मुम्बई: बेरोजगार व्यक्ति को राहत प्रदान करने से इंकार करते हुए बम्बई उच्च न्यायालय ने आज कहा कि एक पति को अपनी पत्नी और बच्चे की देखरेख के लिए काम करके कमाना चाहिए और वह इस आधार पर इससे बच नहीं सकता कि उसके पास नौकरी नहीं है.
उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम एल तहलियानी ने कहा, “प्रतिवादी (पति) की यह दलील कि वह भुगतान करने में समर्थन नहीं है, स्वीकार करने योग्य नहीं है.” अदालत शशि की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने अपने और अपनी सात माह की बच्ची नीता के लिए गुजाराभत्ता दिलाने का अनुरोध किया था.
शशि ने शुरु में अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 ( पत्नियों, बच्चों और अभिभावकों की देखरेख का आदेश) के तहत कुटुंब अदालत से सम्पर्क किया था. कुटुंब अदालत के न्यायाधीश ने सितंबर 2012 में शशि की याचिका को आंशिक रुप से स्वीकार करते हुए पति महेश को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ते के रुप में प्रतिमाह 1500 रुपये भुगतान करने का निर्देश दिया था.