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प्रचारों पर टिकीं उपलब्धियां
पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक pavankvarma1953@gmail.com संसार की सच्चाइयों के परे, क्या कहीं प्रचार-प्रसार की कोई सीमा भी है? क्या सभी चीजें उनकी वास्तविकताओं में नहीं, वरन उनकी प्रस्तुति में ही परखी जा सकती हैं? क्या सत्य स्व-विज्ञापन के वाष्प से सृजित एक मरीचिका मात्र है? या कि यदि विज्ञापन अपने दावे के […]
पवन के वर्मा
लेखक एवं पूर्व प्रशासक
pavankvarma1953@gmail.com
संसार की सच्चाइयों के परे, क्या कहीं प्रचार-प्रसार की कोई सीमा भी है? क्या सभी चीजें उनकी वास्तविकताओं में नहीं, वरन उनकी प्रस्तुति में ही परखी जा सकती हैं? क्या सत्य स्व-विज्ञापन के वाष्प से सृजित एक मरीचिका मात्र है? या कि यदि विज्ञापन अपने दावे के अतिरेक की वजह से वास्तविकता से बहुत विलग हो जाये, तो वह स्व-विनाशक भी हो उठता है?
हमारी वर्तमान सरकार प्रचार की जिस मुहिम पर पड़ी है, उसके मायने जानने-समझने की कोशिश में ये चंद ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाबों की जरूरत आ खड़ी होती है. सभी सरकारों को स्व-विज्ञापन में निवेश करना ही होता है, पर इस क्षेत्र के पारंगतों के लिए भी दिल्ली की सरकार से सीखने को कुछ एक चीजें तो हैं ही. इस विषय के गूढ़ अध्ययन के बाद, सफल प्रचार के निहितार्थों के विषय में मैं कुछ बुनियादी बिंदुओं तक पहुंचा हूं, जिनमें से प्रमुख दस इस प्रकार हैं:
पहला, यह जानते हुए भी ऐसे वादे कर दें कि आप उन्हें क्रियान्वित नहीं कर सकते या यह कि वैसा करने की आपकी कोई मंशा भी नहीं हो. यह वादा आकर्षक और लंबा-चौड़ा तो होना ही चाहिए, उसे एक विश्वसनीय विधि से पेश भी किया जाना चाहिए. एक युवा को यह महसूस होना चाहिए कि उसे रोजगार मिल ही जायेगा. एक किसान के लिए कोई संशय शेष नहीं रह जाना चाहिए कि उसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य उसकी लागतों पर 50 प्रतिशत की दर से बढ़ा दिये जायेंगे, इत्यादि.
दूसरा, एक बार जब उस वादे का तात्कालिक उद्देश्य पूरा हो जाये, तो उससे मुकर जायें. ऐसा करते हुए आप यह स्वीकार न करें कि आपने वैसा किया है. यह कहें कि आपने जो कुछ कहा था, उसका वह तात्पर्य न था, जो लोगों ने समझ लिया.
तीसरा, यदि कुछ हठी जन अब भी वह याद दिला रहे हैं, जो मूलतः आपने कहा था, तो उन्हें नये वादों से ढांप दें. एक नया भारत, स्मार्ट शहर, बुलेट ट्रेनें, स्वच्छ भारत, स्वच्छ नदियां, 24 घंटे बिजली, डिजिटल कनेक्टिविटी. आप जिन्हें पूरे न कर सकें, उनसे बड़े सपने पेश करें और यह उम्मीद करें कि नये वादों की चमक लोगों के मन से अतीत के वादे मिटा देगी.
चौथा, आंकड़ों का पूरा इस्तेमाल करें. उनमें से चुनिंदा का उपयोग करते हुए अधिकतर को छोड़ दें. किसी भी विरोधी दावे के लिए नये आंकड़े पेश करें. ये आंकड़े असरदार होने चाहिए. सभी सरकारी एजेंसियों को संख्यात्मक लक्ष्य सौंपें. उनसे यह कहें कि उनका उद्देश्य इन लक्ष्यों की पूर्ति होना चाहिए और उन्हें प्राप्त कर लिया गया, यह दिखाने को आंकड़े प्रस्तुत करें, चाहे लोगों के जीवन पर उसका वास्तविक असर जैसा भी पड़ा हो.
