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महंगी पड़ेगी प्रकृति से छेड़छाड़

सबकी जुबान पर एक ही बात है- कब आयेगा मानसून? कब मिलेगी तपती धरती को राहत. अखबारों में आये दिन खबरें आती रहती हैं कि मानसून विलंब से आयेगा और बारिश कम होगी. लेकिन क्या ऐसी हालत के लिए हम जिम्मेवार नहीं हैं? प्रकति के साथ हमने इतनी छेड़छाड़ की है कि प्रदूषण से वातावरण […]

सबकी जुबान पर एक ही बात है- कब आयेगा मानसून? कब मिलेगी तपती धरती को राहत. अखबारों में आये दिन खबरें आती रहती हैं कि मानसून विलंब से आयेगा और बारिश कम होगी. लेकिन क्या ऐसी हालत के लिए हम जिम्मेवार नहीं हैं? प्रकति के साथ हमने इतनी छेड़छाड़ की है कि प्रदूषण से वातावरण एवं पर्यावरण असंतुलित हो गया है. इसका असर मानसून पर भी पड़ रहा है.

एक तो मानसून के विलंब से आने के संकेत हैं और बारिश की औसत मात्र भी कम होती जा रही है. इसका सीधा प्रभाव पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं पर तो पड़ता ही है, साथ ही इनसान के जीवन-यापन पर भी गंभीर संकट आ जाता है. भारत में अधिकतर खेती अब भी मानसून पर निर्भर है, वह बिखर जाती है. फलत: उत्पादन कम होता है, नतीजा महंगाई. अत: हरियाली बढ़ाने व प्रदूषण कम करने के उपायों की जरूरत है.

मनीष वर्मा, धनबाद

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