अहमदाबादः वर्ष 2002 में उनके मुख्यमंत्री रहते हुए गोधरा कांड के बाद फैले दंगे के लिए निशाने पर लिए जाने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक स्थानीय अदालत से पाक साफ करार दिये जाने के बाद वह मुक्त और शांतचित्त महसूस कर रहे हैं. हत्याओं के दोषारोपण से वह अंदर से चकनाचूर हो गये थे. हालांकि, हत्याओं को लेकर माफी नहीं मांगी. एक दशक तक इस मुद्दे पर मीडिया के सवालों से बचते रहे मोदी शुक्रवार को अपने ब्लॉग पर एक लंबे बयान के साथ सामने आये और कहा कि वह अंदर से हिल गये थे. ब्लॉग पर कहा, ‘दुख’, ‘उदासी’, ‘कष्ट’, ‘पीड़ा’, ‘वेदना’, ‘संताप’ जैसे शब्द उस पूर्ण खालीपन की व्याख्या नहीं कर सकते हैं, जो किसी ने इतनी बड़ी अमानवीयता देख कर महसूस की. मैं निजी स्तर पर जिन पीड़ा जनक स्थितियों से गुजरा, उसे मैं पहली बार इन शब्दों में साझा कर रहा हूं.
मोदी ने कहा, देश के पिछले किसी भी दंगे की तुलना में गुजरात सरकार ने इस हिंसा पर ज्यादा तत्परता और निर्णायक ढंग से कार्रवाई की थी. गुरुवार के फैसले से उस अप्रत्याशित जांच की प्रक्रिया समाप्त हुई, जो देश की शीर्ष अदालत की निगरानी में चल रही थी. गुजरात की 12 साल की अग्नि परीक्षा अंतत: खत्म हुई.
मोदी ने कहा- मैं सचमुच इस फैसले को निजी जीत या हार के रूप में नहीं देखता. सभी – मित्रों और खासकर विरोधियों से ऐसा ही सोचने की अपील करता हूं. मैं सचमुच इस फैसले को निजी जीत या हार के रूप में नहीं देखता. सभी – मित्रों और खासकर विरोधियों से ऐसा ही सोचने की अपील करता हूं.
वैसे जिन लोगों को दूसरे को पीड़ा पहुंचाने में संतोष मिलता है, वह उनके खिलाफ अभियान नहीं रोकेंगे. मुङो उनसे आस नहीं है, लेकिन पूरी नम्रता से प्रार्थना करता हूं कि कम से कम अब गुजरात की छह करोड़ लोगों को गैरजिम्मेदार ढंग से बदनाम करना रोक दें. मुङो विश्वास है कि किसी भी समाज, राज्य या देश का भविष्य सौहार्द पर निर्भर है, यह एकमात्र ऐसा स्तंभ है जिस पर प्रगति एवं समृद्धि का निर्माण हो सकता है.
अंत, शुरुआत की यादें लेकर आता है
कानून का चरित्र ऐसा है कि सिर्फ सच की जीत होती है- सत्यमेव जयते. कोर्ट ने फैसला सुना दिया है, ऐसे में अपनी अंतर आत्मा और भावनाओं को आपके साथ साझा करना चाहता हूं. अंत शुरुआत की यादें लेकर आता है. 2001 के विनाशकारी भूकंप के कारण पूरे गुजरात में मौत, तबाही और लाचारी का मंजर था. कई लोगों की जानें गयीं. लाखों लोग बेघर हुए.
पूरी आजीविका नष्ट हो गयी. अकल्पनीय पीड़ा के ऐसे दर्दनाक वक्त पर मुङो शांति का माहौल बनाने और पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी दी गयी और हमने पूरे दिल से इस चुनौती को स्वीकार किया. पांच महीने के अंदर 2002 में एक नासमझी भरी हिंसा ने हमें एक और अप्रत्याशित झटका दिया. बेकसूर मारे गये. कई परिवार बेघर हो गये. लाचारी का माहौल था. कई सालों के परिश्रम से खड़ी की गयी संपत्ति नष्ट हो गयी. प्राकृतिक तबाही के कारण पहले से ही बिखरे हुए गुजरात के लिए ये झटका पूरी तरह से पंगु करने वाला था. इसने मुङो अंदर से झकझोर कर रख दिया.
