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लोग ताने कसते रहे और मिंज पैरों पर खड़ी हो गयीं

साहस. पिंक ऑटो से आर्थिक आजादी पा रहीं रांची की महिलाएं झारखंड सरकार की ओर से वर्ष 2013 में महिलाओं को वाहन चलाने की ट्रेनिंग देनी की जो योजना शुरू की गयी. उसके सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं. पिंक ऑटो की महिला ड्राइवर महिलाओं और युवतियों को सुरक्षित घर पहुंचाती हैं. ऐसी ही एक महिला […]

साहस. पिंक ऑटो से आर्थिक आजादी पा रहीं रांची की महिलाएं

झारखंड सरकार की ओर से वर्ष 2013 में महिलाओं को वाहन चलाने की ट्रेनिंग देनी की जो योजना शुरू की गयी. उसके सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं. पिंक ऑटो की महिला ड्राइवर महिलाओं और युवतियों को सुरक्षित घर पहुंचाती हैं. ऐसी ही एक महिला ड्राइवर हैं शिखा शालिनी मिंज, जो माता-पिता की मौत के बाद भाइयों के भरोसे न रह कर खुद ही कुछ करने की ठानी. अब ऑटो चला कर पैरों पर खड़ी हैं. 20 हजार तक कमा कर दूसरों को भी प्रेरणा दे रही हैं.

बदलते वक्त के साथ महिलाएं कितनी तेजी से बदल रही हैं और अपने घर-संसार के लिए किस तरह पुराने बंधनों को तोड़ रही हैं, यह रांची के सड़कों पर फर्राटे से पिंक ऑटो दौड़ाती शिखा शालिनी मिंज को देख कर महसूस किया जा सकता है. सचमुच पहली बार एक महिला ऑटो चालक के बगल में महिला सवारी को बैठे देख कर आश्चर्य हुआ. आमतौर पर लड़कियां या महिलाएं ऑटो के फ्रंट सीट पर नहीं बैठती हैं.

यह एक अलग ही प्रकार का एहसास था. शिखा रांची में रहती हैं. शिखा जीवन यापन के लिए ऑटो चलाती हैं. यह कोई सामान्य ऑटो नहीं है. असल में शिखा एक पिंक ऑटो की चालक हैं. रांची में वर्ष 2013 में सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऑटो चलाने की ट्रेनिंग देने की घोषणा की थी. उस घोषणा में यह भी कहा गया था कि जो भी महिला ऑटो चलायेगी वह पिंक ऑटो की चालक कहलायेंगी. पिंक ऑटो को विशेष रूप से महिलाओं की सुविधा के लिए ही शुरू किया गया है. इस तरह के ऑटो आपको रांची रेलवे स्टेशन पर आसानी से देखने के लिए मिल जायेंगे. प्रस्तुति: जूही स्मिता

माता-पिता गुजर गये, तीन भाइयों के सहारे कब तक रहतीं

शालिनी से जब ऑटो के बारे में पूछा गया, तो बताया कि माता-पिता के गुजरने के बाद तीन भाइयों के बीच अकेली थी. सोचा कि कब तक भाइयों के भरोसे रहूंगी. खुद का परिवार भी है. ऐसे में लगा कि कोई काम सीख लेने से मुझे किसी के मदद की जरूरत नहीं पड़ेगी. अब मैं रांची के कोने-कोने को जानती हूं. सवारी को मंजिल तक पहुंचाती हूं. ऑटो चलाने को लेकर मुझे इस बात की कोई झिझक नहीं हैं. शालिनी बताती हैं कि यहां महिलाओं की सहूलियत का काफी ख्याल रखा जाता है. महीने में लगभग बीस हजार रुपये तक कमा लेती हूं.

रात में ऑटो चला लेती हूं

रात में ऑटो चलाने पर डर नहीं लगता, यह पूछे जाने पर वह बताती हैं कि वैसे तो मैं ज्यादातर दिन में ही ऑटो चलाती हूं, लेकिन इमरजेंसी के समय रात में भी ड्राइविंग कर लेती हूं.

इसमें डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि हमारे इस काम को प्रशासन का पूरा सहयोग मिलता है. कठिनाइयों के बारे में पूछने पर वे बताती हैं कि कभी-कभी कुछ अन्य वाहनों के ड्राइवर महिला ड्राइवर को देख कर अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं. आगे बढ़ने के लिए रास्ता नहीं देते हैं. ऐसे में धैर्य रख कर आगे बढ़ना होता है. क्योंकि यदि आप झगड़ा करने के लिए रूकेंगे, तो अपना काम नहीं कर पायेंगे. हालांकि इन चीजों की आदत-सी हो गयी है.

मिंज के पति भी ट्रक ड्राइवर

मैं मैट्रिक पास हूं. पढ़ने की इच्छा थी लेकिन मां-पिता के जाने के बाद आजीविका के लिए ऑटो चलाना पड़ता है. शादी हुए दो साल हो गये हैं. मैं अपने पति के साथ काफी खुश हूं. उनका साथ न होता, तो मैं कुछ हट कर नहीं कर पाती. मेरे पति पेशे से ट्रक चालक हैं.

मैं इतना ही कहना चाहती हूं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है. बस करने की लगन चाहिए. शुरू में कई लोगों ने मना किया, कुछ तो ताने भी कसते थे. लेकिन आज जब पैरों पर खड़ी हो गयी हूं, तो अब वही लोग तारीफ करते हैं. आत्मनिर्भरता से रहन-सहन में काफी बदलाव आया है.

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