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राज्यपाल के पद को समाप्त करने के लिए लोस में उठी मांग

नई दिल्ली : राज्यपाल के पद के राजनीतिक दुरुपयोग की लोकसभा में आज जमकर आलोचना करते हुए विभिन्न दलों के नेताओं ने इस पद को औपनिवेशक काल की विरासत बताया और इस संवैधानिक पद को समाप्त किए जाने की पुरजोर मांग की. जनता दल यू , तृणमूल कांग्रेस , समाजवादी पार्टी , राजद और बीजू […]

नई दिल्ली : राज्यपाल के पद के राजनीतिक दुरुपयोग की लोकसभा में आज जमकर आलोचना करते हुए विभिन्न दलों के नेताओं ने इस पद को औपनिवेशक काल की विरासत बताया और इस संवैधानिक पद को समाप्त किए जाने की पुरजोर मांग की.

जनता दल यू , तृणमूल कांग्रेस , समाजवादी पार्टी , राजद और बीजू जनता दल समेत अधिकतर दलों के सदस्यों की राय थी कि देश की आर्थिक हालत को देखते हुए राज्यपाल का पद आर्थिक ढांचे पर एक बोझ है और बदलते परिदृश्यों में इस पद की व्यावहारिकता की समीक्षा किए जाने की जरुरत है.

इन दलों के नेताओं ने ‘‘राज्यपाल (उपलब्धियां , भत्ते और विशेषाधिकार) संशोधन विधेयक ’’ पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए राज्यपाल पद की कड़ी आलोचना की और राजभवनों को ‘सफेद हाथी’ करार दिया.

राज्यपाल पद को बनाए रखने की स्थिति में अधिकतर दलों के सदस्यों ने संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सलाह मशविरे के अनुसार ही राज्यपाल की नियुक्ति किए जाने संबंधी 1988 में गठित सरकारिया आयोग की सिफारिशों का अनुपालन किए जाने की पुरजोर मांग की.

विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा के कीर्ति आजाद ने राज्यपाल के पद को राजनीति से परे रखे जाने, नियुक्ति में पारदर्शिता बरते जाने और इस संबंध में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा गठित सरकारिया आयोग की सिफारिशों का अनुपालन किए जाने पर जोर दिया.

आजाद ने कहा कि सरकारिया आयोग समेत केंद्र राज्यों के संबंधों पर तीन आयोग और दो समितियां गठित की जा चुकी हैं लेकिन इसके बावजूद राज्यपाल का पद दिनोंदिन विवादास्पद होता जा रहा है. उन्होंने दागदार व्यक्तियों को इस संवैधानिक पद पर नियुक्ति नहीं किए जाने का प्रावधान करने की भी मांग की.

कांग्रेस के जगदम्बिका पाल ने विधेयक का समर्थन करते हुए पूर्व राज्यपालों तथा उनके परिवारों को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराए जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि भाजपा केवल नौकरशाहों को इस संवैधानिक पद पर नियुक्त करने की पक्षधर है जो एक गलत परंपरा है.

समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार ने अंग्रेजी राज के जमाने से चली आ रही राज्यपालों की नियुक्ति संबंधी परिपाटी को समाप्त किए जाने की मांग की. उनका कहना था कि हमेशा यह देखा गया है कि केंद्र में बैठी पार्टी अपने ही लोगों को राज्यपाल बनाती है और विरोधी दलों द्वारा शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने में उनका इस्तेमाल किया जाता है.

जनता दल यू के शरद यादव ने राज्यपाल के पद को सफेद हाथी बताते हुए कहा कि एक ओर तो बड़ी आबादी रोटी को तरसकती है और दूसरी ओर राजभवनों की ऐसी विशाल और भव्य शानोशौकत होती है.

उन्होंने देशभर में राज्यपालों पर होने वाले खर्च का सरकार से ब्यौरा मांगते हुए कहा कि राज्यपालों से अपेक्षा की जाती है कि वे विवादों से दूर रहेंगे लेकिन पिछले दिनों एक राज्यपाल पर आरोप लगा कि उसने कथित तौर पर पैसा लेकर विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर की नियुक्ति की.

शरद यादव ने कहा कि राज्यपालों को केवल हस्ताक्षर करने के लिए बिठा रखा है और ये नए लाट साहब हैं. उन्होंने नौकरशाहों को राज्यपाल नियुक्त किए जाने की परंपरा का भी विरोध किया.

तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने राज्यपाल के पद को आधुनिक समय की अराजकता की संज्ञा दी और इस की प्रासंगिकता पर नए सिरे से विचार किए जाने की अपील की. उन्होंने कहा कि राज्यपाल पद की हालत यह है कि कई राज्यपाल तो अपने मूल दायित्वों का भी निर्वहन नहीं करते.

उन्होंने सवाल किया कि माओवाद प्रभावित राज्यों की प्रशासनिक स्थिति पर आज तक कितने राज्यपालों ने केंद्र को रिपोर्ट भेजी है ? उन्होंने राज्यपालों की नियुक्ति संबंधित राज्य सरकारों के साथ विचार विमर्श से किए जाने की सुझाव दिया.

सौगत राय ने आंध्र प्रदेश के राज्यपाल का नाम लिए बिना उन पर परोक्ष हमला बोला और कहा कि जब तेलंगाना मुद्दे पर राज्य सुलग रहा था तो उन्होंने उस आग को बुझाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. लेकिन इसके बावजूद उन्हें सेवा विस्तार दे दिया गया.

माकपा के प्रोफेसर एस के सैदुल हक ने पूर्ववर्ती राजग और संप्रग सरकार , दोनों पर सरकारिया आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज कर राज्यपाल के पद का राजनीतिक दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. उन्होंने भी राज्यपाल पद की जरुरत पर विचार किए जाने का सुझाव दिया.

बीजद के तथागत सतपथि ने राज्यपाल पद की व्यवस्था पर विचार किए जाने और इस पद को समाप्त किए जाने की पुरजोर मांग की. उन्होंने इसे औपनिवेशक विरासत की संज्ञा देते हुए कहा कि राज्यपालों की नियुक्ति में संबंधित व्यक्ति का चरित्र भी देखा जाना चाहिए.

उन्होंने किसी का नाम लिए बिना कहा कि यह गौर करने की जरुरत है कि आज देश के कितने राज्यपाल 80 साल की उम्र के हैं और क्या वे उस पद के लायक हैं जहां वे बैठे हैं. उन्होंने भी राज्यपालों की नियुक्ति संबंधित राज्य सरकारों से विचार विमर्श के उपरांत ही किए जाने का सुझाव दिया.

अन्नाद्रमुक के एस सेमलई ने भी राज्यपालों की नियुक्ति में राज्य सरकारों की सलाह को प्राथमिकता दिए जाने की मांग की. राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह ने राज्यपाल पद को समाप्त किये जाने की वकालत करते हुए कहा कि यह हमें ब्रिटिश काल की याद दिलाता है. उन्होंने कहा कि इस पद के शानो शौकत के नाम पर फिजूल खर्ची बंद होनी चाहिए.

उनका यह भी कहना था कि राज्यपाल को नियुक्त करने और उन्हें हटाने के बारे में पूरी प्रक्रिया होनी चाहिए और नियम कायदा स्पष्ट होना चाहिए. सिंह ने कहा कि इस पद का इस्तेमाल संवैधानकि प्रधान के रुप में हाना चाहिए न कि केंद्र के एजेंट के रुप में.

झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के डा अजय कुमार ने कहा कि राज्यपाल पद पर नियुक्ति में सिर्फ राजनीतिक व्यक्तियों और नौकरशाहों को ही नहीं बल्कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी तरजीह मिलनी चाहिए और साथ ही इस पद पर नियुक्ति के लिए चुनाव की एक पूरी प्रक्रिया होनी चाहिए.

निर्दलीय तरुण मंडल ने कहा कि ब्रिटिश काल से चले आ रहे गर्वनर के इस पद की कोई आवश्यकता उन्हें दिखाई नहीं देती है. इस पद पर बैठे लोगों को ढेर सारी सुविधायें मिलती हैं.

मंडल का सुझाव था कि महलनुमा राजभवनों को विश्वविद्यालय या विरासत स्थल में बदल दिया जाना चाहिए. उनका यह भी सवाल थ कि आखिर इस पद पर राजनीतिक व्यक्तियों को ही क्यों बैठाया जाना चाहिए. मकापा के प्रबोध पांडा ने इस संबंध में सरकारिया आयोग की सिफारिशें पर चर्चा किये जाने की बात करते हुए कहा कि अगर जरुरत हो तो एक नया उच्च स्तरीय आयोग गठित किया जाये. यर्या में बसपा के दारा सिंह चौहान ने भी हिस्सा लिया.

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