ऐसी अमानवीय घटना के साक्षी रहे शख्स की भावनाओं को दुख, दर्द, पीड़ा जैसे शब्दों से बयान नहीं किया जा सकता. एक तरफ भूकंप के पीड़ितों का दर्द था, तो दूसरी तरफ दंगे से प्रभावित हुए लोगों की पीड़ा. इस मुश्किल समय का सामना करने के लिए, मैंने व्यक्तिगत दर्द और पीड़ा दरकिनार करते हुए ऊपर वाले से मिली शक्ति का इस्तेमाल पूरी तरह से शांति, न्याय और पुनर्वास पर लगाया. इस चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, मैंने हमारे शास्त्रों में लिखी उन बातों को याद किया, जिसमें समझाया गया है कि जो लोग सत्ता में बैठे होते हैं, उन्हें अपने दर्द और पीड़ा को साझा करने का अधिकार नहीं होता. सब कुछ अकेले ही भुगतना पड़ता है. मैंने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया. आज भी जब मुङो उन दुर्भाग्यपूर्ण दिनों की याद आती है, तो ऊपर वाले से यही प्रार्थना करता हूं कि किसी और शख्स, समाज, राज्य या देश को कभी ऐसा दिन न देखना पड़े.
यह पहला मौका है जब मैं इस दुखद समय से जुड़ी अपनी भावनाओं को सबके साथ साझा कर रहा हूं. हालांकि, इन भावनाओं के बीच गोधरा में ट्रेन में लगी आग के बाद मैंने बार-बार गुजरात के लोगों से शांति और संयम बनाये रखने की अपील की, ताकि निदरेष लोगों को कुछ न हो. फरवरी-मार्च 2002 के दौरान मीडिया के साथ हर दिन होनेवाली बातचीत में और सार्वजनिक तौर पर मैंने शांति बनाये रखने, न्याय दिलाने और दोषियों को सजा दिलाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति और सरकार की नैतिक जिम्मेदारी वाली बात दोहरायी. इन भावनाओं को मेरे सद्भावना उपवास में कही बातों में भी महसूस किया जा सकता है, जहां मैंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की निंदनीय घटना एक सभ्य समाज को शोभा नहीं देती और इससे मुझे बहुत दुख हुआ.
शायद, यह पीड़ा भी पर्याप्त नहीं थी. मुझ पर अपने प्रियजनों की हत्या का आरोप लगाया गया, वो भी मेरे अपने गुजराती भाइयों और बहनों द्वारा. क्या आप उस आंतरिक अशांति और सदमे की कल्पना कर सकते हैं कि जब आपको उन घटनाओं के लिए आरोपी बताया जा रहा हो जिसके कारण आप पूरी तरह से बिखर गये हों. इतने सालों के लिए, वे लगातार मुझ पर हमले करते रहे. कोई कसर नहीं छोड़ी. मुझे इस बात का दुख और भी अधिक हुआ जब उन्होंने अपने संकीर्ण व्यक्तिगत और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मुङो निशाना बनाया. इस दौरान उन्होंने मेरे राज्य और देश की छवि खराब की. इस निर्दयता के कारण बार-बार वो घाव फिर हरे हो गये, जिसे हम ईमानदारी से भरने की कोशिश कर रहे थे. विडंबना यह है कि इस वजह से उन लोगों को न्याय मिलने में देरी हुई जिसके लिए वे लड़ रहे थे. हो सकता है उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ कि वे पहले से ही दुखी लोगों को और कितनी पीड़ा दे रहे थे.
हालांकि गुजरात ने अपना रास्ता चुन लिया था. हमने हिंसा की जगह शांति को चुना. हमने बांटने की जगह एकता को चुना. हमने नफरत की जगह सद्भावना चुना. यह आसान नहीं था, लेकिन हम अपनी मंजिल के प्रति प्रतिबद्ध थे. अनिश्चितता और डर के माहौल को पीछे छोड़ कर हम शांति, एकता और सद्भावना के गुजरात में तब्दील हो गये. आज मैं संतुष्ट और आश्वस्त हूं, और इसका श्रेय हर गुजराती जनता को जाता है. गुजरात सरकार ने उस वक्त हिंसा रोकने के लिए तीव्रता से निर्णायक कदम उठाये थे. देश भर के दंगों के इतिहास में कभी ऐसी कार्रवाई नहीं हुई. गुरुवार के फैसले के साथ देश के सबसे बड़े कोर्ट की अभूतपूर्व निगरानी में चले जांच की एक प्रक्रि या का समापन हो गया. इसके साथ 12 साल से चल रही गुजरात की अग्नि -परीक्षा का अंत हो गया. मैं खुद में मुक्त महसूस कर रहा हूं. मैं उन लोगों के लिए शुक्र गुजार हूं, जो मेरे साथ इस बुरे वक्त में खड़े रहे, जिन्होंने झूठ और धोखे के मुखौटे की दूसरी तरफ मौजूद सच को देखा. अब जब झूठी जानकारियों के बादल छंट गये हैं, मैं उम्मीद करता हूं कि वे लोग जो मुझसे जुड़ना चाहते हैं आज और मजबूत महसूस करेंगे. एक बार फिर सत्यमेव जयते.