।। डॉ गौरीशंकर राजहंस ।।
(पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत)
अपने तीन दिनी भारत दौरे को खत्म कर चीनी प्रधानमंत्री ली केचियांग जब पाकिस्तान गये तब वहां उनका राजा-महाराजाओं जैसा स्वागत हुआ. उम्मीद थी कि ली पाकिस्तान के आकाओं को समझाएंगे कि उनका हित भारत के साथ दोस्ती में है, भारत में आतंकवादी गतिविधियां जारी रखने में नहीं, परंतु ली ने ऐसा कुछ नहीं कहा. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के उस पुराने सिद्धांत को ही परोक्ष रूप से दोहराया, जिसमें कहा जाता रहा है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है.
पाकिस्तानी संसद के ऊपरी सदन सीनेट के एक विशेष सत्र में ली ने कहा, ‘चीन आपको हर संभव समर्थन और सहायता देगा और आपकी मदद करके हम अपनी मदद करेंगे.’ उन्होंने आश्वासन दिया कि चीन द्विपक्षीय रणनीतिक सबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ ऊर्जा, विज्ञान, तकनीक और कृषि क्षेत्र में पाकिस्तान को हर तरह की सहायता देगा.
उन्होंने यह भी कहा कि चीन ‘चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर’ के विकास की दीर्घकालीन योजना पर जोर-शोर से काम करने को उत्सुक है. पाकिस्तान की सीनेट में ली ने जो कुछ कहा उससे चीन की नीयत उजागर हो जाती है. पाकिस्तान जाने से पहले ली जब भारत आये थे तब बहुत मीठी-मीठी बातें की थीं और सैंकड़ों वर्ष पुराने भारत-चीन संबंधों की दुहाई दी थी.
यदि हम आजादी के बाद के भारत-चीन संबंधों पर नजर डालें तो साफ हो जायेगा कि चाउ एन लाई ने भी इसी तरह की चिकनी-चुपड़ी बातें पंडित नेहरू से की थी और भारत-चीन के सदियों पुराने सांस्कृतिक सबंधों की दुहाई दी थी. उनके झांसे में आकर पंडित नेहरू दिग्भ्रमित हो गये थे. दुर्भाग्य से भारत में तो ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगता रहा, पर चीन ने चुपके से हमारी चार हजार किमी जमीन पर घुसपैठ कर कब्जा कर लिया. भारत ने जब इसका विरोध किया तो 1962 में चीन ने हमला कर दिया, जिसकी कटु यादें भारतीयों के मन में अब भी हैं.
चीन में बेशक शी झिनपिंग नये राष्ट्रपति और ली केचियांग नये प्रधानमंत्री बन गये हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि चीन की नीति और नीयत में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. चीन हर तरह से भारत को परेशान करने के प्रयास में लगा हुआ है. उधर, पाकिस्तान का चीन के प्रति प्रेम इतना बढ़ गया है कि उसने अपने प्रसिद्ध ग्वादर बंदरगाह का संचालन चीन के हवाले कर दिया. यह एशिया के महत्वपूर्ण बंदरगाहों में से एक है. चीन ने सर्वेक्षण करके पता लगाया था कि यदि ग्वादर बंदरगाह पर कब्जा हो गया तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को वह पूरी तरह प्रभावित कर सकेगा और भारत के लिए बड़ी सिरदर्दी पैदा कर सकेगा.
ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान में ऐसी जगह स्थित है, जहां से इरान और खाड़ी देशों से तेल आसानी से जहाजों के द्वारा सस्ती दरों पर लाया जा सकता है. फिर उस तेल को सड़क मार्ग से कम खर्च में चीन ले जाया जा सकता है. पाकिस्तान ने भारत को नीचा दिखाने के लिए ही अपने इस बंदरगाह का विकास और नियंत्रण चीन को दे दिया है.
चीन के दबाव में पाकिस्तान ने उससे एक समझौता भी किया है कि ग्वादर बंदरगाह जब पूरी तरह बन कर तैयार हो जायेगा, तब चीन उसका उपयोग अपनी मजबूत नौसेना के लिए करेगा. इस उद्देश्य से चीनी नौसेना की एक बड़ी टुकड़ी ग्वादर बंदरगाह पर पूरे साल तैनात रहेगी. सामरिक दृष्टि से यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण बंदरगाह है, जो चीन के कब्जे में आ गया है.
चीनी प्रधानमंत्री के बीजिंग लौटने के बाद चीन सरकार ने घोषणा की कि पाकिस्तान में अभूतपूर्व बिजली संकट को देखते हुए चीन ने फैसला किया है कि पाक अधिकृत कश्मीर की नीलम-झेलम पनबिजली परियोजना के लिए वह पाकिस्तान को 448 मिलियन डॉलर की मदद देगा. 969 मेगावाट बिजली पैदा करनेवाली यह परियोजना पाक अधिकृत नीलम नदी पर कार्यान्वित हो रही है.
पैसे के अभाव में इसकी गति धीमी हो गयी है. पाक सरकार ने विश्व बैंक से अनुनय विनय किया है कि इस योजना के लिए वह ऋण दे, पर विश्व बैंक ने यह कह कर साफ मना कर दिया कि पाक अधिकृत कश्मीर एक विवादास्पद क्षेत्र है. उस पर पाकिस्तान का कानूनी हक अब तक स्थापित नहीं हुआ है.
चीन सोची समझी रणनीति के तहत भारत को चारों ओर से घेर रहा है. मालद्वीप, म्यांमार और नेपाल में उसने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर दी है. श्रीलंका के हवबनटोटा और बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह का चीन तेजी से विकास कर रहा है.
यह सबकुछ भारत को सामरिक दृष्टि से घेरने की रणनीति के तहत हो रहा है. अफसोस यह है कि हम दीवार की लिखावट को पढ़ नहीं पा रहे हैं और चीन की असली नीयत को समझ नहीं पा रहे हैं.