आदरणीय जशोदाबेन,
मैं आपको पहले नहीं जानती थी, लेकिन जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी जी ने वडोदरा से लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन भरा, तब से आपको जानने लगी हूं, तब से मैं आपके बारे में बहुत सोचती हूं. आप विवाहिता होकर भी अविवाहित रहीं और आपके नाम के साथ एक छोड़ी हुई महिला का ठप्पा लग गया.
आज से 40-45 वर्ष पहले एक छोड़ी हुई महिला को गांववाले किस नजर से देखते होंगे? क्या आपके कानों में गांववालों के ‘अपशकुन’, ‘बेचारी’, ‘अभागी’ जैसे शब्द न पड़े होंगे. पितृसत्तात्मक समाज में जहां आज भी महिलाओं को उसके अधिकार स्वत: नहीं मिलते, बल्कि छीनने पर मिलते हैं, कितना कठिन होता है अकेली महिला का समाज में रहना? कैसे गुजारी होगी आपने पहाड़ जैसी जिंदगी? यदि मोदी जी ने अपने आप को तपाया है तो आप भी अकेली तपती रही हैं.
इतिहास जब-जब नरेंद्र मोदी जी को याद करेगा, आपको भी याद करेगा. क्या अंधेरी रातों में पत्ताें के हिलने पर भी आप कोने में दुबक न जाती होंगी? क्या आपकी कोख बच्चे के लिए न तरसी होगी? क्या करवा-चौथ में सोलहों श्रृंगार कर पति के समक्ष जाने की आपकी इच्छा न हुई होगी? लेकिन, आप अपने पति के आने का इंतजार करती रहीं, उनके नाम की अपने माथे पर बिंदी लगाती रहीं. अब अपने पति को टीवी पर, अखबारों में देख कर खुश होती हैं और अपने पति को प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा लिये इन दिनों व्रत भी कर रहीं हैं. आपके समर्पण, आपके त्याग को भारत हमेशा याद रखेगा. आपको हजारों बार मेरा नमन.
गीता दुबे, जमशेदपुर