‘दंगा’ शब्द सुनने में छोटा जरूर लगता है, पर यह न जाने कितनी माताओं के घर का चिराग छीन लेता है, कितनी औरतों को विधवा बना देता है, कितने बच्चों को अनाथ कर देता है. फिर भी हम लोग इसे अपने समाज से दूर नहीं कर पाये हैं. यहां पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इस विनाशकारी तत्व को हम लोग अपने समाज से दूर क्यों नही कर पाये हैं?
इसके लिए हम राजनेताओं को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. लेकिन यह भी सच है कि नेताओं के साथ-साथ हम लोग भी इसके लिए उतने ही जिम्मेदार हैं. नेता और दंगों का रिश्ता 1984 के दंगे, 2002 के गुजरात दंगे, 2010 के असम दंग और हाल ही में हुए मुजफ्फरनगर दंगे तथा असम में भड़की हिंसा को याद करके आसानी से समझा जा सकता है. हम नेताओं के बहकावे में न आयें और दंगों को प्रायोजित करनेवालों को समाज से बाहर का रास्ता दिखायें.
मो. फारूख, रांची