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किसानों की आय बढ़ाने की जरूरत

देविंदर शर्मा कृषि अर्थशास्त्री किसान वेतन आयोग के तहत किसानों के लिए कम से कम दस हजार महीने की आमदनी की व्यवस्था होनी चाहिए. हालांकि, महंगाई के हिसाब से यह रकम भी ज्यादा नहीं है, लेकिन माहवार 2,400 के वर्तमान आंकड़े से तो यह ठीक ही रहेगा. मैन्यूफैरिंग क्षेत्र पर और ध्यान देना होगा डॉ […]

देविंदर शर्मा

कृषि अर्थशास्त्री

किसान वेतन आयोग के तहत किसानों के लिए कम से कम दस हजार महीने की आमदनी की व्यवस्था होनी चाहिए. हालांकि, महंगाई के हिसाब से यह रकम भी ज्यादा नहीं है, लेकिन माहवार 2,400 के वर्तमान आंकड़े से तो यह ठीक ही रहेगा.

मैन्यूफैरिंग क्षेत्र पर और ध्यान देना होगा

डॉ अश्विनी महाजन

अर्थशास्त्री, डीयू

एक बजट कोई अंतिम दस्तावेज नहीं होता. वित्त मंत्री चाहें, तो इस वित्तीय वर्ष के दौरान भी कुछ और कदम उठाते हुए मैन्यूफैरिंग क्षेत्र को प्रगति की राह पर ले जा सकते हैं.

पिछले लगभग दो दशकों के विकास का अनुभव यह रहा है कि जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 25 प्रतिशत से कम होकर 13.5 प्रतिशत रह गया है, जबकि सेवाओं का हिस्सा 60 प्रतिशत तक पहुंच गया है. मैन्यूफैक्चरिंग समेत कुल औद्योगिक उत्पादन का हिस्सा अब भी 27.5 प्रतिशत पर ही है, जिसमें मैन्यूफैरिंग का हिस्सा 15 प्रतिशत ही है. इसे 25 प्रतिशत तक ले जाने की बात सरकारी हलकों में बार-बार कही जाती रही है. मैन्यूफैरिंग का हिस्सा जीडीपी में स्थिर रहने का मतलब यह है कि मैन्यूफैरिंग में ग्रोथ जीडीपी की ग्रोथ के लगभग बराबर रही. लेकिन पिछले तीन सालों में स्थिति बदली है. 2011-12 और 2012-13 में मैन्यूफैरिंग की ग्रोथ शून्य के नजदीक रही और पिछले साल 2013-14 में तो यह घट कर ऋणात्मक 0.7 प्रतिशत तक पहुंच गयी.

दूसरी ओर युवाओं में बेरोजगारी खासी बढ़ रही है. साल 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में 25-34 वर्ष की आयु वर्ग में 4.7 करोड़ लोग बेरोजगार हैं और यह बेरोजगारी दलित और आदिवासी युवाओं में और भी ज्यादा है. अपने चुनाव भाषाओं में मोदी ने देश में मैन्यूफैरिंग और उसके माध्यम से रोजगार को प्राथमिकता देने की बात कही थी. सरकार के गठन के बाद भी इन्हीं बातों को दोहराया था. ऐसे में बजट से यह स्वाभाविक अपेक्षा थी कि इससे मैन्यूफैरिंग क्षेत्र को बढ़ावा दिया जायेगा.

यह सही है कि इस बजट में विशेष आर्थिक क्षेत्रों को बढ़ावा देने, आठ राष्ट्रीय निवेश एवं मैन्यूफैरिंग जोन बनाने, चार इंडस्ट्रियल कॉरीडोर का निर्माण, मुख्य मैन्यूफैरिंग उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता के निर्माण समेत और भी कई उपाय बताये गये हैं. लेकिन, विडंबना यह है कि इस बजट में मैन्यूफैरिंग सेक्टर में गिरावट के मुख्य कारणों की बात नहीं की गयी है.

