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समर कैंप का औचित्य
कविता विकास लेखिका इन दिनों जैसे-जैसे बच्चों की संख्या कम होती जा रही है, माता-पिता की फिक्र उनके समुचित विकास को लेकर बढ़ गयी है. अच्छे और आकर्षक व्यक्तित्व की चाह में उन्हें कई संस्थानों में भर्ती करवाना और हर क्षेत्र में पारंगत कराने की कवायद बढ़ती जा रही है. अभी विद्यालयों में गर्मी की […]
कविता विकास
लेखिका
इन दिनों जैसे-जैसे बच्चों की संख्या कम होती जा रही है, माता-पिता की फिक्र उनके समुचित विकास को लेकर बढ़ गयी है. अच्छे और आकर्षक व्यक्तित्व की चाह में उन्हें कई संस्थानों में भर्ती करवाना और हर क्षेत्र में पारंगत कराने की कवायद बढ़ती जा रही है.
अभी विद्यालयों में गर्मी की छुट्टियां हो गयी हैं, फिर भी समर कैंप का आकर्षण उन्हे खींचता रहा है. यह एक अच्छी पहल है. जो बच्चे छुट्टियों में कहीं नहीं जा रहे होते हैं, उन्हें समय बिताने का एक गुणवत्तापूर्ण तरीका मिल जाता है. यह अलग बात है कि इस काम में लगे शिक्षकों की छुट्टियां कम हो जाती हैं.
आठ से अठारह साल तक के बच्चों में सीखने की प्रक्रिया सर्वाधिक होती है. अगर उन्हें उनके विषय या उनकी पसंद के अनुसार प्रशिक्षित किया जाये, तो वे सर्वोत्तम योगदान देते हैं. यह योगदान स्वयं उनके व्यक्तित्व के निखार के साथ-साथ संस्था, समाज और देश के लिए भी मूल्यवान होता है. मोबाइल और टीवी के गेम्स व प्रोग्राम से ज्यादा महत्वपूर्ण वह सामूहिक खेल है, जिसमें शारीरिक श्रम लगता है.
टीनएजर्स में असीम ऊर्जा होती है, जिसका बाहर आना आवश्यक है, नहीं तो वह गलत दिशा की ओर चली जायेगी. सामूहिक खेलों से सहयोग, मेल-जोल, नेतृत्व की क्षमता भी विकसित होती है, जो आजकल के न्यूक्लियर फैमिली के बच्चों में कम दिखती है. अपनी पसंद की विधा में एकाग्रता भी बढ़ती है. इसलिए रोज एक-दो घंटे शौक को जरूर देना चाहिए. उसके बाद गजब की ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव होगा. साथ में आत्माभिमान और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.
जीवन का अर्थ और उद्देश्य अपने घर से ही मिलता है. प्रेम, सहयोग, त्याग और ईमानदारी जैसे गुण सामूहिक खेलों से आ जाते हैं. जैसे ही इन खेलों में स्वार्थ का पुट आता है, पूरी टीम को हार का सामना करना पड़ता है.
मैदान का खेल जीवन का खेल बन जाता है. नैतिक गुणों में ईर्ष्या-द्वेष की भावना भी मिली होती है. आगे निकलने की भावना स्वतः ही ईर्ष्या पैदा करती है. अगर हमें जानने-समझने की स्वतंत्रता मिलती है, तो काफी कुछ हम स्वयं सीख जाते हैं. स्व-चेतना वह आधार है, जिससे सद्गति या दुर्गति प्राप्त होती है. बच्चों के विकास के लिए सद्संगति पर जोर दिया जाता है.
समर कैंप में चित्रकला विभाग के बच्चों ने छह दिन के अंदर नवनिर्मित बाउंड्री वाल को अपनी रंग-बिरंगी कलाकृतियों से भर दिया. यह एक अद्भुत काम था. मात्र आठ से बारह साल के बच्चों ने गर्मी की विभीषिका को झेला.
अपने काम में वे इतनी तन्मयता से लगे रहे कि पैंतीस डिग्री से ज्यादा तापमान में भी उफ्फ तक नहीं की. बच्चों ने न केवल चित्रकारी सीखी, बल्कि सहनशीलता, सहयोग, सम्मान और एकाग्रता का पाठ भी सीखा. इन्होंने बहुत से लोगों के दिल जीते और उनकी दुआएं पायीं. अगर आपके शहर में भी ऐसे कैंप लगते हों, तो इनका औचित्य समझें. क्योंकि, एक अच्छी शुरुआत के लिए देर कभी नहीं होती.
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