इस चुनावी महौल में जब पूंजीवादी पार्टियां जाति और धर्म को जीत की कुंजी मान कर वैसे लोगों को प्रत्याशी बना रही हैं, जिनकी जाति और धर्म पर पकड़ मजबूत है. ठीक उसी समय जातीय व्यवस्था पर लगातार प्रहार करनेवाले बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर को प्रभात खबर ने एक पन्ना दे कर देश में चल रहे सामाजिक और आर्थिक आंदोलन को गति प्रदान की है.
इसके लिए साधुवाद! शिडय़ूल कास्ट फेडरेशन के पांचवें अधिवेशन (25.4.1948) में बाबा साहब ने कहा था, सामाजिक उन्नति की कुंजी है राजनैतिक शक्ति. लेकिन पहली लोक सभा के आम चुनाव के बाद नेहरू ने पूंजीवादी विकास के मॉडल का जो बीज बोया, वह इंदिरा के समय में फला-फूला और नरसिंह राव की नयी आर्थिक व औद्योगिक नीति के कारण एक मजबूत वृक्ष की शक्ल लेने लगा. मनमोहन सिंह की नव उदार नीतियों के कारण इसने धीरे-धीरे विशाल वटवृक्ष का रूप ले लिया.
नरेंद्र मोदी भी उन्हीं नीतियों की वकालत कर रहे हैं. यानी राजनैतिक शक्ति सामाजिक उन्नति की नहीं, बल्कि पूंजीगत उन्नति की कुंजी बन गयी है और यही कारण है कि आज देश में आर्थिक विषमता की खाई काफी चौड़ी हो गयी है. जहां हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद तीन सौ रुपये कमाना मजदूरों के लिए दुश्वार है, वहीं एक सीइओ को करोडों रुपये मासिक दिये जा रहे हैं, जो बाबा साहेब के सपनों के विपरीत है.
बाबा साहेब ने समतामूलक समाज का सपना देखा था, जहां सभी लोग मिलजुल कर रहें. सबको भरपेट भोजन और उचित वस्त्र मिले. सबको उचित शिक्षा मिले. जातीय आधार पर किसी को प्रताड़ित न किया जाये. नौकरियों में कमजोर लोगों को उचित भागीदारी मिले. बाबा साहेब का यह सपना जाने कब पूरा होगा!
गणोश सीटू, हजारीबाग