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शीला ने हार का ठीकरा पार्टी पर फोड़ा

नयी दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की करारी हार पचाने की कोशिश में जुटी शीला दीक्षित ने आज दिल्ली प्रदेश कांग्रेस और उसके अध्यक्ष जे पी अग्रवाल पर जोश-खरोश से उनका समर्थन नहीं करने का आरोप लगाया ,लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि यह जानबूझकर किया गया या नहीं. पचहत्तर वर्षीय शीला दीक्षित […]

नयी दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की करारी हार पचाने की कोशिश में जुटी शीला दीक्षित ने आज दिल्ली प्रदेश कांग्रेस और उसके अध्यक्ष जे पी अग्रवाल पर जोश-खरोश से उनका समर्थन नहीं करने का आरोप लगाया ,लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि यह जानबूझकर किया गया या नहीं.

पचहत्तर वर्षीय शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री के रुप में अपना चौथा कार्यकाल हासिल करने के प्रयास में बुरी तरह विफल रहीं. उनकी पार्टी कांग्रेस 70 सदस्यीय विधानसभा में महज आठ सीटों पर सिमट गयीं जबकि विपक्षी भाजपा ने 31 और पहली बार राजनीति में कदम रखने वाली आम आदमी पार्टी ने 28 सीटें जीतीं. आप नेता अरविंद केजरीवाल से 25000 से अधिक के मतों से हार जाना शीला के लिए एक और बड़ा झटका रहा.

उनसे जब पूछा गया कि उनकी पार्टी और उनकी स्वयं ही हार ने उन्हें और उनकी पार्टी को डुबा दिया, तो उन्होंने दार्शनिक अंदाज में कहा, ‘‘लोकतांत्रिक व्यवस्था में, जनता से बढ़कर कुछ नहीं है. अतएव वही फैसला करती है. ’’ उन्हें इस बात की भी चिंता है कि दिल्ली में खंडित जनादेश आया और कोई पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में राष्ट्रपति शासन एवं फिर से चुनाव की संभावना है.

शीला दीक्षित ने कहा, ‘‘मैं निश्चिंत थी कि दिल्ली की जनता संवेदनशील होगी और अस्थिरता एवं खराब शासन की ओर नहीं बढ़ेगी. लेकिन ऐसा हुआ. ’’ जब उनसे पूछा गया कि क्या वह महंगाई एवं भ्रष्टाचार समेत केंद्र की गलतियों की शिकार बनीं, उन्होंने कहा, ‘‘मैं भी उस तंत्र की हिस्सा थी. मैं उसका शिकार क्यों बनूंगी.?’’जब उनसे कुरेदकर यह कहा गया कि क्या राष्ट्रीय राजधानी की मुख्यमंत्री होने के नाते दोहरी मार झेलनी पड़ती है तो उन्होंने उसका हां में जवाब दिया लेकिन साथ ही कहा, ‘‘मुझे अपना बोझ खुद ही ढ़ोना है. ’’ उन्होंने कहा कि दिल्ली में पार्टी और सरकार के बीच तालमेल का अभाव था और उससे केंद्र सरकार को कोई लेना-देना नहीं है.

शीला दीक्षित ने कहा, ‘‘पार्टी पर्याप्त रुप से सक्रिय नहीं थी.’’ उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने अपने काम के बारे में (लोगों को बताने के लिए) काफी प्रचार सामग्री तैयार की थी लेकिन पार्टी ने जनता से सिर्फ इतना कहा, ‘‘बहुत काम हुआ.’’ इतना करना ही काफी नहीं था. वह नहीं मानती कि पार्टी ने उत्साह के साथ उनका साथ दिया.

जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अग्रवाल को दोषी ठहरा रही हैं, तो उन्होंने कहा, ‘‘यदि मैं सरकार की प्रमुख हूं तो मुझे वह जिम्मेदारी तो लेनी ही होगी. ’’ उनके कहने का तात्पर्य यह था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को भी ऐसा ही करना चाहिए. जब उनसे पूछा गया कि क्या अग्रवाल पूरी तरह उनके साथ थे, उन्होंने कहा, ‘‘मैं ऐसा नहीं सोचती.’’

जब शीला दीक्षित से पूछा गया कि क्या प्रदेश कांग्रेस ने ऐसा जानबूझकर किया तब उन्होंने कहा, ‘‘मैं ऐसा नहीं मानूंगी. लेकिन हां, मैं मानती हूं कि (प्रदेश इकाई की ओर से) कुछ अधिक सक्रियता होनी चाहिए थी. ’’ उन्होंने कहा कि वह और उनकी पार्टी पूरी विनम्रता से चुनाव नतीजे स्वीकार करती हैं.निर्वतमान मुख्यमंत्री ने केजरीवाल के हाथों 25000 से अधिक मतों के अंतर से अपनी हार को अप्रत्याशित करार दिया.

जब उनसे पूछा गया कि चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें अकेला छोड़ दिया तब उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा कहना उचित टिप्पणी नहीं होगी. कोई क्यों मुझे अकेला छोड़ देगा.’’ उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी, भूपिंदर सिंह हुड्डा, ओम्मन चांडी, पृथ्वीराज चव्हाण समेत कई मुख्यमंत्रियों ने दिल्ली में पार्टी के पक्ष में प्रचार किया.

उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) सपने बुनती है और जनता उनके जाल में फंस जाती है.दिल्ली में तीसरी ताकत और उसके महत्व के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह इस पर निर्भर करता है कि उसका प्रदर्शन कैसा होने जा रहा है.जब शीला दीक्षित से पूछा गया कि क्या इसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ेगा, उन्होंने कहा, ‘‘यह कहना जल्दबाजी होगी.’’ नरेंद्र मोदी के प्रभाव के बारे में उनका कहना था, ‘‘मैं ऐसा नहीं मानती. यदि उनका कोई असर था तो भाजपा को पूर्ण बहुमत क्यों नहीं मिला. ’’

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