पांचवां, विज्ञापनों की फिजूलखर्ची में कोई भी कोताही न करें. सभी प्रमुख समाचार पत्रों में पूरे पृष्ठ के विज्ञापनों में निवेश करें. टीवी और रेडियो का भरपूर इस्तेमाल करें. अपने मुहिम आगे बढ़ाने में नामी हस्तियों तथा फिल्मी सितारों की सेवाएं लें. प्रत्येक सरकारी एजेंसी इस अहम कार्य में यथासंभव अधिकतम बजट के प्रावधान करे.
छठा, सरकार के भीतर तथा बाहर प्रचार-प्रसार के लिए सुगठित तंत्र की स्थापना करें, जो सरकार की किसी भी आलोचना के प्रति अतिसंवेदनशील हो. यही नहीं, वह ऐसी आलोचनाओं का पूर्वानुमान कर उसके प्रभावी उत्तर के लिए हमेशा तैयार भी रहे. सभी वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए उन्हें सौंपे विपुल कार्यभार के साथ ही इस पर भी वक्त लगाना आवश्यक हो. प्रधानमंत्री के भाषणों को तथा वे और जो कुछ भी करते हैं उनको मीडिया पूरा-पूरा कवरेज अवश्य दे.
सातवां, नारे एवं संक्षिप्त नाम गढ़ने की कला को पूर्णता तक पहुंचाया जाये. सभी नारे और नाम ऐसे हों, जो लोगों की कल्पना को आकृष्ट करें, ताकि वे एक सपने से अगले सपने का सफर करते रहें.
आठवां, राष्ट्रवाद-विरोध, विध्वंस, राष्ट्रद्रोह, गोमांस भक्षण, तुष्टीकरण, देशभक्ति का अभाव, धर्मपरिवर्तन जैसे बड़े खतरे का भय पैदा करते हुए राष्ट्र को वास्तविक मुद्दों से भटकायें. जब राष्ट्र ही खतरे में हो, तो कुछ वादे पूरे न हो सकें, तो भी क्या?
नौवां, यदि कोई आलोचना विश्वसनीय बनने लगे या जन समर्थन हासिल करने लगे, तो तेजी से लक्ष्य के पैमाने ही बदल डालें. यदि नोटबंदी से कालेधन की समाप्ति न हुई हो, तो यह घोषित करें कि इसका असल उद्देश्य वह नहीं था, जिसे आरंभ में बताया गया, बल्कि वह यह था कि एक नकदीरहित अर्थव्यवस्था का सृजन किया जा सके. यदि नोटबंदी के अक्षम क्रियान्वयन से सामान्य जन को अभूतपूर्व परेशानियों का सामना करना पड़ा हो, तो यह घोषणा करें कि इसका उद्देश्य अमीरों से पैसे लेकर गरीबों का सशक्तीकरण है.
दसवां, जो कोई भी आपकी उपलब्धियों पर सवाल खड़े करे, उसकी योग्यता पर आप सवाल करें. वह या तो जन्मजात भाजपा विरोधी है, राष्ट्रद्रोही है, उसमें देशभक्ति की भावना का अभाव है या वह देश के दुश्मनों की शह पर ऐसा कर रहा है, वह व्यक्तिगत रूप से भ्रष्ट अथवा राजनीतिक रूप से प्रेरित है.
ये दस बुनियादी बिंदु कुछ इस तरह तैयार किये गये हैं कि ये विफल नहीं हो सकते. पर- और यही वास्तविक सवाल है- क्या प्रचार से ऊब जैसी भी कोई चीज होती है? क्या इसके किसी मुकाम पर लोग यह सोच सकते हैं कि इन सारे प्रचारों का असली सार क्या है? क्या पर्याप्त रोजगारों का सृजन हो चुका है? क्या किसानों की दशा में सुधार आया है? क्या वित्तीय निवेश बढ़ा है? सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धिदर क्यों अनुमान से कमतर है?
पाकिस्तान के प्रति हमारी रणनीति क्या है? हमारे इतने अधिक बहादुर जवान नित्य शहादत की वेदी पर क्यों कुर्बान किये जा रहे हैं? क्या हमारे शहर वस्तुतः पहले से अधिक साफ हैं? कारोबार सुगमता बढ़ाने के सारे बढ़े-चढ़े दावों का क्या हुआ? सरकार के प्रचार तंत्र को असल चुनौती तब मिलेगी, जब ये सभी सवाल साथ जुड़ेंगे और एक अखिल भारतीय स्वरूप धारण करेंगे. यदि चीजें इसी तरह चलती रहीं, तो वह दिन ज्यादा दूर नहीं रह गया है.
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