वास्तव में देश में मैन्यूफैरिंग में गिरावट की मुख्य वजह ऊंची ब्याज दरें हैं. पिछले काफी समय से बढ़ती महंगाई के चलते भारतीय रिजर्व बैंक लगातार रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट को बढ़ाता रहा है. ऊंची ब्याज दरों के कारण केवल नये निवेश ही नहीं रुके, बल्कि घरांे, घरेलू साजोसामान और ऑटोमोबाइल सहित उत्पादों की मांग भी घटने लगी है. आज समस्या उत्पादन क्षमता की नहीं, बल्कि मांग की ज्यादा है. जरूरत इस बात की है कि मंहगाई को थामा जाये और उससे ब्याज दरों को कम किया जाये. यह सही है कि सरकारी खर्चो में ज्यादा वृद्धि इस बजट में नहीं है और इस कारण से पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम के अंतरिम बजट के अनुरूप ही राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.1 प्रतिशत के स्तर पर रखने की चुनौती अरुण जेटली स्वीकार कर सके हैं.

मैन्यूफैरिंग को प्रभावित करनेवाला सबसे ज्यादा बड़ा कारण आयात होता है. यह मात्र संयोग नहीं है कि पिछले लगभग 3 साल से हमारे आयात द्रुत गति से बढ़ रहे हैं और मैन्यूफैरिंग की ग्रोथ शून्य पर आ गयी है. स्वाभाविक ही है कि जब इलेक्ट्रॉनिक्स, अन्य उपभोक्ता उत्पाद, पॉवर प्लांट, मशीनरी और टेलीकॉम संयंत्र विदेशों से ज्यादा आयात होंगे, तो देश में मैन्यूफैरिंग घटेगी ही. आज जरूरत इस बात की है कि आयात शुल्कों को बढ़ाया जाये, ताकि विदेशों से आनेवाले साजोसामान का आयात हतोत्साहित हो. गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों में हमने आयात शुल्कों को घटाना स्वीकार किया हुआ है, लेकिन आयात शुल्क उससे भी ज्यादा कम रखे जाते रहे हैं.

आज मैन्यूफैरिंग को बचाने के लिए जरूरी है कि आयात शुल्कों को अधिक से अधिक रखा जाये. आज हमारा चीन के साथ व्यापार घाटा 40 अरब डॉलर से भी ज्यादा हो चुका है, उससे कम करने की जरूरत है.

आयातों को कम करते हुए हम न केवल मैन्यूफैरिंग को बढ़ावा दे सकते हैं, बल्कि रुपये को भी मजबूत कर सकतेहैं. आयात कम होने से डॉलर की मांग घटेगी. रुपया मजबूत होने से हमारी उद्योगों की लागत कम होगी, क्योंकि विदेशों से आनेवाला कच्चा माल और उत्पादन में इस्तेमाल होनेवाला अन्य साजोसामान सस्ता हो जायेगा. इसके अलावा कंपनियों ने जो विदेशों से ऋण उठा रखे हैं, उनकी अदायगी भी घटेगी. गौरतलब है कि 2012-13 में हमारा आयात जीडीपी के 28-29 प्रतिशत के आसपास था. यदि रुपया 10 प्रतिशत मजबूत होता है, तो हमारी महंगाई लगभग 3 प्रतिशत तक घट सकती है, जिससे उपभोक्ताओं को तो राहत मिलेगी ही, साथ ही मैन्यूफैरिंग भी आगे बढ़ेगी.

वैसे भी एक बजट कोई अंतिम दस्तावेज नहीं होता. आगे और भी कई कदम उठाये ही जा सकते हैं. वित्त मंत्री चाहें, तो इस वित्तीय वर्ष के दौरान भी कुछ और कदम उठाते हुए आयातों को घटा कर रुपये को मजबूत करते हुए, महंगाई को थाम कर ब्याज दरें घटाते हुए, मैन्यूफैरिंग क्षेत्र को प्रगति की राह पर ले जा सकते हैं.

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