नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारत सरकार द्वारा जनप्रतिनिधि एक्ट में उस संशोधन को मंजूरी दे दी है, जिमसें जेल या पुलिस हिरासत में बंद लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गयी है. अब जेल या पुलिस हिरासत में बंद लोग भी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लड़ सकेंगे.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी को केवल इस आधार पर चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता कि वो जेल या पुलिस हिरासत में है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ जनप्रतिनिधित्व कानून पर केंद्र सरकार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी.
चीफ जस्टिस पी सतशिवम की अध्यक्षता वाली खंड पीठ ने कहा कि अब इस मुद्दे पर कोर्ट के पास कहने को कुछ नहीं है. हालांकि शीर्ष कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दो साल से अधिक की सजा प्राप्त किसी भी व्यक्ति को कोई भी रियायत नहीं दी जायेगी. सजायाफ्ता के मामले में पूर्व में दिया गया फैसला लागू रहेगा. कोर्ट के इस आदेश के बाद अब जेल में बंद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और कांग्रेस नेता रशीद मसूद को रियायत मिलने की उम्मीद पूरी तरह समाप्त हो गयी है.
संसद ने ऐसे किया संशोधन: रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट, 2013 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में महज 15 मिनट के बहस के बाद पारित करवा लिया था. कुछ सांसद इसमें और बहस की मांग कर रहे थे, लेकिन नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज सहित अधिकांश सांसद इसे पास कर देना चाहते थे. राज्यसभा में यह बिल 27 अगस्त को पास हो गया था. यह बिल रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट के सेक्शन 62 के सब सेक्शन (2) में बदलाव करता है, जिसमें किसी भी वोटर को हिरासत में उसके अधिकार से अस्थायी रूप से वंचित करने का प्रावधान था. इस संशोधन के बाद कोई भी व्यक्ति जो हिरासत या जेल में हो उसका नाम मतदाता सूची में बना रहेगा और वह चुनाव में नामांकन भी दाखिल कर सकता है.
– सजायाफ्ता को रियायत नहीं
* सुप्रीम कोर्ट ने भी लगायी मुहर
* सरकार ने पहले ही बना दिया था कानून
* लालू प्रसाद व रशीद मसूद की उम्मीदों को झटका