वित्त मंत्री अरुण जेटली गुरुवार को जब 2014-15 का केंद्रीय बजट पेश कर रहे थे, तो पूरे देश की तरह झारखंड के लोग भी उनसे उम्मीद लगाये बैठे थे. वे जानना चाह रहे थे कि झारखंड के लोगों को खास क्या मिला. जब आइआइटी खोलने की बात कहते हुए मंत्री कई राज्यों के नाम ले रहे थे, झारखंड के लोग अपने राज्य के नाम का इंतजार कर रहे थे. लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी.
संस्था के रूप में अगर कुछ मिला, तो वह है कृषि अनुसंधान केंद्र. बजट में एक ऐसी घोषणा हुई है जिस पर अगर केंद्र अमल करे तो झारखंड को काफी लाभ होगा. वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि जिन राज्यों में खनिज है, उनको खनिज पर मिलनेवाली रायल्टी की दर पर में परिवर्तन किया जायेगा. झारखंड से बड़े पैमाने पर कोयला, लौह अयस्क व अन्य खनिजों को बाहर भेजा जाता है. जिन क्षेत्रों में खनन होता है, वहां के लोगों के जीवन पर, वहां के पर्यावरण पर असर पड़ता है.
इसके एवज में राज्य को मामूली राजस्व मिलता है. झारखंड जैसे राज्य की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक खनिज से मिलनेवाले राजस्व पर ही निर्भर करती है. बहुत दिनों से राज्य सरकार की मांग है कि इस रायल्टी को बढ़ाया जाये. यहां बीसीसीएल, सीसीएल, इसीएल की खदानें हैं. धनबाद, हजारीबाग और रांची जिले में कोयले की खुदाई होती है, लोहरदगा में बड़े पैमाने पर बाक्साइट की खदान है. सिंहभूम में लौह अयस्क है. अगर केंद्र रायल्टी की दर में अच्छी बढ़ोतरी करता है तो राज्य को इसका लाभ मिलेगा.
लेकिन मामूली बढ़त करता है तो कुछ खास फायदा नहीं होनेवाला. नये आइआइटी की सूची में झारखंड नहीं है. केंद्र भले ही यह तर्कदेने लगे कि जमीन के संकट को देखते हुए झारखंड में आइआइटी नहीं खोला जा सकता. लेकिन, सरकार चाह ले तो यह भी संभव है. झारखंड में केंद्र सरकार के अनेक उपक्रम हैं जिसके पास हजारों एकड़ जमीन बेकार पड़ी है. बोकारो स्टील प्लांट, एचइसी के पास जमीन है. इस जमीन का उपयोग आइआइटी या अन्य बड़ी संस्थाओं के लिए किया जा सकता है. सच यह है कि झारखंड प्राथमिकता की सूची में नहीं है. यहां की आवाज केंद्र तक नहीं पहुंचती है, इसलिए इस राज्य की उपेक्षा हो रही है.