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धर्म बड़ा या इनसानियत ?

हम हिंदू, उसमें एक रामवाला, एक साईंवाला. हम मुसलिम, पर तू शिया, मैं सुन्नी. इस तरह धर्म के नाम पर इनसान न जाने क्या-क्या फर्क करता रहा है. यहां तक कि एक-दूसरे का खून भी बहाता रहा है.लेकिन क्या इससे मनुष्य जाति को अब तक कोई लाभ हो सका? इस विराट अनंत ब्रह्मांड में यदि […]

हम हिंदू, उसमें एक रामवाला, एक साईंवाला. हम मुसलिम, पर तू शिया, मैं सुन्नी. इस तरह धर्म के नाम पर इनसान न जाने क्या-क्या फर्क करता रहा है. यहां तक कि एक-दूसरे का खून भी बहाता रहा है.लेकिन क्या इससे मनुष्य जाति को अब तक कोई लाभ हो सका? इस विराट अनंत ब्रह्मांड में यदि कोई विराट शक्ति मौजूद है भी, तो वह जरूर इस कर्म प्रधान संसार में किसी प्रकार की दखलअंदाजी कर पाने में विवश होगा. नहीं तो क्या इस संसार में एक भी पापकर्म हो पाता? मगर आज जघन्य से जघन्यतम पापकर्म हो रहे हैं.

साथ ही, आज परिस्थियां इतनी प्रतिकूल हो गयी हैं कि हर तरफ अशांति ही अशांति, दु:ख ही दु:ख व्याप्त है. इसलिए, अब हमें सारे पाखंडों को छोड़कर, यह तय करना ही होगा कि इस दुनिया में इनसानी जाति के लिए धर्म जरूरी है या फिर उसकी इनसानियत.

शशिधर मुखियार, खूंटी

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