत और 2017 में 16.4 प्रतिशत रहा, जबकि इसे 40 प्रतिशत होना चाहिए था. अगर ऑडिटर्स सतर्क रहते, तो शायद इस घोटाले का पर्दाफाश पहले ही हो जाता.
एक जनवरी 2007 से 31 मार्च 2017 के बीच महाराष्ट्र सहकारी बैंक में लगभग 25,000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. अगस्त 2006 को रिजर्व बैंक ने महाराष्ट्र के समता सहकारी बैंक के लेनदेन पर पाबंदी लगा दी थी. बैंक में 145 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. तत्कालीन संचालक मंडल के प्रमुख मिलिंद चिमुरकर ने इस घोटाले को अंजाम दिया था. यह मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है.
गुजरात स्थित माधवपुरा मर्चेंटाइल सहकारी बैंक में वर्ष 2001 में लगभग 1200 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था, जिसमें बैंक के 45,000 ग्राहकों का पैसा एक साल तक फंसा रहा. इस बैंक के प्रबंधन ने रिजर्व बैंक के नियमों का उल्लंघन करते हुए स्टॉक ब्रोकर्स को पैसा देना शुरू कर दिया था. इस घोटाले में तत्कालीन चेयरमैन रमेशचंद्र पारिख, प्रबंध निदेशक देवेंद्र पांड्या सहित 13 लोग शामिल थे.
पीएमसी 24वां ऐसा सहकारी बैंक है, जिसे रिजर्व बैंक ने एक साल के अंदर अपने नियंत्रण में लिया है. अब तक रिजर्व बैंक ने 26 सहकारी बैंकों को घोटालों या परिचालन में गड़बड़ी या अनियमितता के कारण अपने नियंत्रण में लिया है. मार्च 2019 तक देश में 1,542 शहरी सहकारी बैंक थे, जबकि 2018 में इनकी संख्या 1,551 थी. इस तरह गड़बड़ी या घोटाले की वजह से एक साल में नौ सहकारी बैंक बंद हो गये.
देश में मार्च 2018 तक कुल 98,163 सहकारी बैंक थे, जिनमें से 96,612 ग्रामीण सहकारी बैंक व 1,551 शहरी सहकारी बैंक थे. शहरी सहकारी बैंकों में सिर्फ 54 अनुसूचित एवं 1,497 गैर अनुसूचित बैंक थे.
ग्रामीण सहकारी बैंकों में सबसे अधिक 95,595 प्राइमरी कृषि ऋण सोसाइटी हैं. वर्ष 1993 से वर्ष 2004 के बीच रिजर्व बैंक ने बड़ी संख्या में शहरी को-ऑपरेटिव बैंकों को लाइसेंस दिये, जिससे इनकी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई. हालांकि, बाद में इनका विलय भी हुआ. केवल महाराष्ट्र में 72 सहकारी बैंकों का विलय हुआ. वर्ष 2004 में 1926 शहरी को-ऑपरेटिव बैंक थे, जो वर्ष 2018 में घटकर 1,551 हो गये. वर्ष 2004 में इन बैंकों की पूंजी 1,32,100 करोड़ रुपये थी, जो वर्ष 2018 में बढ़कर 5,63,200 करोड़ रुपये हो गयी.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, भारतीय बैंकिंग प्रणाली मजबूत और स्थिर है. पीएमसी घोटाले के आधार पर पूरी बैंकिंग प्रणाली को त्रुटिपूर्ण मानना गलत है.
यह सच भी है, लेकिन देश में सहकारी बैंकों के संदर्भ में निगरानी तंत्र बहुत ही कमजोर है, जिसे मजबूत बनाने की जरूरत है. साथ ही, खाताधारकों की जमा पूंजी बैंकों में सुरक्षित रहे, इसके लिए बीमा कवर में इजाफा करने की भी जरूरत है. उम्मीद है कि पीएमसी बैंक के घोटाले के निहितार्थों से सबक सीखते हुए रिजर्व बैंक जल्द ही इस दिशा में कारगर कदम उठायेगा.

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