आज भी देश में न जाने कितने लोग कुपोषण से मर जाते हैं, लेकिन यह हमारे देश की व्यवस्था है, जो अनाज को हर साल सड.ने के लिए छोड. देती है. भले ही दुनिया के सबसे अधिक अमीरों की सूची में कई भारतीयों के नाम दर्ज हों, पर जहां एक बडी आबादी को पेट भर भोजन न मिले, उस देश को आप कितना संपन्न मान सकते हैं?
देश के अन्नदाता ही अन्न के अभाव में आत्महत्या करने को मजबूर हैं. यह शर्मनाक स्थिति है और इस आम चुनाव में इसे एक मुद्दा बनाया जाना चाहिए, लेकिन इसे मुद्दा बनाने की बजाय इस पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले राजनेता कम नहीं हैं. लोकतंत्र का सबसे बड.ा मेला लग चुका है और ये राजनेता वोट मांगने दरवाजे-दरवाजे पर जा रहे हैं. फैसला जनता के हाथों में है. उसे ही तय करना है कि देश से गरीबी खत्म करनी है या फिर नेताओं के बैंक बैलेंस बढ.ाने हैं?
ऋतु कुमारी, नामकुम, रांची