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कोई घूस मांगे तो कैसे करें उसकी शिकायत, तुरंत पकड़ेगी CBI-जानें तरीका

सीबीआई को दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम 1946 के तहत बनाया गया है. सीबीआई के पास यह खास अधिकार है कि वह केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित मामलों की छानबीन कर सकती है. हालांकि राज्यों में कुछ हद तक सीबीआई को जांच के लिए राज्य सरकार की इजाजत लेनी होती है.

भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई के एक्शन की खबरें अक्सर आती हैं. ऐसे में अगर कोई आपसे भी घूस मांग रहा है तो इसकी शिकायत आप भी कर सकते हैं. ऐसे मामले में सीबीआई में सीधे शिकायत की जा सकती है. बता दें, सीबीआई करप्शन के केस में शिकायत पर सीधे कार्रवाई कर सकती है. केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो या सीबीआई भारत सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी है. यह आपराधिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के मामलों की जांच करती है.

सीबीआई  कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अधीन कार्य करती है. इसका संगठन फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन से काफी मिलता लेकिन इसके अधिकार एवं कार्य-क्षेत्र एफबीआई की तुलना में काफी बहुत सीमित हैं. सबसे पहले यह जान लें कि सीबीआई को दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम 1946 के तहत बनाया गया है. सीबीआई के पास यह खास अधिकार है कि वह केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित मामलों की छानबीन कर सकती है. हालांकि राज्यों में कुछ हद तक सीबीआई को जांच के लिए राज्य सरकार की इजाजत लेनी होती है.

किस तरह के केस की सीबीआई जांच करती है
बीते कुछ सालों में सीबीआई की जांच का दायरा काफी बढ़ गया है. आज की तारीख में सीबीआई की जांच के तहत तीन प्रभाग हैं.

पहला भ्रष्टाचार निरोधक प्रभाग- सार्वजनिक अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 के तहत मामलों की जांच के लिए केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निगमों या भारत सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण वाले निकायों का – यह भारत के लगभग सभी राज्यों में उपस्थिति वाला सबसे बड़ा प्रभाग है.

दूसरा प्रभाग है आर्थिक अपराध- इसके तहत प्रमुख वित्तीय घोटालों और गंभीर आर्थिक धोखाधड़ी की जांच के लिए, जिसमें नकली भारतीय करंसी, बैंक धोखाधड़ी और साइबर अपराध से संबंधित अपराध शामिल हैं.

तीसरे प्रभाग में विशेष अपराध आते हैं- जैसे राज्य सरकारों के अनुरोध पर या सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश पर भारतीय दंड संहिता और अन्य कानूनों के तहत गंभीर, सनसनीखेज और संगठित अपराध की जांच के लिए.  जिन कानूनों के तहत सीबीआई अपराध की जांच कर सकती है, उन्हें केंद्र सरकार की ओर से डीएसपीई अधिनियम की धारा 3 के तहत अधिसूचित किया जाता है.

एनआई से अलग होता है सीबीआई का कार्यक्षेत्र
आम तौर पर लोग समझते हैं कि एनआईए और सीबीआई का काम एक जैसा ही होता है. लेकिन वास्तविकता में दोनों के कार्यक्षेत्र एक-दूसरे से पूरी तरह अलग होते हैं. एनआईए का गठन नवंबर 2008 में मुंबई आतंकी हमले के बाद मुख्य रूप से आतंकवादी हमलों, आतंकवाद के वित्तपोषण और अन्य आतंक संबंधी अपराधों की जांच के लिए किया गया है. वहीं सीबीआई भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराधों और आतंकवाद के अलावा गंभीर और संगठित अपराध की जांच करती है.

क्या सीबीआई स्वतः संज्ञाने लेकर जांच कर सकती है
क्या कोर्ट की तरह किसी केस पर सीबीआई स्वतः संज्ञान ले सकती है. इसका जवाब है नहीं… दरअसल,  डीएसपीई अधिनियम की धारा 2 के अनुसार सीबीआई सिर्फ केंद्र शासित प्रदेशों में धारा 3 में अधिसूचित अपराधों की स्वत: जांच कर सकती है. डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के अनुसार किसी राज्य की सीमाओं में सीबीआई की ओर से जांच करने के लिए उस राज्य की पूर्व सहमति की जरूरत होती है. केंद्र सरकार किसी राज्य में ऐसे अपराध की जांच के लिए सीबीआई को अधिकृत कर सकती है, लेकिन केवल संबंधित राज्य सरकार की सहमति से.  हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट राज्य की सहमति के बिना देश में कहीं भी ऐसे अपराध की जांच करने का आदेश सीबीआई को दे सकते हैं.

क्या अपराध की जानकारी देने के लिए सीबीआई की शाखा में जाना जरूरी होता है?
किसी भी अपराध की सूचना देने के लिए सीबीआई की साखा में व्यक्तिगत रुप से जाना जरूरी नहीं होता है. डाक द्वारा सूचना या शिकायत भेजकर यै फिर मोबाइल फोन से एसएमएस करके, संबंधित शाखा को फोन करके, अधिकारियों को ईमेल भेजकर और इस वेबसाइट पर शिकायत दर्ज कर भी सीबीआई से संपर्क किया जा सकता है.  इसके अलावा सीबीआई की कई वेबसाइट है जहां पर शिकायत की जा सकती है.

अपने मुखबिरों की सुरक्षा के लिए कैसे काम करती है सीबीआई
सीबीआई जिस केस में काम करती है उसकी सूचना अक्सर गोपनीय व्यक्तियों की ओर से दी जाती है. वो जानकारी आमतौर पर मौखिक होती है. ऐसी सूचनाओं और मुखबिरों के लिए सीबीआई की एक बहुत अच्छी और तय नीति है, जिसका पूरा विभाग ईमानदारी से पालन करता है. मुखबिर को केवल वही अधिकारी हैंडल करता है जिसे सूचना प्रदान की गई है. जिस अधिकारी को सूचना दी गई है उसके वरिष्ठ अधिकारी भी मुखबिर की पहचान के खुलासे की मांग नहीं कर सकते.  ऐसे सूचना देने वाले की पहचान कभी भी किसी रिकार्ड में लिखित रूप में नहीं लिखी जाती.  इसका खुलासा अदालतों को भी नहीं किया जाता. अदालतों के पास भी सीबीआई को मुखबिर की पहचान उजागर करने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं है. ऐसी सूचनाओं पर विवेकपूर्ण सत्यापन के बिना सीबीआई द्वारा कोई कार्रवाई शुरू नहीं की जाती है.

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